चीन-अरब संबंध (चीनी: 中国与阿拉伯世界之间的关系; अरबी: العلاقات بين الصين والعالم العربي), ऐतिहासिक रूप से पहले खलीफा के समय से महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों और अच्छे राजनयिक संबंधों के साथ प्रारम्भ हुए। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना के बाद से, आधुनिक चीन-अरब संबंध और अच्छे हो गए हैं। चीन-अरब स्टेट्स कोऑपरेशन फोरम (सीएएससीएफ) चीन और अरब देशों को इस वैश्वीकरण के दौर में एक नई साझेदारी स्थापित करने में मदद कर रहा है। परिणामस्वरूप, दोनों पक्षों के बीच घनिष्ठ आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य संबंध कायम हो रहे हैं।[1][2] 2018 से, चीन और अरब देशों के बीच राजकीय यात्राओं, बढ़ते व्यापार और एक दूसरे को सहायता प्रदान करने के चलते इनके बीच के संबंध और भी गर्मा गए हैं।[3][4][5]
1990 के बाद से, किसी भी अरब देश के चीन गणराज्य (आरओसी) के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं। हालांकि आरओसी ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यालयों के माध्यम से कुछ अरबी देशों में राजनयिक रूप से अपना प्रतिनिधित्व करता है।
अरब जगत में 14 कन्फ्यूशियस संस्थान हैं। कन्फ्यूशियस संस्थान चीन के उन प्रमुख तरीकों में से एक हैं जिनसे वह अरब देशों और दुनिया में अपना प्रभाव कायम करता है। 14 वर्षों के संचालन के बाद, यह कहा जा सकता है कि ये कन्फ्यूशियस संस्थान चीनी सॉफ्ट पावर के एक उपकरण के रूप में अरब दुनिया में बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रवेश कर चुके हैं।[6]
बीते कुछ समय में इन दोनों पक्षों के बीच बढ़ते संबंधों का एक दुष्प्रभाव बढ़ते नशीली दवाओं के अवैध व्यापार के रूप में सामने आया है। ग्वांगडोंग के नशीली दवा पुलिस (ड्रग पुलिस) का दावा है कि प्रांत में अधिकांश ड्रग डीलर अफ्रीका या मध्य पूर्व से हैं।[7][8] 2007 के राजनयिक केबल में अमेरिकी राजनयिकों ने ड्रग डीलरों का मुकाबला करने में पुलिस को आने वाली भाषाई कठिनाइयों का वर्णन किया क्योंकि व्यापार मुख्य रूप से साथी अफ्रीकियों या मध्य पूर्व के लोगों के साथ किया जाता है।