मिशन प्रकार | नौवहन |
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संचालक (ऑपरेटर) | इसरो |
मिशन अवधि | 12 साल[1] |
अंतरिक्ष यान के गुण | |
बस | आई-1के |
निर्माता |
इसरो उपग्रह केंद्र अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र |
लॉन्च वजन | 1,425 किग्रा० |
शुष्क वजन | 598 किग्रा० |
ऊर्जा | 1,300 वाट्स |
मिशन का आरंभ | |
प्रक्षेपण तिथि | 28 अप्रैल 2016 12:50 (आईएसटी) |
रॉकेट | पीएसएलवी-सी33 |
प्रक्षेपण स्थल | सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र |
ठेकेदार | इसरो |
कक्षीय मापदण्ड | |
निर्देश प्रणाली | भूकेंद्रीय |
काल | भूसमकालिक कक्षा |
आईआरएनएसएस-1जी 1ए, 1बी, 1सी, 1डी,1ई, व 1एफ़ के बाद सातवाँ भारतीय नौवहन (नेविगेशन) उपग्रह है। यह उपग्रह आईआरएनएसएस सीरीज़ का सातवाँ और आखरी उपग्रह था परन्तु 1ए उपग्रह की परमाणु घड़ी ख़राब होने के बाद आईआरएनएसएस-1एच को आठवे उपग्रह के तौर पर लॉन्च किया गया। यह उपग्रह भारतीय क्षेत्र में नेविगेशन सेवायें प्रदान करेगा।
उपग्रह को भूसमकालिक कक्षा में स्थापित किया गया। इसे 28 अप्रैल 2016 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लॉन्च पैड से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी: सी33) के माध्यम से श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया।[2][3]
इससे भारत के पास अपनी स्वतंत्र स्थानीय नौवहन व दिशा-सूचक प्रणाली होगी। पहले की तरह ही पीएसएलवी के एक्सएल वर्ज़न का प्रयोग किया गया जिसमें 12 टन के 6 स्ट्रैप ऑन बूस्टर्स लगे हुए थे।[1][3] [4][5][6] करीब 20 मिनट की उड़ान में इस यान ने 1,425 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस-1जी उपग्रह को 497.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर कक्षा में स्थापित कर दिया।[7] इसके प्रक्षेपण के साथ ही भारत क्षेत्रीय उपग्रह नौवहन प्रणाली रखने वाले विशिष्ट देशों के क्लब में शामिल हो गया है।[8]
उपग्रह को 12 वर्षों की अवधि तक कार्यशील रहने हेतु डिज़ाइन किया गया है[9] उपग्रह का लिफ़्ट-ऑफ़ द्रव्यमान 1,425 किलोग्राम (50,300 औंस) और शुष्क द्रव्यमान 598 किलोग्राम (21,100 औंस) है।[10] इसके पे-लोड में एक सी-बैंड ट्रांसपोंडर शामिल है जो उपग्रह की अवस्थिति सटीकता से निर्धारित करने में सक्षम है।[11] यह उपग्रह L-5 तथा एस-बैंड में कार्य करेगा और इसमें रूबिडीयम परमाणु घड़ी लगाई गई है।[12] प्रमुख अवयवों, उदाहरणार्थ इस घड़ी, के नियंत्रण हेतु इसमें विशेष थर्मल नियत्रण सिस्टम लगाये गये हैं। इसमें मौजूद दो सोलर पैनल 1660W ऊर्जा उत्पन्न करेंगे और साथ ही लिथियम-आयन 90A-hr बैटरी का इस्तेमाल हुआ है।[10] The उपग्रह को 497.8 किलोमीटर (1,633,000 फीट) की ऊँचाई पर इसकी कक्षा में स्थापित किया गया है जो 129.5 अंश पूर्वी देशांतर के सहारे है।[10][13]
प्रक्षेपण को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वेबकास्ट के माध्यम देखा।[7] उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा, "इस सफल प्रक्षेपण के साथ, हम अपनी ही प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित रास्तों का निर्धारण करेंगे। यह वैज्ञानिकों द्वारा लोगों के लिए एक महान उपहार है।"[14]