साँचा:भारतीय इतिहास पाषाण युग इतिहास केरो वू काल छेकै जबअ मानव के जीवन पत्थर सब (संस्कृत - पाषाणः) पर बहुत जादे आश्रित छेलै। उदाहरण लेली पत्थरो स शिकार करना, पत्थरो के गुफा सब मँ शरण लेना, पत्थरो स आग पैदा करना आरनि। एकरो तीन चरण मानलो जाय छै - पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल आरू नवपाषाण काल जे मानव इतिहास के आरम्भ (२५ लाख साल पूर्व) स ल करी क काँस्य युग तलक फैललो छै।[१]
पाषाण कालीन पत्थरो के उपकरण Archived २०२३-०३-१७ at the Wayback Machine बनाबै आरू ओकरा इस्तेमाल करै केरो विश्व मँ सबसें प्राचीनतम साक्ष्य इथोपिया आरू केन्या सँ मिललो छै। संभवतः ऑस्ट्रेलोपिथेकस द्वारा सबसें पहलो पत्थर के औजार बनैलो गेलो छेलै। लेकिन एकरो श्रेय होमो हैबिलस नामक प्रजाति क देलो जाय छै|
25_20 लाख साल सँ 12000 साल पहलें तलक।
भारत मँ एकरो अवशेष सोहन, बेलन आरू नर्मदा नदी घाटी मँ मिलै छै।
भोपाल के पास स्थित भीमबेटका नामक चित्रित गुफा सब मँ, शैलाश्रय आरू अनेक कलाकृति सब प्राप्त होलो छै।
विशिष्ट उपकरण- हैण्ड-ऐक्स (कुल्हाड़ी), क्लीवर आरू स्क्रेपर आरनि।
सम्भवतया 5 लाख वर्ष पूर्व द्वितीय हिमयुग के आरंभकाल मँ भारत मँ मानव अस्तित्व मँ ऐलै। लेकिन हाल ही मँ महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान सँ मिललो तथ्यो के रिपोर्ट आरू जानकारी के अनुसार मानव के उपस्थिति खब पहलें 14 लाख वर्ष पूर्व मानलो जाबै सकै छै। भारत मँ आदिमानव पत्थर के अनगढ़ आरू अपरिष्कृत औजारो के इस्तेमाल करै छेलै।[२]
पुरापाषाण कालीन लोग नेग्रिटो जनजाति के रहै| लोग खानाबदोश यानी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करै छेलै आरू जीविका के मुख्य आधार आखेट यानी कि शिकार छेलै। हालाँकि आखेटक के साथ-साथ खाद्य संग्राहक होना पूरापाषाण काल[३] केरो विशेषता छेकै|
12000 साल सँ ल करी क 10000 साल पहलें तलक। ई युग क माइक्रोलिथ (Microlith) अथवा लघुपाषाण युग भी कहलो जाय छै।[४]
युग | काल | औजार | अर्थव्यवस्था | शरण स्थल | समाज | धर्म |
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पाषाण युग | पुरापाषाण काल | हाथ सँ बनलो या प्राकृतिक वस्तुओ के हथियार/औजार के रूप मँ उपयोग--- भाला, कुल्हाड़ी, धनुष, तीर, सुई, गदा | शिकार व खाद्य संग्रह | अस्थाई जीवन शैली - गुफा, अस्थाई झोपड़ी सब, मुख्य रूप सँ नदी आरू झील के करगी | २५-१०० लोगो के समूह (अधिकांशतः एक्के परिवार के सदस्य) | मध्य पुरापाषाण काल के आसपास मरण पश्चात जीवन मँ विश्वास के साक्ष्य कब्र आरू अन्तिम संस्कार के रूप मँ मिलै छै। |
मध्यपाषाण काल (known as the Epipalaeolithic in areas not affected by the Ice Age (such as Africa)) | हाथ सँ बनलो अथवा प्राकृतिक वस्तुओ के हथियार/औजार के रूप मँ उपयोग- धनुष, तीर, मछली के शिकार व भंडारण के औजार, नौका | कबिला सब आरू परिवार समूह | ||||
नवपाषाण काल आग के खोज ई काल मँ होलो रहै | हाथ सँ बनलो या प्राकृतिक वस्तुओ के हथियार/औजार के रूपो मँ उपयोग - चिसल (लकड़ी व पत्थर छीलै लेली), खेती मँ प्रयुक्त होने वाले औजार, मिट्टी के बरतन, हथियार | खेती, शिकार आरू खाद्य संग्रह, मछली केरो शिकार आरू पशुपालन | खेतो के आस पास बसलो छोटो बस्ती सब सँ ल करी क काँस्य युग के नगरो तलक | कबीला सब सँ ल करी क काँस्य युग केरो राज्य सब तलक | ||
काँस्य युग | तांबा सब आरू काँस्य केरो औजार, मिट्टी केरो बरतन बनाबै के चाक | खेती, पशुपालन, हस्तकला आरू व्यापार | ||||
लौह युग | लोहा सब के औजार |
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ऐसने शैल चित्र उत्तर प्रदेश केरो मिर्ज़ापुर जिला के विंध्यपहाड़ी केरो कंदरा मँ भी मिललो छेलै। जेकरा सीता कोहबर नामक स्थान प 12 फरवरी 2014 क एगो गुमनाम पत्रकार शिवसागर बिंद नँ खोजी निकालले रहै। जेकरो पुष्टि लेली उ० प्र० राज्य पुरातत्व विभाग केरो क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी सिनी नँ करलकै।
जनपद मुख्यालय मिर्ज़ापुर सँ लगभग 11-12 किलोमीटर दूर टांडा जलप्रपात सँ लगभग एक किलोमीटर पहलें “सीता कोहबर” नामक पहाड़ी प एगो कन्दरा मँ प्राचीन शैल-चित्रो के अवशेष प्रकाश मँ ऐलो छै। शिव सागर बिंद, जन्संदेश टाइम्स म़िर्जा़पुर सूचना पर उ० प्र० राज्य पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी के साथ उक्त शैलाश्रय का निरीक्षण किया और शैलचित्रों को प्राचीन तथा ऐतिहासिक महत्त्व का बताया।
लगभग पांच मीटर लम्बी गुफा, जिसकी छत 1.80 मीटर ऊँची तथा तीन मीटर चौड़ी है, में अनेक चित्र बने हैं। विशालकाय मानवाकृति, मृग समूह को घेर कर शिकार करते भालाधारी घुड़सवार शिकारी, हाथी, वृषभ, बिच्छू तथा अन्य पशु-पक्षियों के चित्र गहरे तथा हल्के लाल रंग से बनाये गए हैं, इनके अंकन में पूर्णतया: खनिज रंगों (हेमेटाईट को घिस कर) का प्रयोग किया गया है। इस गुफा में बने चित्रों के गहन विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इनका अंकन तीन चरणों में किया गया है। प्रथम चरण में बने चित्र मुख्यतया: आखेट से सम्बन्धित है और गहरे लाल रंग से बनाये गए हैं, बाद में बने चित्र हल्के लाल रंग के तथा आकार में बड़े व शरीर रचना की दृष्टि से विकसित अवस्था के प्रतीत होते हैं साथ ही उन्हें प्राचीन चित्रों के उपर अध्यारोपित किया गया है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र (मिर्ज़ापुर व सोनभद्र) में अब तक लगभग 250 से अधिक शैलचित्र युक्त शैलाश्रय प्रकाश में आ चुके हैं, जिनकी प्राचीनता ई० पू० 6000 से पंद्रहवी सदी ईस्वी मानी जाती है। मिर्ज़ापुर के सीता कोहबर से प्रकाश में आये शैलचित्र बनावट की दृष्टि से 1500 से 800 वर्ष प्राचीन प्रतीत होते हैं। इन क्षेत्रों में शैलचित्रों की खोज सर्वप्रथम 1880-81 ई० में जे० काकबर्न व ए० कार्लाइल ने ने किया तदोपरांत लखनऊ संग्रहालय के श्री काशी नारायण दीक्षित, श्री मनोरंजन घोष, श्री असित हालदार, मि० वद्रिक, मि० गार्डन, प्रोफ़० जी० आर० शर्मा, डॉ० आर० के० वर्मा, प्रो० पी०सी० पन्त, श्री हेमराज, डॉ० जगदीश गुप्ता, डॉ० राकेश तिवारी तथा श्री अर्जुनदास केसरी के अथक प्रयासों से अनेक नवीन शैल चित्र समय-समय पर प्रकाश में आते रहे हैं। इस क्रम में यह नवीन खोज भारतीय शैलचित्रों के अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है।