![]() थाली में लिट्टी के बा | |
दूसर नाँव | भउरी, फुटेहरी, भरुती |
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उत्पत्ती अस्थान | ![]() ![]() |
क्षेत्र | बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल आ नैपाल के मधेस |
परोसे के ताप | गरम |
मुख्य सामग्री | गोहूँ के पिसान, सतुआ, साग-सब्जी , मसाला, आ घीव |
बिबिध रूप | बाटी |
लिट्टी, बाटी भा भउरी भोजपुरी क्षेत्र के एगो पकवान हवे जे गोहूँ के आटा के बनल गोल-गोल लोई के रूप में होला आ एकरे बीच चना के सतुआ के चटक मसाला भरल होला आ ई आगि के भउर में सेंक के बनावल जाला।[1] आम तौर पर ई गोइंठा के आगि में सेंकल जाला[2] हालाँकि, कोइला के आंच में या आधुनिको ओवन में संकल जा सकेला। एकरा तेल में छानिओ के बनावल जाला।[3] लिट्टी के चोखा, मीट, छोला भा घुघनी साथे खाइल जाला। लिट्टी-चोखा प्रसिद्ध आ पूरा भोजन हवे।[4] भोजपुरी क्षेत्र में टीशन के आसपास भा हाट-बजार में चोखा संघे लिट्टी बेचे वाला ठेला एकठे आम दृश्य हवे। लिट्टी-चोखा के भोजपुरी संस्कृति के पहिचान के रूप में देखल जाए लागल बा आ अब ई भोजन देस-बिदेस में ले पहुँच बना चुकल बाटे।
आमतौर पर लिट्टी, भउरी, भौरी, भरुती, आ फुटेहरी एकही चीज हवे आ वर्तमान में सभसे परसिद्ध नाँव लिट्टिये बा। हालाँकि, अभी भी देहाती इलाका सभ में एकरा के भउरी कहल जाला।
चलन में आजकाल्ह जेवना के लिट्टी कहल जात बा ओके परंपरागत रूप से भउरी या भरुती कहल जाय। लिट्टी त हाथ से थाप के बनावल मोट मोट रोटी के कहल जाय।[5] हालाँकि परंपरागत रूप से जवना मोट रोटी के लिट्टी कहल जाय ऊ भी सादा आटा के या कुछ मसाला भर के भरुई बने आ एह अनुसार मकुनी आ बेर्हईं वगैरह नाँव से जानल जाले।
लिट्टी के आमतौर पर बाटी भी कह दिहल जाला, जबकि बाटी एक ठो एकदम अलग सवाद वाली आ अलग क्षेत्र के चीज हवे। बाटी मध्य प्रदेश आ राजस्थान में प्रचलित खाना हवे आ दाल-बाटी-चूरमा पूरा भोजन के नाँव हवे।
लिट्टी देखे में गोल-गोल, देसी घीव में चमकत, सोन्ह सुगंध वाला ब्यंजन हऽ।[6] कही-कही एकरा के चापुटो बनावे के चलन बा आ एकरा के जब बिना सतुआ भरले बनावल जाला तब सादी भउरी कहल जाला। सादी भउरी के एक ठो रूप भीतर से खोंखर भी हवे। सादी भउरी के चिकन या मीट के साथ काफी पसंद कइल जाला। गाढ़ दाल, जेकरा के भोजपुरी क्षेत्र में नकदावा कहल जाल, के साथ भी सादी भउरी खाइल जाला।
भरुई लिट्टी बनावे खातिर सतुआ में नून, मरिचा, कुछ मसाला आ महीन कटल लहसुन डाल के मीसल जाला। कुछ जगह एकरा के चटकार बनावे खातिर मरिचा के अँचार भी डालल जाला। जब ई मसाला त इयार हो जाला तब एकरा के सानल आटा के कटोरी नियर बना के ओह में भरल जाला आ गोल लोई नियर रूप दे दिहल जाला। अब ई सेंके खातिर तइयार हो जाला। गोईंठा के भउर या कोइला के आँच पर एकरा के सेंक दिहल जाला। परोसे के समय ले गरम रहे एकरा खातिर ओही राखी में तोप के भी रखल जाला। परोसे से पहिले कपड़ा से राखी झार के भउरी पर गरम देसी घीव चोभ दिहल जाला या फिर सीधे घीव में बोर के निकाल लिहल जाला।
एकर एक ठो दूसर तरीका भाप से पकावल भी हवे। कवनो भदेली आदि बर्तन में रख के पानी डाल के उबाल लिहल जाला फेन कड़ाही में तेल डाल के छान दिहल जाला एह बिधि के बनल लिट्टी चिकनाहट के कारन ओतना लोक प्रिय नइखे।
एक ठो अन्य तरीका हवे गोल लोई के बना लिहले की बाद तेल में छान के पकावल। ई रूप में बनल भउरी अकसर जतरा के समय साथ ले जाए आ डहरी में खाए खातिर बनावल जाले। बजार में भी बहुत सारी दुकान पर एह रूप में बनल लिट्टी नाश्ता के तौर पर मिल जाले।
लिट्टी-चोखा आज के समय में भोजपुरी क्षेत्र के संस्कृति के पहिचान के रूप में देखल जाये लागल बा। बिहार आ पूरबी उत्तर प्रदेश में जहाँ ई कबो काम चलाऊँ भोजन के रूप में इस्तेमाल होखे या बनावे में आसानी के कारण बनभोज वगैरह में बनावल जाय, अब ई एह क्षेत्र के लोग के पहिचान के रूप में देखल जाला।
आमतौर पर टीशन आ बजार में लागे वाला लिट्टी चोखा के ठेला[7] से उप उठ के ई ब्यंजन अब बड़े-बड़े मेला वगैरह के फ़ूडस्टाल सभ के बीच जगह बना चुकल बाटे। बिबाह भोज में भी ई आजकल दिखाई दे रहल बिया। देश-बिदेश में एकर प्रचलन बढ़त जात बा। परंपरागत बनारसी पिकनिक में लिट्टी एक ठो प्रमुख पकवान के रूप में रहल हऽ।[8] बिहार के राजधानी पटना में भारत के बाहर से आवे वाला लोग लिट्टी के बहुत पसंद करे ला आ इनहन लोग में काफी लोग के त इहाँ आवे के बाद पहिली बेर एह व्यंजन के पता लागे ला।[9][10] इहे ना ई खाना बिहार के छोट छोट शहर सभ[11][12] से ले के दिल्ली[13] बंबई आ लगभग हर बड़ भारतीय शहर ले पहुँच बना चुकल बाटे। हाल में एक ठो खबर के मोताबिक बिहार के एक ठो इंजीनियर जे अमेरिका में नौकरी करे लें उनके बनावल समूह उहाँ प्रयोग के रूप में एकर स्टाल लगावल जे कुछे घंटा में खाली हो गइल।[14][15]
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विकिमीडिया कॉमंस पर संबंधित मीडिया लिट्टी (पकवान) पर मौजूद बा। |
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