खरोष्ठी लिपि

खरोष्ठी लिपि जेकरा गांधारी लिपि भी कहलो जाय छे, ऊ पुरातन भारत के लिपि छेले, जे भारतीय उपमहाद्वीप (वर्तमान पाकिस्तान) के उत्तर-पश्चिमी बाहरी इलाका से अफगानिस्तान सें मध्य एशिया तक ले रंग रंग के लोग इस्तेमाल करे छेले। अबुगिदा म हेकरा तेसरॉ शताब्दी ईसा पूर्व के बीचा बीची मे पेश करलो गेलो छेले, संभवतः चौथी शताब्दी ईसा म, आरो तीसरा शताब्दी ईस्वी के आसपास अप्पन मातृभूमि म मृत्यु होवे तकले उपयोग मे रहले।

खरोष्ठी नाम हिब्रू 'खरोशेठ' स लेलो गेल छे, जे 'लेखन' लेली एगो सेमेटिक शब्द छे, नय ते पुरानो ईरानी *xšaθra-pištra सें, जेक्कर अर्थ छे "शाही लेखन"। इ लिपि के पहलें इंडो-बैक्ट्रियन लिपि भी जानलो जाय छेले, काबुल लिपि और एरियन-पाली भी।[3][4]

विद्वान सन्ही के ई बात पर एकमत नय छे कि क्या खरोष्ठी लिपि कलें कलें बढ़ले, कि एगो आविष्कारक के काम छेले। लिपि के विश्लेषण पर अरामी वर्णमाला पर डिपिंडेंस देखावे छे, लेकिन बहुत बदलाव कें साथ। ईरंग लागे छे कि खरोष्ठी सार्वजनिक शिलालेख सन्ही लेली काम आवे छेले जे कि डेरियस द ग्रेट के शासनकाल म प्रशासनिक काम म आवे छेले। एगो सिद्धांत के मुताबिक अरामी लिपि सिंधु की अचमेनिद विजय साथें ऐलो छेले। कहलो जाय छे कि 500 ईसा पूर्व में आरो अगला 200+ वर्षों में बढ़ी क तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक अप्पन अंतिम स्वरूप तक पहुँचले, जहाँ ई अशोक शिलालेखोम पइलो जाय छे। हालाँकि, ई विकासवादी मॉडल के पुष्टि अखनी तक नय होल छे, औरो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से चट्टान आर सिक्का शिलालेख एक्के रंग के देखाबे छे। चौथा शताब्दी ईसा पूर्व का अरामी भाषा के एगो शिलालेख सिरकप म पइलो जाय छे, जे अखनी पाकिस्तान म अरामी लिपि की उपस्थिति के गवाही दय छे। सर जॉन मार्शल कहे छे कि हेकरा से ई पुष्टि होते लागे छे कि खरोष्ठी क बादोमें अरामी भाषा से विकसित करलो गेलो छेले।[2]

ब्राह्मी लिपि ते काय सदि तक रहले, पन लगे छे कि खरोष्ठी के दूसरा-तीसरा शताब्दी ईस्वी म छोड़ी देलो गेले। काहे कि सेमेटिक-व्युत्पन्न खरोष्ठी लिपि आरो ओकरो उत्तराधिकारी म खूब अंतर छेले, एक बेरिया जब लिपि क बदला म ब्राह्मी-व्युत्पन्न लिपि सन्ही आय गेले, त खरोष्ठी बारे ज्ञान म बेसी गिरावट ऐले, जाल तक ले पश्चिमी विद्वान सन्ही हेकरा फेरु करी के खोजलके।