उत्तर प्रदेश में शिक्षा के लमहर इतिहास रहल बा आ प्राचीन काल से इहाँ कई गो शिक्षा के केंद्र रहल बाड़ें। संस्कृत आधारित शिक्षा के क्षेत्र में काशी (वर्तमान बनारस) के नाँव सभसे आगे गिनल जाला जहाँ बहुत पुराना समय से प्राचीन भारतीय बिद्या सभ के शिक्षा दिहल जात रहल हवे। मध्यकाल में ई इलाका अरबी/फ़ारसी के शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे रहल; इहाँ जौनपुर नियर शिक्षा के केंद्र रहलें जेकरा के ओह जमाना में "शीराजे-हिंद" के उपाधि मिलल रहल। संस्कृत आधारित बिद्यालय सभ आ मदरसा सभ के शिक्षा तब पिछड़ गइल जब यूरोप में पुनर्जागरण के परिणाम के चलते तरह-तरह के नाया खोज आ बैज्ञानिक प्रगति भइल। उत्तर प्रदेश में आधुनिक इस्टाइल के शिक्षा के बिकास के श्रेय अंगरेज लोग के जाला।
उत्तर प्रदेश में आधुनिक शिक्षा के अस्थापना तब सुरू भइल जब इलाहाबाद में 1858 में [[म्योर सेंट्रल कालेज] के अस्थापना भइल। 1872 में हंटर कमीशन के रपट के बाद देसी भाषा में शिक्षा के बढ़ावा देवे खाती प्राइमरी शिक्षा के अलग कइल गइल। आगे चल के 1917 में सेडलर कमीशन के संस्तुति पर माध्यमिक आ उच्च शिक्षा के भी अलगा क दिहल गइल आ 1921 में डाइरेक्टरेट ऑफ एजुकेशन के अस्थापना इलाहाबाद में भइल।
म्योर सेंट्रल कालेज के 1887 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रूप में देस के चउथा विश्वविद्यालय बने के मोका मिलल आ एकरे बाद राज्य में शिक्षा के प्रसार में तेजी आइल। पंडित मदन मोहन मालवीय आ मौलाना आजाद के योगदान इहाँ शिक्ष के बिस्तार में गिनावे लायक बा।
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