बंगाल केरऽ खाड़ी | |
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बंगाल की खाड़ी का मानचित्र | |
स्थान | दक्षिण एशिया |
निर्देशांक | 15°00′00″N 88°00′00″E / 15.00000°N 88.00000°Eनिर्देशांक: 15°00′00″N 88°00′00″E / 15.00000°N 88.00000°E |
प्रकार | खाड़ी |
मुख्य अन्तर्वाह | हिन्द महासागर |
द्रोणी देश | भारत, बांग्लादेश, थाईलैण्ड, म्यांमार, इण्डोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका[१][२] |
अधिकतम लम्बाई | 2090 कि.मी. |
अधिकतम चौड़ाई | १६१० कि.मी |
सतही क्षेत्रफल | 2,172,000 वर्ग कि.मी |
औसत गहराई | 2,600 मी. |
अधिकतम गहराई | 4,694 मी. |
बंगाल केरऽ खाड़ी विश्व केरऽ सबस॑ बड़ऽ खाड़ी छेकै[३] आरू हिंद महासागर केरऽ पूर्वोत्तर भाग छेकै। इ मोटा रूपऽ म॑ त्रिभुजाकार खाड़ी छेकै जे पश्चिमी ओर स॑ अधिकांशतः भारत आरू शेष श्रीलंका, उत्तर स॑ बांग्लादेश आरू पूर्वी ओर स॑ बर्मा (म्यांमार) तथा अंडमानआरू निकोबार द्वीपसमूह स॑ घिरलऽ छै। बंगाल केरऽ खाड़ी के क्षेत्रफल 2,172,000 किमी² छै। प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों के अन्सुआर इसे महोदधि कहा जाता था।[४]
बंगाल की खाड़ी 2,172,000 किमी² के क्षेत्रफ़ल में विस्तृत है, जिसमें सबसे बड़ी नदी गंगा तथा उसकी सहायक पद्मा एवं हुगली, ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदी जमुना एवं मेघना के अलावा अन्य नदियाँ जैसे इरावती, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, कावेरी आदि नदियां सागर से संगम करती हैं। इसमें स्थित मुख्य बंदरगाहों में चेन्नई, चटगाँव, कोलकाता, मोंगला, पारादीप, तूतीकोरिन, विशाखापट्टनम एवं यानगॉन हैं।
अंतरराष्ट्रीय जल सर्वेक्षण संगठन ने बंगाल की खाड़ी की परिधि इस प्रकार बतायी हैं::[५]
प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों एवं मान्यता अनुसार बंगाल की खाड़ी नामक जलराशि को महोदधि[४][६] नाम से जाना जाता था। इसके अलावा अन्य मध्यकालीन मानचित्रों में इसे साइनस गैन्जेटिकस या गैन्जेटिकस साइनस, अर्थात "गंगा की खाड़ी" नाम से भी दिखाया गया है।[७] १०वीं शताब्दी में चोल राजवंश के नेतृत्त्व में निर्मित ग्रन्थों में इसे चोल सरोवर नाम भी दिया गया है। कालांतर में इसे बंगाल क्षेत्र के नाम पर बंगाल की खाड़ी नाम मिला।[८]
भारतीय उपमहाद्वीप की बहुत सी प्रसिद्ध एवं बड़ी नदियाँ पश्चिम से पूर्ववत बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में सागर-संगम पाती हैं। गंगा इनमें से उत्तरतम नदी है। इसकी प्रमुख धारा भारत से बांग्लादेश में प्रवेश कर पद्मा नदी नाम से निकलकर वहीं मेघना नदी से मिल जाती है। इसके अलावा ब्रह्मपुत्र पूर्व से पश्चिमी ओर बहकर भारत के असम से बांग्लादेश में प्रवेश करती है और दक्षिणावर्ती होकर जमुना नदी कहलाती है। जमुना पद्मा से मिलती है और पद्मा मेघना नदी से मिलती है। इसके बाद ये अन्ततः बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। वहां गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं मेघना विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा सुंदरबन बनाती हैं जो आंशिक रूप से भारत के पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश (पूर्व नाम पूर्वी बंगाल) में आता है। इस मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंग क्षेत्र हैं। ब्रह्मपुत्र 2,948 कि॰मी॰ (1,832 मील) लम्बी विश्व की २८वीं बड़ी नदी है। इसका उद्गम तिब्बत में है। गंगा नदी की एक अन्य धारा भारत में पश्चिम बंगाल में ही अलग होकर हुगली नां से कोलकाता शहर से होकर बंगाल की खाड़ी के भारतीय भाग में ही गिरती है।
बंगाल के दक्षिण में, महानदी, गोदावरी, कृष्णा नदी एवं कावेरी नदियाँ भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम से पूर्वाभिमुख बहने वाली और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली प्रमुख नदियां हैं। इनके अलावा कई छोटी नदियाम सीधे ही इस खाड़ी में भी गिरती हैं, जिनमें से लघुतम नदी 64 कि॰मी॰ (40 मील) लम्बी कोउम नदी है।
बर्मा की इरावती नदी भी इस खाड़ी के एक भाग, अंडमान सागर में ही गिरती है जिसके मुहाने पर एक समय घने मैन्ग्रोव जंगल हुआ करते थे।
विश्व के सबसे बड़े बंदरगाहों में से कुछेक— चटगांव बांग्लादेश में, तथा चेन्नई बंदरगाह भारत में— इसी खाड़ी में स्थित हैं। इनके अलावा अन्य बड़े बंदरगाह नगरों में मोंगला, कलकत्ता (पश्चिम बंगाल एवं भारत की पूर्व राजधानी) तथा यंगून, बर्मा का सबसे बड़ा शहर एवं पूर्व राजधानी, आते हैं। अन्य भारतीय बंदरगाहों में काकीनाडा, पॉण्डीचेरी, पारादीप एवं विशाखापट्टनम भी हैं।
इस खाड़ी क्षेत्र में बहुत से द्वीप एवं द्वीपसमूह हैं, जिनमें प्रमुख हैं भारत के अंडमान द्वीपसमूह, निकोबार द्वीपसमूह एवं मेरगुई द्वीप। बर्माई तट के पूर्वोत्तर में चेदूबा एवं अन्य द्वीपसमूह दलदली ज्वालामुखी श्रेणी में आते हैं जो कभी कभार सक्रिय भी हो जाते हैं। अंडमान द्वीपसमूह में ग्रेट अंदमान द्वीपशृंखला प्रमुख है, वहीं रिचीज़ द्वीपसमूह लघु द्वीपों की शृंखला है। अंदमान एवं निकोबार द्वीपसमूह के कुल ५७२ ज्ञात द्वीपों में से मात्र ३७ द्वीपों एवं लघुद्वीपों, अर्थात केवल ६.५% पर ही आबादी हैं।[९]
बंगाल की खाड़ी एक क्षारीय जल का सागर है। यह हिन्द महासागर का भाग है।
पृथ्वी का स्थलमंडल कुछ भागों में टूटा हुआ है जिन्हें विवर्तनिक प्लेट्स कहते हैं। बंगाल की खाड़ी के नीचे जो प्लेट है उसे भारतीय प्लेट कहते हैं। यह प्लेट हिन्द-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट का भाग है और मंथर गति से पूर्वोत्तर दिशा में बढ़ रही है। यह प्लेट बर्मा लघु-प्लेट से सुंडा गर्त पर मिलती है। निकोबार द्वीपसमूह एवं अंडमान द्वीपसमूह इस बर्मा लघु-प्लेट का ही भाग हैं। भारतीय प्लेट सुंडा गर्त में बर्मा प्लेट के नीचे की ओर घुसती जा रही है। यहां दोनों प्लेट्स के एक दूसरे पर दबाव के परिणामस्वरूप तापमान एवं दबाव में ब्ढ़ोत्तरी होती है। यह बढ़ोत्तरी कई ज्वालामुखी उत्पन्न करती है जैसे म्यांमार के ज्वालामुखी और एक अन्य ज्वालामुखी चाप, सुंडा चाप। २००४ के सुमात्र-अंडमान भूकम्प एवं एशियाई सूनामी इसी क्षेत्र में उत्पन्न दबाव के कारण बने एक पनडुब्बी भूकम्प के फ़लस्वरूप चली विराट सूनामी का परिणाम थे।[१२]
सीलोन द्वीप से कोरोमंडल तटरेखा से लगी-लगी एक ५० मीटर चौड़ी पट्टी खाड़ी के शीर्ष से फ़िर दक्षिणावर्त्त अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को घेरती जाती है। ये १०० सागर-थाह रेखाओं से घिरी है, लगभग ५० मी. गहरे। इसके परे फ़िर ५००-सागर-थाह सीमा है। गंगा के मुहाने के सामने हालांकि इन थाहों के बीच बड़े अंतराल हैं। इसका कारण डेल्टा का प्रभाव है।
एक 14 कि.मी चौड़ा नो-ग्राउण्ड स्वैच बंगाल की खाड़ी के नीचे स्थित समुद्री घाटी है। इस घाटी के अधिकतम गहरे अंकित बिन्दुओं की गहरायी १३४० मी. है।[१३] पनडुब्बी घाटी बंगाल फ़ैन का ही एक भाग है। यह फ़ैन विश्व का सबसे बड़ा पनडुब्बी फ़ैन है।[१४][१५]
बंगाल की खाड़ी जैव-विविधता से परिपूर्ण है, जिसके कुछ अंश हैं प्रवाल भित्ति, ज्वारनदमुख, मछली के अंडेपालन एवं मछली पालन क्षेत्र एवं मैन्ग्रोव। बंगाल की खाड़ी विश्व के ६४ सबसे बड़े सागरीय पारिस्थितिक क्षेत्रों में से एक है।
केरीलिया जेर्दोनियाई बंगाल की खाड़ी का एक समुद्री सांप होता है। एक शंख शेल (Conus bengalensis) जिसे ग्लोरी ऑफ़ बंगाल अर्थात बंगाल की शोभा कहा जाता है, इसको यहां के सागरतटों पर यत्र-तत्र देखा जा सकता है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती है।[१६] ओलिव रिडले नामक समुद्री कछुआ विलुप्तप्राय प्रजातियों में आता है, इसको गहीरमाथा सागरीय उद्यान, गहीरमाथा तट, ओडिशा में पनपने लायक वातावरण उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा यहां मैर्लिन, बैराकुडा, स्किपजैक टूना, (Katsuwonus pelamis), यलोफ़िन टूना, हिन्द-प्रशांत हम्पबैक डॉल्फ़िन (Sousa chinensis), एवं ब्राइड्स व्हेल (Balaenoptera edeni) यहां के कुछ अन्य विशिष्ट जीवों में से हैं। बे ऑफ़ बंगाल हॉगफ़िश (Bodianus neilli) एक प्रकार की व्रास मीन है जो पंकिल लैगून राख या उथले तटीय राख में वास करती है। इनके अलावा यहाम कई प्रकार के डॉल्फ़िन झुण्ड भी दिखाई देते हैं, चाहे बॉटल नोज़ डॉल्फ़िन (Tursiops truncatus), पैनट्रॉपिकल धब्बेदार डॉल्फ़िन (Stenella attenuata) या स्पिनर डॉल्फ़िन (Stenella longirostris) हों। टूना एवं डॉल्फ़िन प्रायः एक ही जलक्षेत्र में मिलती हैं। तट के छिछले एवं उष्ण जल में, इरावती डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) भी मिल सकती हैं।[१७][१८] डब्ल्यूसीएस के शोधकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के सुंदरबन इलाके और बंगाल की खाड़ी के लगे जल क्षेत्र में जहां कम खारा पानी है, वहां हत्यारी व्हेल मछलियों के नाम से कुख्यात अरकास प्रजाति से संबंधित करीब 6,000 इरावदी डॉल्फिनों को देखा गया था।[१९]
ग्रेट निकोबार बायोस्फ़ियर संरक्षित क्षेत्र में बहुत से जीवों को संरक्षण मिलता है जिनमें से कुछ विशेष हैं: खारे जल का मगर (Crocodylus porosus), जाइंट लेदरबैक समुद्री कछुआ (Dermochelys coriacea), एवं मलायन संदूक कछुआ (Cuora amboinensis kamaroma)।
एक अन्य विशिष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध बाघ प्रजाति जो विलुप्तप्राय है, रॉयल बंगाल टाइगर, को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण मिला हुआ है। यह उद्यान गंगा-सागर-संगम मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंगलों में स्थित है।[२०][२१]
बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं। श्रीलंका, सेरेन्डिब, या रत्न – द्वीप कहलाता है। वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। इनके अलावा गार्नेट व अन्य रत्नों की भारत के ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में काफ़ी पैदाइश है।[२२]
जनवरी से अक्टूबर माह तक धारा उत्तर दिशा में दक्षिणावर्ती चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय धाराएं या ईस्ट इण्डियन करेंट्स कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ती है और मई माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह से टकराती है। इसके बाद भारत की मुख्य भूमि के उत्तर-पूर्वी तट पर जून माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक पहुंचती है।
वर्ष के शेष भाग में, वामावर्ती धाराएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय शीतकालीन जेट (ईस्ट इण्डियन विन्टर जेट) कहा जाता है। सितंबर एवं दिसम्बर में ऋतुएं काफ़ी सक्रिय हो जाती हैं और इसे वर्षाकाल (मॉनसून) कहा जाता है। इस ऋतु में खाड़ी में बहुत से चक्रवात बनते हैं जो पूर्वी भारत को प्रभावित करते हैं। इनसे चलने वाले आंधी-तूफ़ान से निबटने हेतु कई प्रयास किये जाते हैं।[२३]
मुख्य लेख: बंगाल की खाड़ी में उष्णकटिबंधीय चक्रवात
बंगाल की खाड़ी के ऊपर ऐसा तूफ़ान जिसमें गोल घूमती हुई हवाएं ७४ मील (११९ कि.मी) प्रति घंटा की गति से चल रही हों, उसे चक्रवात कहा जाता है; और यदि ये अटलांटिक के ऊपर चल रहा हो तो उसे हरिकेन कहा जाता है।[२४] १९७० में आये भोला चक्रवात से १-५ लाख बांग्लादेश निवासी मारे गये थे।
बंगाल की खाड़ी में व्यापार करने वाले पहले उद्योगों में कम्पनी ऑफ़ मर्चेन्ट्स ऑफ़ लंडन थे जिन्हें कालांतर में ईस्ट इंडिया कंपनी कहा गया। गोपालपुर, ओडिशा प्रमुख व्यापार केन्द्र बना था। इनके अलावा खाड़ी तट पर सक्रिय रही अन्य व्यापारिक कम्पनियों में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी एवं फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी थीं।[३०]
BIMSTEC अर्थात बे ऑफ़ बंगाल इनिशियेटिव फ़ॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्निकल एण्ड इकॉनिमिक कोऑपरेशन (यानि बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग हेतु बंगाल की खाड़ी में पहल) के सहयोग द्वारा बंगाल की खाड़ी के निकटवर्ती राष्ट्रों जैसे भारत, बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार एवं थाईलैण्ड में मुक्त अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संभव हुआ है।
एक नयी सेतुसमुद्रम जहाजरानी नहर परियोजना प्रस्तावित है जिसके द्वारा मन्नार की खाड़ी को बंगाल की खाड़ी से पाक जलडमरूमध्य से होते हुए जोड़ा जायेगा। इस परियोजना के पूरा होने से भारत में पूर्व से पश्चिम का व्यापारिक समुद्री आवागमन बिना श्रीलंका की लम्बी परिक्रमा के सुलभ हो जायेगा। अभी इस जलडमरूमध्य में छिछला सागर है और चट्टानें हैं जिनके कारण यहां से जहाजों का आवागमन संभव नहीं होता है।
बंगाळ की खाड़ी की तटरेखा के समीपी क्षेत्रों में मछुआरों की ढोनी और कैटामरान नावें घूमती रहती हैं। यहां मछुआरे सागरीय मछलियों की २६ से ४४ प्रजातियों को पकड़ पाते हैं।[३१] बंगाल की खाड़ी से एक वर्ष में कुल पकड़ी गयी मछलियों की औसत मात्रा २० लाख टन तक पहुंचती है।[३२] विश्व के कुल मछुआरों का लगभग ३१% इसी खाड़ी पर निर्भर है और यहीं रहता है।[३३]
बंगाल की खाड़ी मध्य पूर्व से फिलिपींस सागर तक के क्षेत्र के बीचोंबीच स्थित है। वैमानिक सामरिक महत्त्व को देखें तो भी यह क्षेत्र के प्रमुख विश्व वायु मार्गों के बीच में स्थित है। यह दो वृहत आर्थिक खण्डों सार्क और आसियान के बीच आती है। इसके उत्तर में चीन का दक्षिणी भूमिबद्ध क्षेत्र होने के साथ साथ भारत और बांग्लादेश के प्रमुख बंदरगाह भी बने हैं। इन दोनों ही राष्ट्रों में आर्थिक उत्थान होता जा रहा है, हालांकि ये जनतंत्र हैं। गहरे सागर में आतंकवाद की रोकथाम करने के उद्देश्य से भारत, चीन और बांग्लादेश ने मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया से नौसैनिक सहयोग के समझौते किये हुए हैं।[३४]
भारत के लिये बंगाल की खाड़ी सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसका प्रभाव क्षेत्र खाड़ी के प्राकृतिक विस्तार में ही आता है। दूसरे मुख्य भूमि से दूरस्थ अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह इसी खाड़ी द्वारा भारत से जुड़े हैं। तीसरे भारत के कई प्रमुख महत्त्वपूर्ण बंदरगाह जैसे कोलकाता चेन्नई, विशाखापट्टनम और तूतीकोरिन बंगाल की खाड़ी में ही स्थित है।[३५]
हाल ही में चीन ने इस क्षेत्र में प्रभाव डालने की दृष्ति से म्यांमार एवं बांग्लादेश से गठजोड़ समझौते के भी प्रयास आरंभ किये हैं।[३६] यहीं संयुक्त राज्य ने भी भारत, बांग्लादेश, मलेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड के संग विभिन्न बड़े अभ्यास भी किये हैं।[३७][३८] बंगाल की खाड़ी का अब तक का सबसे बड़ा युद्धाभ्यास मालाबार २००७, वर्ष २००७ में हुआ था। इसमें संयुक्त राज्य, सिंगापुर, जापान और ऑस्ट्रेलिया से सामरिक जलपोत आये थे। इस अभ्यास में भारत भि प्रतिभागी था। क्षेत्र में प्राकृतिक गैस के बड़े भण्डार की संभावना पर भी भारत की नज़र है। [३४] यहाम के तेल एवं गैस भंडारों पर अधिकार के मामले को लेकर भारत एवं म्यामार के बांग्लादेश से संबंधों में कुछ खटास भी आ चुकी है।
बांग्लादेश और म्यांमार के बीच सागरीय सीमा को लेकर २००८ एवं २००९ में सैन्य तनाव भी बढ़े थे। अब बांग्लादेश अन्तर्राष्ट्रीय सागर विधि न्यायालय के माध्यम से भारत और म्यांमार से सागरीय जलसीमा के विवाद सुलझाने के प्रयास में कार्यरत है।[३९]
एशियाई भूरा बादल (एशियन ब्राउन क्लाउड), अधिकांश दक्षिणी एशिया और हिन्द महासागर के ऊपर प्रतिवर्ष जनवरी और मार्च के मध्य छाने वाली एक वायु प्रदूषण की पर्त है, जो मुख्यतः बंगाल की खाड़ी के ऊपर केन्द्रित रहती है। यह पर्त वाहनों के धूएं एवं औद्योगिक प्रदूषित वाष्प तथा अय्न प्रदूषण स्रोतों का मिलाजुला रूप होती है।[४०]
सीमापार का मुद्दा वह पर्यावरण संबंधी समस्या होता है, जिसमें या तो समस्या का कारण या फ़िर उसका प्रभाव किसी राष्ट्रीय सीमा के पार तक पहुंच जाता है। या फ़िर इस समस्या का वैश्विक पर्यावरण में योगदान हो जाता है। ऐसी समस्या का क्षेत्रीय समाधान ढूंढना वैश्विक पर्यावरण लाभ माना जाता है। बंगाल की खाड़ी से संबंधित आठ राष्ट्रों द्व्रा तीन प्रधान सीमापार समस्याएं (या ध्यान देने योग्य क्षेत्र) गिने हैं जिनका प्रभाव खाड़ी क्षेत्र के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बंगाल की खाड़ी वृहत सागरीय प्रिस्थितिकी परियोजना (अर्थात बे ऑफ़ बंगाल लार्ज मैरीन ईकोसिस्टम प्रोजेक्ट/ BOBLME) के उद्योग से, इन आठ राष्ट्रों ने (२०१२) इन मुद्दों और उनके कारणों तथा निवारण पर प्रत्यिक्रियाएं एकत्रित की हैं, जिन पर आधारित भविष्य के योजना क्रियान्वयन कार्यक्रम बनेंगे तथा लागू किए जायेंगे।
बंघाल की खाड़ी का मत्स्य उत्पादन ६० लाख टन प्रतिवर्ष है, जो विश्व के कुल उत्पादन के ७% से भी अधिक है। मत्स्यपालन एवं मछुआरों से संबंधित प्रधान सांझी सीमापार मुद्दों में आते हैं: समग्र मत्स्य उत्पादन में बढ़ती कमी; प्रजाति संरचनाओं में होते जा रहे परिवर्तन, पकड़ी जा रही मत्स्य मात्रा में छोटी मछलियों का बड़ा अनुपात (जिसके कारण युवा होने से पूर्व ही अच्छी प्रजाति की मत्स्य मारी जाती हैं) और सागरीय जैवविविधता में परिवर्तन, विशेषकर लुप्तप्राय एवं भेद्य प्रजातियों की हानि से। इन मुद्दों के सीमापार होने का कारण है: कई मत्स्य प्रजातियां BOBLME राष्ट्रों के जल में सांझी हैं, इसके अलावा मछलियों या उनके लार्वा के एक जल-सीमा से दूसरे में स्थानांतरगमन। मछुआरे राष्ट्रीय अधिकार-क्षेत्रों व सीमाओं का उल्लंघन करते ही रहते हैं, चाहे या अनचाहे, संवैधानिक या अवैध रूप से, जिनका प्रमुख कारण है एक क्षेत्र मेंमछुआरों की व खपत की अधिकता जो मछुआरों को अधिक मछली पकड़ने के लिये बाहरी व दूसरे निकटवर्ती क्षेत्र में जाने को मजबूर करती है। लगभग सभी राष्ट्रों में मछली पकड़ने के व्यवसाय की ये यह समस्या छोटे या बड़े रूप से आमने आती ही है। बंगाल की खाड़ी बड़े रूप से लुप्तप्राय व खतरे वाली प्रजातियों के लुप्त होने क्ली वैश्विक समस्या में बड़ा योगदान देती है।
इसके प्रमुख कारणों में आते हैं, मछली पकड़ने हेतु खुले क्षेत्र (सागर में पूरी सीमा चिह्नित करता संभव नहीं है), सरकार का अधिक मछली उत्पादन पर जोर, मछुआरों को मिलने वाली छूटों व सब्सिडियरीज़ में कमी और नावों व नाविकों द्वारा अधिक खपत के प्रयास, बढ़ती हुई मछली की खपत, अप्रभावी फ़िशरी प्रबंधन एवं अवैध एवं ध्वंसात्मक मत्स्य-उद्योग।
बंगाल की खाड़ी उच्च श्रेणी की जैवविविधता का क्षेत्र है, जहां बड़ी संख्या में जीवों की खतरे वाली तथा लुप्तप्राय प्रजातियां बसती हैं। पर्यावासों से संबंधित सीमापार के प्रमुख मुद्दों में: मैन्ग्रोव पर्यावासों की क्षति एवं क्षय, कोरल रीफ़्स का पतन, सागरीय घासों की हानि एवं क्षति। इन मुद्दों के सीमापार होने के मुख्य कारण इस प्रकार से हैं: सभी BOBLME राष्ट्रों में सभी तीन महत्त्वपूर्ण पर्यावास क्षेत्र स्थित हैं। इसके अलावा इन सभी राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न कारणों से होने वाले भूमि एवं तटीय विकास समान होते हैं। इन पर्यावासों के उत्पादों के व्यापार सभी राष्ट्रों में समान हैं। इन सभी राष्ट्रों की जलवायु में बदलाव के प्रभाव सांझे होते हैं। इन मुद्दों के प्रमुख कारणों में: तटीय क्ष्त्रों में खाद्य सुरक्षा निम्न स्तर की है, तट विकास योजनाओं की भारी कमी, तटीय पर्यावासों से प्राप्त उत्पादों के व्यापार में तेज बढ़ोत्तरी, तटिय विकास एवं औद्योगिकरण, अप्रभावी सागरीय संरक्षित क्षेत्र एवं प्रवर्तन में कमी; जल-बहाव के आड़े आने वाले विकास, पर्यावासों के लिये हानिकारक कृषि अभ्यास एवं तेजी से बढ़ता पर्यटन उद्योग।
प्रदूषण और जल गुणवत्ता संबंद्घी प्रधान सीमापार के मुद्दों में: मल-निकास (सीवर) जनित रोगजनक (पैथोजनक) एवं अन्य कार्बनिक मल-अवशेष; ठोस अपशिष्ट/समुद्री कूड़ा; तेल-प्रदूषण; निरंतर उपस्थित कार्बनिक प्रदूषक (POP) एवं उपस्थित विषाक्त पदार्थ (PTSs); अवसाद कण एवं भारी धातु अवशेष। इन मुद्दों की सीमापार होने के स्थिति है: बिना या आंशिक शुद्धिकृत किया सीवेज निर्वहन एक सभी की सांझी समस्या है। गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदियों द्वारा लाये गए कार्बनिक अपशिष्ट एवं अवशेष सीमाएं पार कर ही जाते हैं और बड़े स्तर पर हाईपॉक्सिया का कारण बनते हैं। प्लास्टिक एवं परित्यक्त मछली पकड़ने के गियर राष्त्रीय सीमाओं से परे जल के रास्ते पहुंच जाते हैं। नदियों द्वारा उच्च-पोषक एवं खनिज अपशिष्ट भी सीमाओं के बन्धन से परे रहते हैं। भिन्न राष्त्रों के कानूनों एवं नौवहन मल निर्वहन नियमों में भिन्नता और उसके प्रवर्तन में कमी के कारण भी अवशेष और अपशिष्ट सीमाएं पार कर जाते हैं। इसी कारण टारबॉल लम्बी दूरियाम तय कर जाते हैं।POPs/PTSs एवं पारा, साथ ही कार्बन-पारे के यौगिक भि लम्बी दूरियां तय कर जाते हैं। अवसादन के कारण और भारी धातुओं के संदूषण से सीमापार भी प्रदूषण फ़ैलता रहता है। इन मुद्दों के प्रमुख कारण है: बढ़ती तटीय जनसंख्या घनत्व और शहरीकरण; प्रति व्यक्ति उत्पन्न अधिक कचरे वृद्धि, जिसके परिणामस्वरूप उच्च खपत, अपशिष्ट प्रबंधन करने के लिए आवंटित अपर्याप्त धन, BOBLME देशों में उद्योग हेतु निकटवर्ती देशों से पलायन और छोटे उद्योगों के प्रसार।
उत्तरी सर्कार वंश ने बंगाल की खाड़ी के पश्चिमी तटीय इलाके पर अपना आधिपत्य जमाया और कालांतर में वही भारत की मद्रास स्टेट बना। राजराज चोल प्रथम कालीन चोल राजवंश (९वीं – १२वीं शताब्दी) ने १०१४ ई. में बंगाल की खाड़ी की पश्चिमी तटरेखा पर अपना अधिकार किया और इसी कारण तत्कालीन बंगाल की खाडी चोल-सागर भी कहलायी।[२७] काकातिया राजवंश ने खाड़ी के गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच के तटीय दोआब क्षेत्र पर अधिकार किया था। प्रथम शताब्दी ईसवी के मध्य में कुशाणों ने उत्तर भारत पर आक्र्मण कर अपने राज्य का विस्तार बंगाल की खाड़ी तक किया। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने राज्य का विस्तार उत्तर भारत में बंगाल की खाड़ी तक किया था। बंगाल में वर्तमान डायमंड हार्बर के निकटवर्ती हाजीपुर पर पुर्तगाली समुद्री लुटेरों का काफ़ी समय तक अधिकार रहा। १६वीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने बंगाल की खाड़ी के उत्तर में चिट्टागॉन्ग में अपनी व्यापारिक पोस्ट, पोर्तो ग्रान्दे और सातगांव में पोर्तो पेक्विनो की स्थापना की।[४१]
पोर्ट ब्लेयर में बनी सेलुलर जेल जो "काला पानी" के नाम से प्रसिद्ध थी, अंग्रेज़ों ने १८९६ में भारतीय स्वाधीनता संग्राम के कैदियों को आजीवन बंदी बनाने हेतु बनवायी थी। यह भी अंडमान द्वीपसमूह में स्थित है।
सागरीय पुरातत्त्वशास्त्र या मैरीन आर्क्योलॉजी प्राचीन लोगों के अवशेष पदारथों एवं वस्तुओं के अध्ययन को कहते हैं। इसकी एक विशेष शाखा डूबे जहाजों की पुरातात्त्विकी के अन्तर्गत्त टूटे एवं डूबे पुरातन जहाजों के अवशेषों का अध्ययनकिया जाता है। पाषाण व धात्विक लंगर, हाथी दांत, दरयाई घोड़े के दांत, चीनी मिट्टी के बर्तन, दुर्लभ काठ मस्तूल एवं सीसे के लट्ठे आदि कई वस्तुएं ऐसी होती हैं, जो काल के साथ खराब नहीं होती हैं और बाद में पुरातत्त्वशस्त्रियों के अध्ययन के लिये प्रेरणा बनती हैं, जिससे उनके बारे में ज्ञान लिया जा सके तथा उनसे उनके समय का ज्ञान किया जा सके। कोरल रीफ़्स, सूनामियों, चक्रवातों, मैन्ग्रोव की दलदलों, युद्धों एवं टेढ़े-मेढ़े समुद्री मार्गों का मिला-जुला योगदान उन जहाजों के टूटने या डूबने में रहा था।[४२]
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