मॉब लिंचिंग या लिंचिंग (अंग्रेजी: Lynching; अरथ: भीड़ दुआरा मुआ डारल) कौनों झुंड या भीड़ द्वारा, कानून से ऊपर उठ के, केहू के सजा देवे खातिर कइल हत्या हवे। अक्सरहा अइसन घटना में भीड़ केहू के कौनों अपराध के दोषी मान के खुद सजा देवे खातिर उतर परे ले आ तर्क ई दिहल जाला कि कानून के कमजोरी के दसा में भीड़ खुदे न्याय क रहल बा।
लिंचिंग के घटना सभ के पुरान इतिहास रहल बा जहाँ यूरोप के इतिहास में भीड़ द्वारा सजा देवे के कई उदाहरण मिले ला। अमेरिका में करिया (ब्लैक) लोग के अइसन तरीका से छोट-छोट अपराध पर हत्या क देवे के घटना के बिबरन भी मिले ला। वास्तव में लिंचिंग शब्द के उत्पत्ती अमेरिकी सिविल वार (घरेलू जुद्ध) के दौरान भइल भले अइसन घटना पहिलहूँ होखत रहे, एकरा खातिर नया शब्द अमेरिका में मिलल। एकरा उत्पत्ती "लिंच कानून" से बतावल जाला आ चार्ल्स लिंच आ विलियम लिंच नाँव के दू लोग के बारे में अनुमान लगावल जाला कि एही में से केहू के नाँव पर अइसन भीड़ कानून के नाँव पड़ल आ बाद में लिंचिंग शब्द जनमल।
भारत में लिंचिंग के घटना नागालैंड के दीमापुर में 2015 में घटित भइल जब बलात्कार के आरोपी के भीड़ जेल तूर के मुआ डरलस।[1] भारत में जाति-बाहरी बियाह आ जातिगत हिंसा, 'डायन' मान के केहू के हत्या, या सामाजिक रूढ़ि के परंपरा के नाँव पर बचावे खातिर हत्या नियर, लिंचिंग के कई रूप बाने। आमतौर पर एह में डर पैदा करे के भावना होला, ताकि कौनों धार्मिक सामाजिक रूढ़ि के बचावल जा सके। अन्य स्थिति में भीड़ ई मान के चले ले कि ऊ न्याय क रहल बा।
भारत में हाल में लिंचिंग के घटना में बढ़ती होखे के दावा कइल गइल बा[2][3][4][5][6][7][8], जबकि कुछ लोग के बिचार में अइसन स्थिति हमेशा से रहल बा आ वर्तमान में कुछ लोग एकरा के खाली बढ़ा चढ़ा के प्रस्तुत क रहल बा। भारत के जानल-मानल मनोबैज्ञानिक आशीष नंदी के एह बात पर बिचार बाटे कि लोगन में गुस्सा आ हताशा बा आ ऊ पहिले गुस्सा होखत बा आ बाद में टार्गेट खोजत बा। नंदी के इहो कहनाम रहल कि एह समय राष्ट्रवाद आ गौरक्षा नियर मुद्दा सभ के नोकदार कइल जा रहल बा आ राजनीतिक लाभ लेवे खातिर लोगन के लड़ावे के कोसिस हो रहल बा।[9]
एगो रपट के मोताबिक सरकारी आँकड़ा अनुसार, साल 2014 से मार्च 2018 तक ले नौ राज्यन में कुल 40 मामिला लिंचिंग के सोझा अइलें जिनहन में 45 लोग के जान गइल आ 200 से बेसी लोगन के गिरफ्तारियो भइल। हालाँकि, इहो कहल गइल बा कि गैर-सरकारी आँकड़ा एह संख्या के तुलना में बेसी गिनती बतावत बाड़ें।[10] हाल में 2017 के बाद से एक ओर वाट्सएप आ अन्य सोशल मीडिया पर अफवाह के चलते भीड़ द्वारा हत्या के कई गो मामिला सोझा आइल बा आ वाट्सएप नियर कंपनी सभ आपन हाथ खड़ा क चुकल बाड़ें।[10]
एक ठो सुनवाई में, जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट मॉब लिंचिंग के समस्या बतवलस आ सरकार के एकरा से निपटे खातिर जिम्मेदार मानल। कोर्ट के इहो सुझाव रहल कि सरकार एह अपराध के अलग किसिम के अपराध के दर्जा दे आ एहपर अलगा से क़ानून बनावे।[11][12] पछिला साल भी सुप्रीम कोर्ट गौरक्षक सभ द्वारा क़ानून हाथ में लेवे के घटना सभ से सख्ती से निपटे के कहले रहल।[11] एकरे अलावा भारत के संसद में जुलाई 2018 के मानसून सत्र में पहिले दिन बिपक्ष के लोग लिंचिंग के ले के भारी हंगामा कइल।[13] एगो रपट के अनुसार केंद्र सरकार मोब लिंचिग के दंडनीय अपराध घोषित करे के तइयारी में बा।[14]