दूसर नाँव | मुरली, बंसी, वंशी, बान्ही |
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बर्गीकरण | भारतीय सुषिर साज |
सप्तक बिस्तार | |
2.5 सप्तक (छह छेद वाली), 3 सप्तक (सात छेद वाली) | |
संबंधित साज | |
वेणु | |
कलाकार | |
कलाकार |
बँसुरी, बंसी, या बँसुड़ी (हिंदी:बाँसुरी; संस्कृत:वंशी) बाँस के बने वाला बाजा हवे जेकरा के फूँक के बजावल जाला आ एकरे फोंफी नियर संरचना में निश्चित दूरी पर बनल छेद सभ के अँगुरी से बंद/खुला रख के अलग अलग सुर निकालल जाला। शास्त्रीय संगीत के कठिन सुरलहरी बजावे से ले के लड़िकन के खेलौना के रूप में ई साज इस्तेमाल होला। बँसुरी के दू गो रूप होला सीधी बँसुरी (जेकरा मुरली या मुरलिया भी कहल जाला) आ आड़ी बँसुरी (जेकरा बजावे में तिरछा क के पकड़ल जाला।
बँसुरी बहुत पुरान साज हवे आ भारतीय संस्कृति में कृष्ण के बँसुरी बजावत रूप के चर्चा मिले ला।
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