अल्फ़ोंसीन तालिका, जे १३वीं शताब्दी के बाद यूरोप केरो मानक पंचांग बनी गेलै
जोंआपने हिन्दू पंचांग पर जानकारी ढूंढी रहलो छियै, त हिन्दू पंचांग के लेख देखियै ।
पंचांग (अंग्रेज़ी: ephemeris) ऐसनो तालिका क कहलो जाय छै,जे विभिन्न समयो या तिथियो पर आकाश मँ खगोलीय वस्तुओ के दशा या स्थिति के ब्यौरा दै छै। १) तिथि, २) वार, ३) नक्षत्र, ४) योग,आरू ५) करण, ई पंचांग के पंच अंग छेकै | खगोलशास्त्र आरू ज्योतिषी मँ विभिन्न पंचांगो के प्रयोग होय छै। इतिहास में कई संस्कृतियों ने पंचांग बनाई हैं क्योंकि सूरज, चन्द्रमा, तारों, नक्षत्रों और तारामंडलों की दशाओं का उनके धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन में गहरा महत्व होता था। सप्ताहों, महीनों और वर्षों का क्रम भी इन्ही पंचांगों पर आधारित होता था। उदाहरण के लिए रक्षा बंधन का त्यौहार श्रवण के महीने में पूर्णिमा (पूरे चंद की दशा) पर मनाया जाता था।[१]
किसी भी विशेष कार्यक्रम को करने से पहले हिन्दू संस्कृति में प्राचीन काल से शुभ और अशुभ समय को देखने के लिए उस दिन के पंचांग यानि आज का पंचांग देखा जाता है इसलिए शादी-विवाह, नया व्यापार, घर प्रवेश और सभी विशेष कार्यक्रम के लिए पंचांग को महत्व दिया जाता है
१२वीं सदी ईसवी - क्रेमोना के जेरार्ड द्वारा अरबी ज़ीज पर आधारित 'तोलेदो की तालिकाएँ', जो यूरोप के प्रचलित पंचांग बन गए
१३वीं सदी ईसवी - मराग़ेह वेधशाला (ऑब्ज़रवेटरी) की ज़ीज-ए-इलख़ानी
१३वीं सदी ईसवी - 'तोलेदो की तालिकाओं' में कुछ ख़ामियाँ ठीक करने वाली 'अल्फ़ोंसीन तालिकाएँ', जो यूरोप का नया प्रमुख पंचांग बन गया
१४०८ ई - चीनी पंचांग
१४९६ ई - पुर्तगाल के अब्राऊं बेन सामुएल ज़ाकुतो का 'अल्मनाक पेरपेतूम'
१५०८ ई - यूरोपीय खोजयात्री क्रिस्टोफ़र कोलम्बस द्वारा जर्मन खगोलशास्त्री रेजियोमोंतानस के पंचांग का प्रयोग करके जमैका के आदिवासियों के लिए चाँद ग्रहण की भविष्यवाणी, जिस से वे अचम्भित रह गए
१५५१ ई - कोपरनिकस की अवधारणाओं पर आधारित एराज़मस राइनहोल्ड की 'प्रूटेनिक तालिकाएँ', जो यूरोप का नया मानक पंचांग बन गई
१५५४ ई - योहानेस स्टाडियस ने अपनी कृति में ग्रहों की स्थितियों की भविष्यवानियाँ करीं लेकिन उनमें कई ग़लतियाँ थी
१६२७ ई - योहानेस केप्लर की 'रूदोल्फ़ीन तालिकाएँ' नया यूरोपीय मानक बन गई