अन्तराल, पारंपरिक शास्त्रीय वास्तुशास्त्र व अगमशास्त्र में, मंदिर निर्माण में गर्भगृह एवं मण्डप के बीच के स्थान को कहा जाता है। भारतीय शास्त्रीय वास्तुकला में, अधिकांशतः उत्तर भारतीय नागर शैली के मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखने को मिलते हैं। इसे कोरिमण्डप भी कहा जाता है।[1]
उत्तर भारत में खजुराहो के कन्दारिया महादेव मन्दिर, जो पञ्चयातन वास्तुशैली में निर्मित है, तथा दक्षिण भारत के चालुक्य वास्तुकला में निर्मित मंदिरों में मण्डप और गर्भगृह के बीच अन्तराल देखा जा सकता है। इस तरह की वास्तुकला के उक्त दो मंदिर उत्तम उदाहरण हैं।[2]
विभिन्न वास्तुशैलियों में अन्तराल का मुख्य कार्य मन्दिर संरचना के दो विभक्त हिस्सों को जोड़ने का है। मंदिर निर्माण में, मंदिर के दो विभक्त संरचनाओं: मण्डप व गर्भगृह को अन्तराल द्वारा जोड़ा जाता था। प्रायः अन्तराल में कुछ सीढ़ियां भी होती हैं, जोकि गर्भगृह के परिक्रमा या मण्डल को नीचे स्थित मण्डप से जोड़ती है। क्योंकि गर्भगृह के पटल को मण्डप के पटल से कुछ ऊँचे स्थान पर रखा जाता था। अगमशास्त्र के अनुसार, अन्तराल को कभी भी वर्गाकार नहीं होना चाहिए, केवल आयताकार होना चाहिए।[1]
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