डॉ॰ रामदरश मिश्र | |
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जनम | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत | अगस्त 15, 1924
पेशा | अध्यापन |
भाषा | हिंदी, भोजपुरी |
समय | आधुनिक काल |
बिधा | कविता, निबंध |
साहित्यिक आंदोलन | प्रगतिवाद, नव कविता |
प्रमुख रचना | अपने लोग, सहचर है समय, आम के पत्ते |
वेबसाइट | |
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रामदरश मिश्र (जनम: 15 अगस्त 1924, ग्राम डुमरी, जिला गोरखपुर) हिंदीआउर भोजपुरी साहित्य में नवगीत, कविता, ललित निबंध आउर आलोचना लिखे खातिन जानल जाने। गद्य आउर पद्य के समस्त विधा में इनकर हस्तक्षेप बाटे। इनकर शिक्षा पहिले गांव म भइल फिर प्रयाग म। इनका के हिंदी आलोचना के स्तंभ के रूप में जानल जाला। आंचलिक जीवन पर 'जल टूटता हुआ' जइसन सफल उपन्यास इनकर साहित्यिक जीवन के अमूल्य धरोहर मानल जाला। 'बैरंग-बेनाम चिट्ठियाँ', 'पक गयी है धूप', 'कंधे पर सूरज', 'दिन एक नदी बन गया', 'जुलूस कहां जा रहा है', 'आग कुछ नहीं बोलती', 'बारिश में भीगते बच्चे', 'हंसी ओठ पर आँखें नम हैं' आदि इनकर अन्य प्रमुख साहित्यिक कृति बाटे।[1]