मूल-भारोपीय भाषासमूह या फिरू आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा (आ॰हि॰यू॰), जेकरा अंग्रेजी भाषा मँ प्रोटो-इंडो-यूरोपियन भाषा (रोमन लिपि मँ: Proto-Indo-European) भी कहलौ जाबै छै, भाषावैज्ञानिक द्वारा पूरे हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार क सब्भे भाषा सिनी क एकमात्र प्राचीन जननी भाषा मानलौ जाबै छै। मानलौ जाबै छै की एकरा प्राचीन काल मँ मूल-भारोपीय लोग बोलै छेलै, किंतु इ भाषा हजार बरस पूर्व ही पूर्ण रूप सँ लुप्त होय चुकलौ छेलै। ढेरी सिनी हिन्द-यूरोपीय भाषा सिनी केरौ सजातीय शब्द क एक-दोसरा क तुलना केरौ बाद भाषावैज्ञानिक न हैय लुप्त भाषा क पुनर्निर्माण करलौ छै, जेकरा सँ एकरौ शब्द क अनुमान लगैलौ जाबै सकै छै।
भाषावैज्ञानिक अनुमान लगाबै छै की आदिम-हिन्द-यूरोपीय भाषा लगभग 3700 ई॰पू॰ तक बोललौ जाबै छेलै आरो फिरू ओकरौ विभिन्न भाषा सिनी मँ खंडन होबै लागलै। हैय तिथि केरौ बारे मँ विद्वान मँ हजार बरस हिन्नअ-हुन्नअ तक त परस्पर मतभेद छेलै। हैय बातो प ढेरी अवधारणा सिनी छै की हैय भाषा क बोलै बला कहाँ रहै छेलै, लेकिन ढेरी सिनी पश्चिमी विद्वान् कुरगन अवधारणा मँ विश्वास राखै छै। कुरगन अवधारणा केरौ अनुसार हैय भाषा क बोलै बला मूल-भारोपीय लोग पूर्वी यूरोप आरो पश्चिमी एशिया केरौ कुछु हिस्सा मँ फैललौ पोंटिक-कैस्पियाई स्टेपी केरौ क्षेत्र मँ रहै छेलै। आधुनिक युग मँ विलियम जोन्स पहलौ विद्वान् छेलै जे प्राचीन संस्कृत भाषा, प्राचीन यूनानी भाषा, प्राचीन फारसी भाषा आरो लैटिन भाषा सिनी मँ समानता सिनी क देखी क इ दावा किरलौ छेलै की इ सभ एक्केगो मूल-भारोपीय भाषासमूह सँ उपजलौ भाषा सिनी छेकै। 20मां शताब्दी केरौ शुरुआत तक भाषावैज्ञानीक केरौ परिश्रम सँ मूल-भारोपीय भाषासमूह या आदिम-हिन्द-यूरोपीय (आ॰हि॰यू॰) भाषा क चित्रण अच्छ-खासा करलौ जाबै चुकलौ छेलै, जेकरा मँ छोटौ-मोटौ सुधार लगातार होतैं रहै छै।