परंपरागत परिभाषा के अनुसार लंबा समय तलक काम करला के फलस्वरूप घटी गेलऽ क्षमता क॑ ही थकान या श्रांति (fatigue/फैटिग) के संज्ञा देलऽ जाय छै। किसी कार्य को लगातार करने से उत्पादन गति का ह्रास होना ही थकान है। थकान को साधारणतया सभी लोग जानते हैं, फिर भी इसके स्वरूप को पहचानना बहुत कठिन है।
थकान की वैज्ञानिक परिभाषा गिलब्रैथ (Gilbreth) ने दी है। इनकी परिभाषा तीन तथ्यों पर आधारित है-
- १. कार्य करने की शक्ति का ह्रास
- २. कार्य करने में आनन्द की अनुभूति
- ३. कार्य रहित घंटों में प्रसन्नता का अभाव
थकान, कमजोरी से अलग है। आराम करने पर थकान चली जाती है जबकि कमजोरी बनी रह सकती है। थकान का कारण शारीरिक या मानसिक हो सकता है।
उद्योगों में मशीनों के उपयोग से उत्पादन में वृद्धि हुई है, शारीरिक श्रम में कमी आयी है। इससे दुर्घटना, थकान एवं अरोचकता जैसी समस्याओं का समाधान हुआ है। लेकिन यह समाधान जिस अनुपात में होना चाहिए था, उस मात्रा में नहीं हुआ है। मशीनें उत्पादन तो बढ़ाती हो पर मनुष्य की थकान को कम करने में इनका योगदान नहीं है। मशीनें मनुष्य द्वारा संचालित होती हैं। वे नहीं थकती किन्तु मनुष्य थक जाता है। थकान की अभिव्यक्ति (Manifestation) विविध रूपों में होती है। कभी यह उत्पादन-ह्रास के रूप में प्रकट होती है। लेकिन कर्मचारी की भावनाओं में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं देखा जाता है। कभी थकान के कारण व्यक्ति का भावपक्ष (Feeling tone) प्रभावित होता है पर उसका प्रभाव उत्पादन पर नहीं पड़ता। कभी कर्मचारी के भाव तथा उत्पादन दोनों में ही ह्रास होने लगता है। शारीरिक परीक्षणों से थकान के कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हो। इस प्रकार थकान एक बहुरंगी घटना है जिसकी कई अभिव्यक्तियां हो सकती हैं।
थकान की अवस्था में व्यक्ति सही चिंतन नहीं कर पाता है। वह उदास हो जाता है। अधिक कार्य को वह शरीर के लिए हानिकारक मानता है। थका हुआ व्यक्ति ऐसे कार्य करने लगता है जो वह सामान्य स्थिति में नहीं करता है। इस संबंध में अनुसंधानकर्त्ताओं ने अपने निष्कर्षों के आधार पर सिद्ध किया है कि औद्योगिक थकान कर्मचारी के समायोजन के साथ उत्पादन एवं समाज को भी प्रभावित करती है।
फ्लोरेंस नामक विद्वान ने थकान के अध्ययन को निम्न तीन भागों में बांटा है-
- १. कार्य ह्रास (Work decrement),
- २. दैहिक स्थिति (Physical state),
- ३. थकान की अनुभूति (Feeling of fatigue)
थकान के स्वरूप को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
जिन कार्यों के संपादन हेतु मानसिक शक्तियों का उपयोग होता है, उन कार्यों को लगातार करते रहने से ऐसी अवस्था आती है। जब मानसिक शक्तियों का ह्रास होने लगता है तो कार्य के उत्पादन में कमी आने लगती है तथा अन्त में कार्य के प्रति अरूचि पैदा हो जाती है। इसी अवस्था को थकान कहा जाता है। मानसिक कार्यों में मानसिक ऊर्जा का व्यय होता है। इससे व्यक्ति और अधिक कार्य नहीं कर पाता है। वैयक्तिक भिन्नताओं के कारण प्रत्येक व्यक्ति की कार्य क्षमता भी भिन्न-भिन्न होती है। जिन व्यक्तियों में उच्च प्रेरणा, काम करने की
प्रतिज्ञा और उद्देश्य को प्राप्त करने की प्रबल इच्छा जिन व्यक्तियों में होती है, उन्हें जल्दी ही थकान का अनुभव नहीं होता। इसी प्रकार कुछ असामान्य परिस्थितियों में भी थकान की अनुभूति कम होती है।
मानसिक थकान उद्योगपति व कर्मचारी दोनों के लिए हानिकारक होती है। इससे व्यक्ति की प्रसन्नता में कमी होने लगती है। सोचने, कार्य करने की तथा निर्णय की शक्ति का ह्रास होने लगता है। इससे विभिन्न प्रकार की दुर्घटनाओं की संभावना रहती है।
थकान के कारण शारीरिक क्रियाएं भी प्रभावित होती हो। इससे शरीर में अनेक परिवर्तन आते हैं। इसमें श्वास तथा रक्त की गति में वृद्धि हो जाती है। थकान के समय जो शारीरिक परिवर्तन होते हो वे सभी रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित होते हैं। ये प्रतिक्रियाएं निम्नलिखित हैं-
- मांसपेशी में शक्ति उत्पन्न करने वाले तत्त्वों की कमी- शरीर में कार्य संपादन हेतु शक्ति ग्लाइकोजन नामक पदार्थ से प्राप्त होती है। यह पदार्थ शर्करा (Suger) में परिवर्तित होता रहता है। अधिक समय तक कार्य करने से मांसपेशियों में विभिन्न प्रकार के विषैले तत्त्व एकत्रित हो जाते हो। अर्थात् कार्य की निरन्तरता से ग्लाइकोजन नामक तत्त्व लैक्टिक अम्ल (Lactic acid) में परिवर्तित होने लगता है। इससे मांसपेशियां सिकुड़ने लगती हैं। लैक्टिक एसिड को ऑक्सीजन की पूर्ति होने पर वह पुनः ग्लाइकोजन में परिवर्तित हो जाता है। किन्तु ऑक्सीजन के अभाव में यह कार्य बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में श्वास की गति में तीव्रता आ जाती है अथवा श्वास रुक-रुककर आती है।
- मांसपेशी तथा रक्त संचार में अनावश्यक तत्त्वों का समावेश- विभिन्न खोजों से यह सिद्ध हुआ है कि कई ऐसे तत्त्व हो जो थकान के लिए उत्तरदायी होते हैं। जब ये तत्त्व मांसपेशियों में एकत्रित होने लगते हो तो थकान की अनुभूति होती है। पौटेशियम फॉस्फेट (Porassium Phosphate) तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड आदि विषैले तत्त्व एवं गैस मांसपेशियों में एकत्रित होने लगेंगे तो कार्य करने की शक्ति का ह्रास होने लगता है। अन्ततः एक स्थिति में कार्यशक्ति शून्य हो जाती है। शरीर में आवश्यक तत्त्वों की कमी से शारीरिक विकास रुक जाता है तथा मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है।
- थकान में अन्य दैहिक परिवर्तन- उपरोक्त विषैले तत्त्वों के अतिरिक्त थकान की अवस्था में कई अन्य शारीरिक क्रियाएं तथा परिवर्तन प्रभावित होते रहते हो। इस दौरान रक्त संचार, हृदय-गति एवं पाचन संस्थान में परिवर्तन होते हैं। अन्तःस्रावी ग्रंथियां, नाड़ी संस्थान आदि में परिवर्तन होने लगते हैं। रक्त कोशिकाओं तथा उनकी रासायनिक प्रक्रियाओं में स्पष्ट अन्तर दृष्टिगोचर होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि थकान के समय संपूर्ण शरीर तथा उसकी प्रत्येक आंगिक क्रिया प्रभावित होती है। शारीरिक तथा मानसिक थकान एक दूसरे से संबंधित होती है। अर्थात् शारीरिक थकान होने पर मानसिक शक्ति का ह्रास होता है। मानसिक कार्य के पश्चात् शारीरिक थकान का अनुभव होता है।
शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों के ह्रास का प्रभाव उत्पादन पर बढ़ता है। मोसो (Moso) ने आर्गोग्राफ के प्रयोग से यह निष्कर्ष निकाला कि प्रत्येक व्यक्ति की कार्य क्षमता में भिन्नता होती है। लेहमन (Lehman) नामक विद्वान ने कार्य शक्ति के आधार पर व्यक्तियों को तीन श्रेणियों में बांटा-
- शक्तिशाली (Energetic),
- अशक्तिशाली (Unenergetic), एवं
- सामान्य शक्तिशाली (Normal energetic or fatigueable)।
मार्टिन नामक विद्वान ने बताया कि कार्य के पहले घंटों में कर्मचारी ज्यादा कार्य करता है किन्तु आराम से पूर्व बहुत कम कार्य कर पाता है और आराम के बाद पुनः अधिक कार्य करता है।
उद्योग में थकान एक गंभीर समस्या है। इससे उद्योग के अनेक पक्ष प्रभावित होते हो। इनमें मुख्य पक्ष हैं- उत्पादन की कमी, सामग्री का अपव्यय, दुर्घटनाओं की संभावना।
- उत्पादन की कमी- कर्मचारी के थकान के साथ ही उत्पादन में कमी आने लगती है। वर्नन (Vernon) ने बताया कि कार्य अवधि चाहे कितनी ही कम हो, कर्मचारी पर थकान का प्रभाव पड़ता है। इससे उत्पादन प्रभावित होता है।
- सामग्री का अपव्यय- थकान के कारण कर्मचारी कार्य को महत्त्व नहीं देता है। परिणामस्वरूप कार्य में असावधानी व विघ्न पैदा हो जाता है। उत्पादन के गुणों का लोप होने लगता है। कर्मचारी सामग्री को बरबाद करने लगता है। इस प्रकार उत्पादन की मात्रा और गुणात्मक स्वरूप में भी कमी आने लगती है।
- दुर्घटना की संभावना- थकान के कारण दुर्घटनाओं की संभावना अधिक रहती है। इससे संपत्ति को हानि पहुंचती है तथा व्यक्तिगत रूप से क्षति होती है।
थकान कर्मचारी की एक शारीरिक एवं मानसिक अवस्था होती है। इसमें कार्य-शक्तियों का ह्रास होता है। इस अवस्था को उत्पन्न करने वाले कुछ तत्त्व, दशाएं एवं परिस्थितियां होती हैं, जिन्हें 'थकान का कारण' माना जाता है। ये कारण निम्न हैं-
- १. कार्य के घंटों का प्रभाव
- २. विश्राम काल का प्रभाव
- ३. तापमान एवं वातायन (temrature and ventilation)
- ४. मशीन की रचना (Machine design)
- ५. वातावरण का प्रभाव
- ६. उचित आसन का प्रभाव (Effect of proper posture)
- ७. व्यक्तिगत कारण
- ८. सामाजिक कारण
- कार्य के घंटों का प्रभाव : मनोवैज्ञानिक परीक्षणों द्वारा यह तथ्य सामने आया है कि अधिक घंटे कार्य करने से प्रति घंटा उत्पादन में कमी आ जाती है। इसके विपरीत कार्य के कम घंटे होने पर उत्पादन में वृद्धि होती है। इस प्रकार यदि कार्य के घंटे अधिक लंबे होंगे तो कर्मचारी थकान का अनुभव करेगा।
- विश्रामकाल का प्रभाव : उद्योग में कार्य के घंटों को कम करने के साथ कार्य घंटों के बीच विश्राम भी बहुत आवश्यक होता है। यदि कार्य के बीच आराम करने के बाद कर्मचारी पुनः कार्य करता है तो वह अधिक उत्पादन कर सकता है।
- तापमान एवं वातायन : अधिक ठंडा और अधिक गर्म स्थान पर कार्य करने वाले कर्मचारी शीघ्र ही थकान का अनुभव करते हो। साथ ही कई बीमारियों से भी पीड़ित रहते हैं। इससे कर्मचारी के साथ उत्पादन भी प्रभावित होता है।
- मशीन की बनावट : कुछ मशीनों की बनावट इस प्रकार होती है कि या तो कर्मचारी खड़ा रहकर कार्य कर सकता है या बैठकर कार्य कर सकता है। इसलिए एक ही अवस्था में अधिक समय तक रहने से कर्मचारी जल्दी ही थक जाता है। कभी-कभी मशीन की बनावट इस प्रकार होती है कि शरीर के किसी अंग विशेष से ही अधिक कार्य लेना पड़ता है। इस प्रकार मशीन की बनावट भी थकान का महत्त्वपूर्ण कारण है।
- वातावरण का प्रभाव : कोलाहल और थकान का गहरा संबंध होता है। उद्योग में जहां शोर अधिक होता है वहां कर्मचारी को जल्दी ही थकान का अनुभव होने लगता है। परीक्षणों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि कोलाहलपूर्ण वातावरण में कर्मचारी को काम करने के लिए शारीरिक बल अधिक लगाना पड़ता है। इससे कर्मचारी का ध्यान कार्य में केन्द्रित नहीं रह पाता है। इससे कार्य में त्रुटियों की संभावना भी अधिक रहती है। वेस्टन नामक विद्वान ने कपड़ा सीने वाले कुछ कर्मचारियों पर इसका प्रयोग किया तब यह निष्कर्ष निकाला कि शान्त वातावरण में 7.5 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि हुई।
- उचित आसन का प्रभाव : कार्य करते समय कर्मचारी का उचित आसन न होने से थकान के साथ-साथ दुर्घटनाओं की भी संभावना बनी रहती है। शारीरिक आसनों को सही रखने के लिए उचित व्यवस्था न होने से कार्य पर इसका प्रभाव पड़ता है।
- व्यक्तिगत कारण : थकान के लिए अनेक व्यक्तिगत कारण उत्तरदायी होते हैं। उनमें दो कारण मुख्य हैं- नींद की कमी और प्रेरणा का अभाव।
- नींद की कमी : मनुष्य की उम्र के अनुसार नींद के निश्चित घंटे होते हो। बड़ी मशीनों से संबंधित कार्य करने वाले कर्मचारी की नींद में यदि कोई कमी होती है तो थकान शीघ्र ही होती है, साथ में उत्पादन का ह्रास भी होने लगता है। दुर्घटनाओं की भी संभावनाएं अधिक रहती हो। कम नींद के अलावा अधिक नींद भी थकान का कारण होती है।
- प्रेरणा का अभाव (Lack of motivation)- प्रेरणा के अभाव में कर्मचारी को थकान की अनुभूति शीघ्र होने लगती है। यदि कार्य में संलग्न कर्मचारी को अर्थ या पदोन्नति संबंधी कोई जानकारी दी जाए तो वह एक प्रेरणा का कार्य करती है। इससे थकान का अनुभव देर से होगा और उत्पादन में भी वृद्धि होगी। इनके अतिरिक्त अस्वस्थता, कुसमायोजन (Maladjustment), पर्याप्त शक्ति का अभाव (Lack of power required), कार्य-अभ्यास का अभाव, तथा कर्मचारी का पारिवारिक जीवन आदि ऐसे कारण हो जो कर्मचारी की थकान में सहायक होते हैं।
- सामाजिक कारण : समाज कर्मचारी की उद्योगशाला है। इस उद्योगशाला के पारिवारिकजनों से यदि किसी प्रकार का असंतोष होगा तो उसे थकान की अनुभूति बनी रहती है। यदि कर्मचारी इस उद्योगशाला में अपने को असुरक्षित महसूस करता है या मान-सम्मान जैसी अन्य कोई बात हो तो भी वह स्वयं को थका हुआ पाएगा। इससे भी उत्पादन प्रभावित होता है, दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है।
उद्योग में जिन कारणों से थकान उत्पन्न होती है यदि उन्हीं कारणों का निराकरण किया जाए तो कर्मचारी थकान से बच सकता है। यही सबसे अच्छा उपाय है। थकान दूर करने के उपाय संक्षेप में निम्न प्रकार हैं-
- समुचित कार्य अवधि- कर्मचारी को थकान की अनुभूति न होने पाए, इसके लिए सबसे सरल उपाय है कार्य के घंटे अधिक नहीं होने चाहिए। कार्यकाल की अवधि जलवायु, कर्मचारी के स्वास्थ्य, आयु आदि को ध्यान में रखकर निश्चित करनी चाहिए। कार्य अवधि औद्योगिक व्यवस्था की उन्नति की कुंजी होती है।
- पर्याप्त विश्राम : थकान दूर करने के लिए विश्राम बहुत आवश्यक होता है। विश्रामकाल और विश्राम काल का वितरण थकान को दूर करने में बहुत सहायक होता है।
- कार्य-परिवर्तन : लगातार एक ही कार्य करते रहने से कर्मचारी अरोचकता और थकान का शिकार हो जाता है। प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि यदि कर्मचारी को बदल-बदलकर कार्य करने को दिया जाए तो थकान व अरुचि की समस्या पैदा नहीं होगी।
- औद्योगिक वातावरण : थकान को दूर करने हेतु औद्योगिक वातावरण पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है। तापक्रम, प्रकाश, वातायन (वेंटिलेशन) एवं शान्त वातावरण होने से कर्मचारी को थकान की अनुभूति कम होगी।
- मशीन : मशीनों से उत्पन्न थकान को दूर करने के लिए मशीनों की बनावटों में सुधार होना चाहिए। कभी-कभी मशीनें भी आवाज करने वाली होती हो, जो थकान को बढ़ाती हैं। इसलिए मशीनों की आवाज एक लय में हो। मशीन और कार्य की रफ्तार कर्मचारी की क्षमता और अनुभव के अनुसार होने से न तो कर्मचारी जल्दी थकेगा और न ही उत्पादन प्रभावित होगा।
- कर्मचारी का स्वास्थ्य - थकान का संबंध स्वास्थ्य से होता है। यदि कर्मचारी का स्वास्थ्य सही नहीं होगा तो कर्मचारी के लिए और भी अनेकों समस्याएं सामने आती हो। इसलिए कर्मचारी के स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखना चाहिए।
थकान दूर करने के उपायों का क्रियान्वय तभी उचित रूप से हो सकता है जब थकान मापन हेतु उपयुक्त विधियों का प्रयोग किया जाए। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर थकान मापन हेतु जिन परीक्षणों का निर्माण हुआ है वे निम्न हैं-
इन परीक्षणों द्वारा किसी विशेष समय में किसी विशेष व्यक्ति की ‘शक्ति द्वारा उत्पादन’ (Energy output) का मापन किया जाता है। इन परीक्षणों में ‘हस्त-शक्ति मापन यंत्र’ (Hand dynamometer), ‘पारा-शक्ति मापन यंत्र’ (Mercury dynamometer), ‘जल-शक्ति मापन यंत्र’ (Water dynamometer) आदि प्रमुख हैं।
इसके द्वारा थकान के समय कर्मचारी की नाड़ी गति, ऑक्सीजन की मात्रा एवं गति तथा विभिन्न त्वचा संबंधी संवेदनाओं का मापन किया जाता है।
इनके अंतर्गत मनोदैहिक परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है। इसमें शरीर की कंपन (Oscillations) तथा विश्रामहीनता की अवस्था का भी मापन होता है।
इन परीक्षणों द्वारा रक्त संचार, मल-मूत्र, लार आदि का विश्लेषण किया जाता है।
इनके द्वारा समस्त मानसिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। संवेदनात्मक प्रभेद (Senory discrimination), ध्यान, कल्पना, बुद्धि, स्मृति आदि का मापन किया जाता है।
औद्योगिक स्थितियों में इनका सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। इसके प्रयोग के संबंध में टपजमसमे ने लिखा है-
- The production curve has been generally accepted as the most satisfactory test of futigue in determining the effect of methods and the conditions of work upon the capacity to work.
यद्यपि यह कहना अनुचित होगा कि ये सारे परीक्षण दोषमुक्त हैं। इनके दोषों का निवारण पूर्णरूपेण संभव नहीं है। सावधानी के द्वारा इनको उपयुक्त बनाया जा सकता है।