कविता

कविता या काव्य साहित्य के एक विधा होय ।

यथार्थ ( अवधी मे कविता )                      # राजेश जिज्ञासु

मनई छोड मनई धन से नात लगावै धन कै खातिर स्वार्थ कै जात बनावै

आपन-आन के मुश्किल पहिचानब परेप साथ दिए वहिक आपन जानब

राजा कब्बो रंक बनै हरिश्चन्द्र कै देखी दौलत कै धौंस पे कबहु न करी सेखी

प्रेम कै भुखा दुनियाँ इर्ष्या केहु न भावै मायाममता से दुश्मन कै नजिक बोलावै

जनहित खातिर जियैमरै मसिहा कहावै मउतो कै बाद इतिहास अमर बनावै

जेतनै तोपौ वतनै लौकै यी बुराई सारा सच्चाई-सादगी जानी सभ्यता कै पारा

दिल से अच्छा सब से अच्छा बात यी खाटी महान सोच सोना जानी बाँकी सब माटी


आपन भाषा आपन भेष ( अवधी कविता )                  # राजेश जिज्ञासु

मुडेप पगडी कान्हेप गम्छा लगाइ भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

धोती कुर्ता मे अपनेक सजाइ भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

अवधी कै भाव अवध मे बढाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

अवधी कै अध्ययन करी औ कराई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

अवध नरेश रामचन्द्र कै गुण गाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

आपन संस्कृति सम्झी औ सम्झाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

बडहन कै पयर पे मुण झुकाइ भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

छोटहन पे आशिर्वाद बरसाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

पासपडोस से अच्छा सम्बन्ध बनाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

मानी खाली परम्परा मे अच्छाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

अन्धविश्वास छोडी औ छोडाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

छुवाछोभ से यी समाज कै बचाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

दहेज लियबदियब समाज से हटाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

मन वचन कर्म मे अमृत बरसाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

आचार मुरब्बा चटनी न भुलुवाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

हरियर सागसब्जी कै लुफ्त उठाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया

सुखमी रक्खै सदा हलाल कै कमाई भइया आपन भाषा आपन भेष बचाई भइया





क्या है?] (लेखक—आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

ऋतु राजा ( अवधी कविता )             # राजेश जिज्ञासु

हरियर तन हरियर बाना मनई चिरई सब जग दिवाना सजलधजल दुलहिन जइसन देखो मनोरम प्रकृति कै अइसन ऋतुअन कै राजा बसन्त देखो तन मन अउर नजर कै सेको पाता पल्लो फुन्गी सारा झुम कै नाचैं खुशी कै मारा मजोर नाचै पङ्ख फैलाय देख कै नृत्य यी मन लोभाय कोइलिया गावै सबका भावै कविता गीत खोबै फुरावै अमवा वउरै डडिया पहुँडै सीताबिलरिया खुशी से दउडै हवाबयार सुवासित चारौओर न ठण्ढी जादा न गर्मी कै बटोर


नागरिकता नायी पावत हैं  ( अवधी कविता )                 # राजेश जिज्ञासु

बुद्ध कै सनेश दादा वनकर सुनावत हैं राणा लोगन कै सारा खिस्सा बतावत हैं गर्व से आपन पुरान इतिहास बतावत हैं सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

रातिम नीद मुश्किल से वनकरआवत है करवट बदल-बदल कै रात बितावत हैं रातदिन सिरिफ एक्कै बात सतावत है सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

कब्बो गाविस अध्यक्ष फटकारत हैं कब्बो अपनै वार्ड अध्यक्ष भगावत हैं सुधबुध सारा गुम होय जावत है सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

नेतन कै पीछे-पीछे दिन बितावत हैं सदरमुकाम कै जिला प्रशासन धावत हैं निराशा केवल हाथ मे आवत है सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

माईदादा कै नाम कै लालपुर्जा माङत हैं यथार्थ भूमिहीन केहू न लालपुर्जा पावत हैं नागरिकताबिहीन दादा दु:ख सुनावत हैं सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

कब्बो घुसपात कै बात सुनावत हैं विदेशी कहिकै कब्बो थरकावत हैं खून कै आँसु खाली चुआवत हैं सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं

सरजमीन कै नाम पे तरसावत हैं नियमकानुन कै पाठ पढावत हैं खाली कमीकमजोरी देखावत हैं सुधिराम बेचारु नागरिकता नायी पावत हैं






बत्तीस सोता महतारी कै ( अवधी कविता )                   # राजेश जिज्ञासु

मठ मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे धावैं सन्तान खातिर दरदर दु:ख पावैं महान रूप यी देबी अवतारी कै न भुली बत्तीस सोता महतारी कै

कब्बो उलटी कब्बो घुमनी आवै नौ माह खुशी भी दु:ख पहुँचावै असीम प्रेम देखी माई दुलारी कै न भुली बत्तीस सोता महतारी कै

बुकवा तेल बिते हररोज सफाई में पीछेपीछे बाबु बहिनी चिल्लाई में अगाध प्रेम माई कै अकवारी मे न भुली बत्तीस सोता महतारी कै

छिन मे आछी छिन मे पेसाब धोवैं वही गन्दगी मे माई हररोज सोवैं वाह सराहनीय करम यी नारी कै न भुली बत्तीस सोता महतारी कै

पुचकारैं कब्बो छाती से लगावैं किलकारी सुन सारा दर्द भुलावैं हर्षित देख अपने फूलवारी कै न भुली बत्तीस सोता महतारी कै

कब्बो दवाई कब्बो झारफूक करावैं खुद कम बच्चन कै अच्छा पहिरावैं दु:खमी खुद खुश बच्चा सुखारी कै न भुली बत्तीस सोता महतारी कै