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उत्पत्ति | |
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उत्पत्ति तिथि | 7वीं सदी (1300 साल पहिले) |
लिखाई | देवनागरी |
नियंत्रण |
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भोजपुरी साहित्य भोजपुरी भाषा में रचल सगरो साहित्य के सामिल करेला। भोजपुरी भाषा 1300 साल के क्रम मे विकसित भइल बा, भाषा के विकास 7वीं सदी मे शुरू भइल। भोजपुरी साहित्य के सुरूआती स्वरूप सिद्ध साहित्य आ चर्यापद[1][2] के लेखन मे देखल जा सकेला। एह भाषा में साहित्य के अलग-अलग परंपरा मध्ययुग से शुरू भइल जब एह प्रदेस के संत आ भक्तगण आपन साहित्यिक रचना खातिर भोजपुरी के अनुकूलित कइले। लोरिकायन[3] चाहे वीर लोरिक के खीसा, पूर्वांचल के एगो प्रसिद्ध भोजपुरी लोककाथा बा। भिखारी ठाकुर के बिदेसिया एगो अउरी सुप्रसिद्ध रचना बा। भोजपुरी के पहिला उपन्यास बिन्दिया 1956 मे रामनाथ पांडेय के द्वारा लिखल गइल। एकर प्रकाशन भोजपुरी सांसद, जगतगंज, वाराणसी से भइल रहल।
गोरखनाथ, कबीरदास आ दरिया साहेब नियन संतन के वाणी से प्रारंभ हो के महेंदर मिसिर, भिखारी ठाकुर आ राहुल सांकृत्यायन के रचना से होत भोजपुरी साहित्य के विकास आज कबिता, कहानी, उपन्यास आ ब्लॉग लेखन ले चहुँप चुकल बा। आधुनिक युग के आरंभ मे पाण्डेय कपिल, रामजी राय, भोलानाथ गहमरी नियर लोगन के रचना से वर्तमान साहित्य के रीढ़ बरियार भइल बा।
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के इतिहास लिखनिहारन में ग्रियर्सन, राहुल सांकृत्यायन से लेके उदय नारायण तिवारी, कृष्णदेव उपाध्याय, हवलदार तिवारी आ तैयब हुसैन 'पीड़ित' नियर विद्वानन के योगदान बा।[4] अर्जुन तिवारी के लिखल एकरा भोजपुरी साहित्य के इतिहास भोजपुरी भाषा में मौजूद बा।
शासकन के नीति, प्रजा के जीवनशैली, समाज पर विश्वव्यापी प्रभाव जैसन कारक कवनो साहित्य के पनके खातिर महत्वपूर्ण होखेला। बिहार हिंदू धर्म के केंद्र बा। हिंदू धर्म के सङे बौद्ध धर्म आ जैन धर्म के जलम भुञा होखऽला से भोजपुरी साहित्य पर एकर प्रभाव बहुत गहिर परल बा।
भोजपुरी सहित्य के प्रारंभ 7वीं सदी से भइल।[5] हर्षवर्धन (सन् 606 — 648 ई) के समय के संस्कृत कवि बाणभट्ट आपन ग्रंथ हर्षचरितम् मे दूगो कवियन के उल्लेख कइले बाड़े जे संस्कृत आ प्राकृत दुनु के छोड़ के जन-भाषा मे रचना करत रहलें। एह कवी लोगन के नाँव ईसानचंद्र आ बेनीभारत रहल। ईसानचंद्र बिहार मे सोन नदी के पच्छिम ओरी के पिअरो गाँव (प्रीतिकूट) के रहवासी रहले।
बाद मे सिद्ध साहित्य चाहे संत साहित्य के सिरिजन भइल। केतनहे सिद्ध संत आ गुरुवन आपन साहित्यला भोजपुरी के अनुकूलन कइले। लहे-लहे साहित्यिक शैलीयन के विकास होखे लागल। तबसे लेके आजले भोजपुरी मे साहित्य सर्जन होखत बा।
भोजपुरी साहित्य के तीनगो युगन मे वर्गीकरण कइल गइल बा।
सत्य वदंत चौरनगीनाथ आदि अन्तर सुनौ ब्रितांत सालवाहन घरे हमरा जनम उत्पति सतिमा झूठ बोलीला ॥
आसिरबाद पाइला अम्हे मने भइला हरषित होठ कंठ तालुका रे सुकाईला धर्मना रूप मछंहद्रनाथ स्वामी ॥
भोजपुरी मागधी प्राकृत के वंशज ह जवन वर्धन साम्राज्य के शासनकाल मे आकार लेवे लागल रहे। भोजपुरी के सबसे प्राचीन रूप सिद्ध साहित्य आ चर्यापद मे लउकेला। चर्यापद, असम, बंगाल, बिहार आ ओडिशा मे तांत्रिक परंपरा से बौद्ध धर्म के वज्रयान परंपरा मे साकारता के गीत, रहस्यमय कविता सभ के संग्रह हवें। ई 8वीं से 12वीं सदी के बीच एगो अबहट्टा मे लिखल गइल जे असमिया, बंगाली, भोजपुरी, ओडिया, मगही, मैथिली, आ अउरी केतनहे पूरबी इंडो-आर्य भाषा सभ के पुरखिन भाषा रहल, आ कहल जाला के ओह भाषा मे लिखल छंदन सभ के सभसे पुरान संग्रह बा। एह बेरी के भाषा के जौन रूप रहे ओके "पुरनका भोजपुरी" कहल गइल काहेके अबार ई मागधी प्राकृत से भोजपुरी के ओरी सुगमन करत रहे।
बाणभट्ट, आपन हर्षचरितम् मे इसानचंद्र आ बेनिभारत नाँव के दूगो कवियन के जिकिर कइले बाड़े जे लोग प्राकृत आ संस्कृत के बजाय स्थानीय भाषा मे लिखत रहले।
नाथ सम्प्रदाय के गुरु लोग आदियुग मे भोजपुरी भाषा मे जौनो साहित्य रचले ओह साहित्य के सिद्ध साहित्य कहल जाला। ई युग के संत चौरंगीनाथ (पुरन भगत) के रचना[7] के संग्रह "प्राण संकली" के रुप मे कइल गइल बा। नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथो केतनहे काव्यन आ देवतन के स्तुतियन के रचना कइले बाड़ें।[8]
मध्ययुग मे भोजपुरी नाथ सम्प्रदाय से आगे बढ़ल आ सामान्य जनमानस ले चहूपल। भोजपुरी साहित्य मे अलगऽ-अलगऽ साहित्यिक शैलीयन के विकास मध्ययुग मे भइल। मध्ययुग के सुरूआत लोकगाथा काल से होला। एह काल के कवियन मे धरणीदास, दरिया साहब, सूरदास, कबीरदास, जायसी आदि के नाँव गिनावल जाला। ग्रियर्सन के हवाले से विद्यापति के कतनहे रचना भोजपुरी मे भइल बतावल जाला; आ रामनरेश त्रिपाठी के हवाले से एगो उदाहरण[9]विद्यापति के बारहमासा से दिहल गइल बा जे साफ भोजपुरी मे बा ।सूरदास मुख्य रूप से ब्रजभाषा के कवि रहलें बाकी उनहूँ के एगो रचना[10]देखे जोग बाटे। कबीर के प्रसिद्ध निर्गुन "कवन ठगवा नगरिया लूटल हो" खाँटी भोजपुरी के रचना बाटे। कबीर के चेला धरमदास रहले सेहू साहित्य रचना[11]कइले बारे।
अधीके मे बाबा कीनाराम आ भीखमराम के रचना मे भोजपुरी के झलक देखल जा सके ला। घाघ आ भड्डरी के खीसा एही काल के रचना बा।
1100 से 1400 ई.सा. तकले के साहित्य के लोकगाथा काल के नाँव से चिन्हल जाला। एही काल के तनी बिद्वान "चारण काल" आ "पँवारा काल" के नाँववो देले बाड़े।[12]एह काल के गीत-संगीत मे खीसा के गावे जोग गीत मे वर्णन कइल गइल बा। एग गीतकथा सब मे सोरठी बृजभार, शोभा बनजारा, सती बिहुला, आल्हा, लोरिकी आ राजा भरथरी के खीसि मुख्य बाड़ी।
आधुनिक युग के साहित्य के एकदम प्रारम्भिक बेर के नवजागरण काल कहल गइल बा।एह युग के कवियन में लच्छमी सखी, तेग अली 'तेग', महेन्दर मिसिर, भिखारी ठाकुर, हीरा डोम, बुलाकी दास, दूधनाथ उपाध्याय, आ रघुवीर नारायण के नाँव उल्लेखनीय बा। एह युग मे विविध प्रकार के साहित्यिक सिरिजन भइल आ बहूते वेगमय गति से होखता। एह युग मे रामायण आदि धार्मिक ग्रंथ सभ के रचना भइल।
तेग अली के रचना "बदमास दर्पण" खास बनारसी भोजपुरी के एगो उदाहरण देखावे वाली रचना बाटे। महेंदर मिसिर, मिश्रावलिया गाँव, छपरा के रहलें आ उनकर लिखल पुरबी एगो जमाना में पुरा इलाका में चलनसार रहे आ आजु ले कहीं-कहीं सुने के मिल जाला। भिखारी ठाकुर के रचना गीत आ गीतनाटक के रूप में रहे। उनुकर सभसे परसिद्ध रचना बिदेसिया बा आ राहुल बाबा उनका के 'भोजपुरी के शेक्सपियर' के उपाधि दिहलें।
एकरा बाद के पीढ़ी के लोगन में कबि मोती बी ए, मनोरजंन दादा, भोला नाथ गहमरी, विवेकी राय नियर लोग बा।
भोजपुरी उपन्यास क माने इहाँ अइसन उपन्यासन से बा जिनहन के रचना भोजपुरी भाषा में भइल बा। विश्व की सगरी भाषा कुल में साहित्य क एगो अइसन विधा पावल जाले जेवना में गद्य रूप में लंबा वर्णन आ जीवन की हर पहलू क वर्णन मिलेला आ एही के नाँव उपन्यास हवे। अइसन उपन्यासन क रचना भोजपुरी भाषा में बाद में भले शुरू भइल लेकिन भोजपुरी भाषा की साहित्य में उपन्यासन क एकदम्मे अभाव नइखे। भोजपुरी के पहिला उपन्यास बिंदिया श्री रामनाथ पाण्डेय जी के रचना बा जेवना क प्रकाशन सन् 1956 में भोजपुरी संसद, जगतगंज, वाराणसी, से भइल।[13] एकरी बाद से लगातार भोजपुरी में उपन्यासन क रचना जारी बा।
भोजपुरी उपन्यासन के काल खंड में बाँटला क कौनो प्रामाणिक वर्णन नइखे बाकिर श्री रामनाथ पाण्डेय जी भोजपुरी कथा साहित्य के चारि गो काल खंड में विभाजित कइले बाड़ीं। इहाँ की हिसाब से भोजपुरी कथा-साहित्य के नीचे लिखल तरीका से बाँटल जा सकेला:
लोकगाथा काल (आज़ादी से पाहिले): ए काल में कौनो भोजपुरी उपन्यास के रचना नइखे भइल।
प्रारंभिक काल (1947 से 1961 ले): भोजपुरी क पहिला उपन्यास बिंदिया 1956 में छपल लेकिन भोजपुरी कहानी क शुरुआत अवध बिहारी सुमन क रचना 'जेहलि क सनदि' से मानल जाला जेवन 1948 में छपल रहे।
मध्य काल (1961 से 1974 ले): एह काल में भोजपुरी में लगभग दस गो उपन्यास छपल। एह समय की प्रमुख उपन्यासन में बा : थरुहट के बबुआ और बहुरिया(1965), जीवन साह (1964), सेमर के फूल (1966), रहनिदार बेटी (1966), एगो सुबह, एगो साँझ (1967), सुन्नर काका (1979)। ए उपन्यासन में अधिकतर सामजिक उपन्यास हवें। 'थरुहट के बबुआ और बहुरिया के भोजपुरी में आंचलिक उपन्यास कहल जाला।
आधुनिक काल (1975 की बाद):
एह काल में लगभग बीस गो से अधिका उपन्यासन के रचना आ प्रकाशन भइल। फुलसुंघी (1977), भोर मुसुकाइल (1978), घर टोला गाँव (1979), जिनिगी के राह (1982), दरद के डहर (1983), अछूत (1986), महेन्दर मिसिर(1994), इमरितिया काकी (1997), अमंगलहारी (1998), आव लवटि चलीं जा (2000), आधे-आध (2000) वगैरह उपन्यास एह काल के प्रमुख उपन्यास बा।
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