खंडूभाई कसानजी देसाई | |
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श्रम मंत्री
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प्रधानमंत्री | जवाहरलाल नेहरू |
पूर्वा धिकारी | वी वी गिरी |
उत्तरा धिकारी | गुलज़ारीलाल नंदा |
जन्म | २३ अक्टूबर १८९८ वलसाड, बॉम्बे राज्य (वर्तमान गुजरात) |
मृत्यु | १७ अप्रैल १९७५ अहमदाबाद, गुजरात |
राष्ट्रीयता | भारत |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस |
खंडूभाई कसानजी देसाई (२३ अक्टूबर १८९८ - १७ अप्रैल १९७५)[1] एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने १९५४ से १९५७ तक केंद्रीय श्रम मंत्री और ११ अप्रैल १९६८ से ५ जनवरी १९७५ तक आंध्र प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।[2][3]
खंडूभाई देसाई का जन्म २३ अक्टूबर १८९८ को गुजरात के वलसाड जिले में हुआ था। वलसाड में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उनका दाखिला मुंबई के विल्सन कॉलेज में कराया गया। लेकिन १९२० में महात्मा गाँधी असहयोग आंदोलन में कॉलेज का बहिष्कार कर बाहर आ गये। बाद में उन्होंने गाँधीजी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद से अपनी शिक्षा पूरी की।
श्रम आंदोलन
खंडूभाई देसाई जल्द ही श्रमिक आंदोलन में शामिल हो गये। उन्होंने अहमदाबाद के सूती मिल मजदूरों के संगठन 'मजूर महाजन' का काम संभाला। अनुसूया बेन साराभाई, शंकरलाल बैंकर, गुलज़ारी लाल नंदा उनके सहयोगी थे। खंडूभाई ने स्वदेशी की भावना और श्रमिकों के स्वाभिमान का प्रचार किया। धीरे-धीरे श्रमिक संघ का विस्तार होने लगा। परिणामस्वरूप, भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन काँग्रेस की स्थापना हुई और १९४७ में खंडूभाई देसाई इसके पहले सचिव चुने गये।
वे १९५० से १९५३ तक इस संस्था के अध्यक्ष भी रहे। १९५० में उन्होंने 'विश्व मजदूर संघ' में भारत के श्रमिकों का प्रतिनिधित्व किया। १९६२ में विश्व के स्वतंत्र ट्रेड यूनियनों के सम्मेलन में वे भारत के प्रतिनिधि भी थे।
खंडूभाई देसाई की गतिविधियाँ अन्य क्षेत्रों में भी समान रूप से महत्वपूर्ण थीं। १९३७ में उन्हें बॉम्बे राज्य विधान सभा का सदस्य चुना गया। १९४६ में उन्हें देश की संविधान सभा का सदस्य मनोनीत किया गया।
१९५० से १९५२ तक उन्होंने अनंतिम संसद के सदस्य के रूप में कार्य किया। खंडूभाई १९५२ के संसदीय चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मेहसाणा - (पश्चिम) संसदीय सीट से लोकसभा सदस्य चुने गए।
१९५४ से १९५७ तक उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की केंद्र सरकार में श्रम मंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद (१९५९ से १९६६) वे राज्यसभा के सदस्य रहे।
११ अप्रैल १९६८ से २५ जनवरी १९७५ तक उन्होंने आंध्र प्रदेश के ५वें राज्यपाल के रूप में कार्य किया। राज्यपाल पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे अहमदाबाद में रहने लगे और १७ अप्रैल १९७५ को उनकी मृत्यु हो गई।