रामलीला, मने की "राम" जी के "लीला", परंपरागत रूप से हिंदू धर्म के देवता श्रीराम के जिनगी के कथा के नाटक के रूप में खेलल जाए वाला रूप हवे। ई गाँव-देहात के छोट-छोट मंच सभ से ले के शहरन में बड़हन प्रोफेशनल मंच सभ तक खेलल जाला। आमतौर पर एह कथा के आधार महर्षि वाल्मीकि के रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण में बर्णित कथा हवे जेकर बिबिध रूप में बाद के रामकथा सभ के रूप में निरूपण भइल। तुलसीदास के रामचरितमानस आ पंडित राधेश्याम के रामायण के इस्तेमाल एह कथा के नाटक के रूप में खेले में कइल जाला। बनारस के रामनगर के रामलीला पूरा बिस्व परसिद्ध हवे। बनारस में लगभग पूरा शहरवे रामलीला के मंच के रूप में इस्तेमाल होला आ बनारस के बहुत सारा मोहल्ला सभ के नाँव एही रामलीला के ओह प्रसंग के नाँव पर रखा गइल हवें जे ओह जगह पर खेलल जाला।
ओइसे त रामलीला के आयोजन कबो कइल जा सके ला, परंपरागत समय कुआर-कातिक के महीना होला जेह में कुआर के नवरातर पड़े ला। एह रामलीला सभ के सभसे बड़ आयोजन दशहरा के दिने रावण के पुतला जरावे से होला, एकरे बाद दिपावली के राम के अजोध्या लवटे आ कातिक के पुर्नवासी के राम के राज्याभिषेक से एकर औपचारिक समापन होला।
साल 2008 में रामलीला के बैस्विक संस्था यूनेस्को द्वारा बिस्व धरोहर सभ में सामिल कइल गइल।[1]
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