संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय | |
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पुरान नाँव |
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मोटो | श्रुतं मे गोपाय |
Motto in English | Let my learning be safe |
स्थापना | 1791 |
प्रकार | राज्य विश्वविद्यालय |
संबद्धता | यूजीसी |
चांसलर | उत्तर प्रदेश के राज्यपाल |
वाइसचांसलर | प्रो. बिहारी लाल शर्मा[1][2] |
लोकेशन | बनारस, उत्तर प्रदेश, भारत |
कैंपस | शहरी |
वेबसाइट | www |
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, पुरान नाँव गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज, बनारस, उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में एगो पब्लिक विश्वविद्यालय आ उच्च शिक्षा संस्थान बा। ई दुनिया के सबसे बड़ संस्कृत विश्वविद्यालयन में से एगो ह। वर्तमान में विश्वविद्यालय बिबिध बिसय सभ में स्नातक आ स्नातकोत्तर प्रोग्राम सभ के सुबिधा दे रहल बा। विश्वविद्यालय के नैक से क्रेडिट मिलल बा आ यूजीसी से पहिचान मिलल बा।
1791 में बनारस राज के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के रेजिडेंट जोनाथन डंकन भारतीय शिक्षा खातिर ब्रिटिश समर्थन के देखावे खातिर संस्कृत वाङ्मय के बिकास आ संरक्षण खातिर संस्कृत कॉलेज के स्थापना के प्रस्ताव रखलें। एह पहल के गवर्नर जनरल चार्ल्स कॉर्नवालिस मंजूर क लिहलें। संस्था के पहिला शिक्षक पंडित काशीनाथ रहलन आ गवर्नर जनरल ₹ 20,000 सालाना के बजट मंजूर कइलन। सरकारी संस्कृत कॉलेज के पहिला प्रिंसिपल जॉन मुइर रहलें, ओकरा बाद जेम्स आर बैलेंटाइन, राल्फ टीएच ग्रिफिथ, जॉर्ज थिबाउट, आर्थर वेनिस, सर गंगानाथ झा अउरी गोपीनाथ कविराज रहले।[3]
1857 में कॉलेज में स्नातकोत्तर पढ़ावे के काम शुरू भइल। 1880 में परीक्षा प्रणाली अपनावल गइल। 1894 में प्रसिद्ध सरस्वती भवन ग्रंथालय भवन बनल, जहाँ आजुओ हजारन पाण्डुलिपि सुरक्षित बाड़ी स। एह पाण्डुलिपि सभ के संपादन कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा कइल गइल बा आ किताब के रूप में प्रकाशित कइल गइल बा। सरस्वती भवना ग्रंथमाला के नाम से जानल जाए वाली एगो सीरीज में 400 से अधिका किताब प्रकाशित भइल बाड़ी स।
1958 में ओह समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद के कोसिस से संस्थान के दर्जा कॉलेज से बदल के संस्कृत विश्वविद्यालय क दिहल गइल। 1974 में एह संस्था के नाम औपचारिक रूप से बदल के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय क दिहल गइल।[4]
विश्वविद्यालय में कई फैकल्टी आ बिभाग बाड़ें जे बिबिध किसिम के कोर्स उपलब्ध करावे लें। हालाँकि, कई बिसय सभ में बहुते कम बिद्यार्थी होखल एगो समस्या बाटे।[5]
जब एह संस्थान के संस्कृत कॉलेज के नाँव से जानल जात रहे त सगरी रिसर्च के कामकाज प्रिंसिपल के द्वारा कइल जात रहे। एह में पाण्डुलिपि पर कइल गइल काम भी शामिल रहे जवन सरस्वती भवन ग्रंथालय में रखल गइल रहे।
संस्थान के विश्वविद्यालय बनला के बाद सभ शोध के काम के देखरेख शोध संस्थान के निदेशक कइलें, जे प्रसिद्ध किताब श्रृंखला सरस्वती भावना ग्रंथमाला आ सरस्वती सुषमा पत्रिका के मुख्य संपादक भी बाड़ें।
डाइरेक्टर के जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के भीतर सगरी रिसर्च गतिविधियन के देखरेख करे के होला, आ ऊ एकर एकेडमिक हेड के रूप में काम करे लें। डाइरेक्टर होखला के नाते प्रख्यात व्याकरणकार वागीश शास्त्री संस्कृत पत्रिका सरस्वती सुषमा में बहुमूल्य योगदान देले रहलन आ सरस्वती भवना ग्रंथमाला सीरीज में कई गो किताबन के संपादन कइले रहलन।[6]
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय एगो अइसन विश्वविद्यालय हवे जेवना से जुड़ल 600 से ढेर [7] स्कूल आ कॉलेज बाड़ें आ ई मय भारत भर में फइलल बाड़ें। एह शैक्षणिक संस्थानन में पढ़ाई के माध्यम संस्कृत, हिन्दी, आ अंग्रेजी बा। भारत के ई अकेल विश्वविद्यालय ह जवन पूरा देश में एतना व्यापक संबद्धता के गरब क सके ला।