कच्छी घोड़ी नृत्य

कच्छी घोड़ी नृत्य

कच्छी घोड़ी नृत्य का एक चित्र
विधा भारतीय लोकनृत्य
देश भारत

कच्छी घोड़ी नृत्य भारतीय राज्य राजस्थान का एक लोकनृत्य है। यह राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से आरम्भ हुआ नृत्य है।[1] यह केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि भारत के अन्य भागों जैसे महाराष्ट्र[2], गुजरात[3] आदि में भी प्रसिद्ध है। इसमें नर्तक नकली घोड़ों पर सवारी करते है।[4] इसका प्रदर्शन सामाजिक एवं व्यावसायिक दोनों तरह से होता है। यह नृत्य दूल्हा पक्ष के बारातियों के मनोरंजन करने के लिए व अन्य खुशी अवसरों पर भी प्रदर्शित किया जाता है।

नृत्य का तरीका

[संपादित करें]
  • कच्छी घोड़ी नृत्य नकली घोड़ों पर किया जाता है।
  • पुरुष बेहतर चमकते दर्पणों से सुसज्जित फैंसी ड्रेस पहनते है ,और नकली घोड़ों पर सवारी करते हैं।
  • ये नर्तक अपने हाथों में तलवार लेकर ,नकली घोड़ों पर सवारी करतें हैं।
  • ये नर्तक तलवारों कों ढोल व बांसुरी की लय पर संचालन करतें हैं।
  • नृत्यक प्रायः नकली घोड़े पर नकली घुड़दौड़ दौड़ता है। भंवारिय नाम के डकैत के बारे में गानें गाता है। अपनी तलवार का प्रदर्शन ढोल व बांसुरी की धुन पर करता है।[5]
  • इस नृत्य में एक तरफ चार नर्तक खड़े होते है और चार दूसरी तरफ . ये जब आगे व पीछे नकली घोड़ों पर दौड़तें हैं तो ऐसे लगते है मानों फूल खुल व बंद हो रहे हों।

क्षेत्र

[संपादित करें]

इस नृत्य राजस्थान के पारंपरिक लोक नृत्य है। यह प्रसिद्ध नृत्य राजस्थान के समारोहों, कला, संस्कृति और जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। इस नृत्य का प्रदर्शन मुख्यतः शेखावाटी ( राजस्थान ) क्षेत्र में ही नहीं होता है बल्कि पूरे भारतवर्ष में पाया जाता हैं[5]

नर्तक की पोशाक

[संपादित करें]

नर्तक शरीर के हिस्से पर पारंपरिक वेशभूषा लाल पगड़ी, धोती और कुर्ता पहनता है।[6] नर्तक शरीर के निचले हिस्से में कागज की लुगदी और टोकरी से तैयार एक नकली घोड़ा पहनता है। नर्तक पेरों में घुँघरू पहनता है। पुरुष बेहतर चमकते दर्पणों से सुसज्जित फैंसी ड्रेस पहनते है ,और नकली घोड़ों पर सवारी करते हैं।

मुख्य वाद्ययंत्र

[संपादित करें]
  • मुख्य=बाँकियो
  • ढोल
  • थाली
  • बांसुरी
  • घुंघरू
  • अलगोजा
  • झाँझ [Harendra ]

इस नृत्य की उत्पति राजस्थान के शाही दरबारों में हुई है। यह नृत्य राजस्थान का पारंपरिक लोक नृत्य है। यह नृत्य उन राजमार्ग लुटेरों की कहानी से संबंधित है जो शेखावाटी क्षेत्र में 17 वीं सदी में रहते थे व गरीबों को देने के लिए अमीरों का धन लूटते थे। ऐसा कहा जाता है कि मुगलों और मराठों के शासन के समय में इस नृत्य के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। मुगल एक बार घोड़ों पर सवार होकर आए थे ,और मराठों के गांवों में से एक गांव में रुके। वे जब सोने के लिए चले गये , तब मराठे आये और उन घोड़ों को चुरा लिया। बाद में पठानों ने युद्ध में इन घोड़ों को पाया। यह युद्ध, घोड़ा युद्ध के रूप में जाना जाता है। राजस्थान में कला प्रदर्शन ज्यादातर राजस्थान के जनजातियों और जातियों के लिए सामाजिक ऐतिहासिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करता है। घोड़े हमेशा राजस्थान में युद्ध और परिवहन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। बहादुर राना प्रताप सिंह (भारत के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी) की कथा है, उसके प्रति वफादार घोड़े- चेतक के उल्लेख के बिना अनकही है। वे शाही सत्ता के प्रतीक थे उन्होंने घोड़ों को घोड़ों के साथ बैलगाड़ी, हाथीयों व डाकुओं को रोकने में समर्थ पाया. राजस्थान में कला प्रदर्शन के ज्यादातर राजस्थान के जनजाति के संबंध को दर्शाती है और वे समय या जाति के लिए अजीब सामाजिक ऐतिहासिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करता है। घोड़े हमेशा राजस्थान में युद्ध और परिवहन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

सन्दर्भ

[संपादित करें]
  1. "Kachhi Ghodi Dance" (in अंग्रेज़ी). राजस्थान पर्यटन. Archived from the original on 10 सितंबर 2013. Retrieved १४ अप्रैल २०१५. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= (help)
  2. कृतिका बेहरवाला (६ सितम्बर २०१४). "A royal visarjan for Siddhivinayak Ganpati in Mumbai" [मुम्बई में सिद्धिविनायक गणपति के लिए शाही विसर्जन]. द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. Archived from the original on 19 जुलाई 2015. Retrieved १४ अप्रैल २०१५. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |date= (help)
  3. श्वेता रामाकृष्णन, पल्लवी पुंधीर (१७ मई २०१४). "Delhi's Gujaratis rejoice: Modi makes dreams happen" [दिल्ली के गुजराती आनन्दित: मोदी उनके सपनों को साकार करता है] (in अंग्रेज़ी). द इंडियन एक्सप्रेस. Archived from the original on 16 अप्रैल 2015. Retrieved १४ अप्रैल २०१५. {{cite web}}: Check date values in: |accessdate= and |date= (help)
  4. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 9 अप्रैल 2015. Retrieved 4 अप्रैल 2015.
  5. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 सितंबर 2013. Retrieved 4 अप्रैल 2015.
  6. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 10 अप्रैल 2015. Retrieved 4 अप्रैल 2015.