झज्जर | |
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झज्जर स्थित 101 फुट ऊँची शिव की मूर्ति | |
निर्देशांक: 28°36′22″N 76°39′22″E / 28.606°N 76.656°Eनिर्देशांक: 28°36′22″N 76°39′22″E / 28.606°N 76.656°E | |
देश | भारत |
राज्य | हरियाणा |
ज़िला | झज्जर ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 48,424 |
भाषा | |
• प्रचलित | हरियाणवी, पंजाबी, हिन्दी |
समय मण्डल | IST (यूटीसी+5:30) |
झज्जर भारत के हरियाणा राज्य के झज्जर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह जिले का मुख्यालय भी है।[1][2][3] झज्जर दिल्ली से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
झज्जर की स्थापना छज्जु नाम के एक किसान ने की थी। पहले इसका नाम 'छज्जु नगर' था लेकिन बाद में यह झज्जर हो गया। इसके अलावा यहां की झज्ज्री (सुराही) बहुत मशहूर थी तो भी इसका नाम झज्जर पड़ा।
झझर गाँव की प्रधानी : दिवान पंडित राम रिछपालसिंह अत्रि के दशोरी काज के समय जब इनके वंशजो ने रियासत के भाईचारे को इकठ्ठा किया था। उसी पंचायत में दिवान परिवार को झझर गाँव की प्रधानी दी गई थी।इस क्षेत्र का ये प्रथम देशोरी काज माना जाता है। उस जमाने में 7 दिन तक इस आयोजन की कढ़ाई चढ़ी थी। झझर के पहले प्रधान पंडित दिवानजीलाल अत्रि हुए हैं। झझर की प्रधानी प्राचीन परंपरा के अनुसार झझर के अत्रि ब्राह्मणों के पास लगातार सात पीढ़ी से चली आ रही है। अब तक जानकारी के अनुसार उतर भारत में ये पहली 360 गाँव की प्रधानी है, जो ब्राह्मणों को मिलने का गौरव प्राप्त हुआ है। 360 गाँव की प्रधानी के कारण परिवार को "चौधरी की उपाधि" भी मिली थी। वर्तमान समय में झझर के प्रधान दिवान पं० सुभाष अत्रि हैं।
झज्जर के दो मुख्य शहर बहादुरगढ़ और बेरी है। बहादुरगढ़ की स्थापना राठी जाटों ने की थी। पहले बहादुरगढ़ को सर्राफाबाद के नाम से जाना जाता था। पिछले दिनों बहादुरगढ़ का तेजी से औद्योगिकरण हुआ है। बेरी इसका दूसरा मुख्य शहर है। यहां भीमेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। इस मन्दिर में पूजा करने के लिए देश-विदेश से पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं। मन्दिरों के अलावा पर्यटक यहां पर भिंडावास पक्षी अभ्यारण घूमने भी जा सकते हैं।
भिंडावास पक्षी अभयारण्य झज्जर से 15 कि॰मी॰ की दूरी पर है। दिल्ली से भी पर्यटक मात्र 3 घंटे में आसानी से अभ्यारण तक पहुंच सकते हैं। यह अभ्यारण लगभग 1074 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 250 से अधिक प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं। इन पक्षियों में स्थानीय और प्रवासी दोनों होते हैं। यहां पर एक झील का निर्माण भी किया गया है। यह झील बहुत सुन्दर है। पर्यटक इस झील के किनारे सैर का आनंद ले सकते हैं और इसके खूबसूरत दृश्यों को कैमरे में कैद भी कर सकते हैं।
गुरुकुल झज्जर, शहर के बाहरी भाग में स्थित है। महाशय विश्वम्भर दास, स्वामी परमानन्द और स्वामी ब्रह्मानन्द ने 16 मई, 1915 (विक्रम संवत 1972) को इसकी स्थापना की थी। यह गुरुकुल, गुरुकुल कांगड़ी से संबद्ध नहीं था बल्कि स्वतंत्र था। झज्जर गुरुकुल ने जहाँ चन्दगी राम जैसे विश्व-ख्याति के पहलवान पैदा किये हैं, वहां स्वामी ओमानन्द सरस्वती जैसे आचार्य एवं इतिहासविद इससे सम्बद्ध रहे।
आज गुरुकुल झज्जर में महाविद्यालय, पुरातत्व संग्रहालय, विशाल पुस्तकालय, औषधालय, गोशाला, व्यायामशाला, यज्ञशाला, उद्यान, भोजनालय, छात्रावास, अतिथिशाला, वानप्रस्थी सन्यासी कुटी समूह आदि के विशाल भवन खड़े हैं। महाविद्यालय में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक द्वारा मान्यता प्राप्त महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित आर्य पाठ्यविधि का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। पुरातत्व संग्रहालय में विपुल ऐतिहासिक पुरा अवशेष संग्रहीत हैं । औषधालय में असाध्य रोगों के निदान के लिए औषधियों का निरन्तर निर्माण चल रहा है । आयुर्वैदिक पद्धति से चिकित्सा कार्य होता है। इस औषधालय ने अनेक औषधियों का आविष्कार किया जिनमें संजीवनी तेल, स्वप्नदोषामृत, स्त्रीरोगामृत, अर्ष रोगामृत, सर्पदंशामृत और नेत्र ज्योति सुरमा जन-जन में लोकप्रिय हैं।
गुरुकुल झज्जर की प्रसिद्धि इसमें स्थित संग्रहालय के कारण भी है। देश-विदेश के शोधार्थी यहाँ आते रहते हैं। यह हरियाणा का सबसे बड़ा संग्रहालय है। इसका निर्माण 1959 ई. में किया गया था। संग्रहालय के निर्देशक स्वामी ओमानंद सरस्वती ने पूरे विश्व से वस्तुएं एकत्र करके संग्रहित की हैं। उन्हीं के कठिन परिश्रम के फलस्वरूप पर्यटक यहां पर रोमन, यूनानी, गुप्त, पाल, चोल, गुजर, प्रतिहार, चौहान, खिलजी, तुगलक, लेड़ही और बहमनी वंश के सिक्के व कलाकृतियां देख सकते हैं। इसके अलावा यहां पर नेपाल, भूटान, श्रीलंका, चीन, पाकिस्तान, जापान, थाईलैंड, बर्मा, रूस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस और इंग्लैंड आदि देशों की मुद्राएँ भी देखी जा सकती हैं।
अपने जीवन के कठोरतम, संघर्षमय क्षण, जेलों के संस्मरण, विदेश-यात्रायें, संग्रहालय की स्थापना और उसमें एकत्रित दुर्लभ वस्तुओं का विवरण, शरीर पर घावों के निशान, हरियाणा बनाने में झज्जर का योगदान, आमरण अनशन, हिन्दी आंदोलन, अस्त्र-शस्त्रों का बीमा, हिन्दू-मुस्लिम मारकाट के संस्मरण, महाभारत काल के अस्त्र-शस्त्र, मुस्लिम भेष धारण करके लाहौर जाने का संस्मरण, 1947 में 1000 कारतूसों का प्रबन्ध, दिव्य अस्त्रों का जखीरा, हाथी दांत पर कशीदाकशी से शकुंतला की आकृति, चन्दन की जड़ में सर्प, चित्तौड़गढ़ का विजय स्तंभ, बादाम में हनुमान, झज्जर के नवाब फारुख्शयार का कलमदान और मोहर, नवाबों की चौपड़, गोटियां और पासे, माप-तोल के बाट और जरीब आदि गुरुकुल की धरोहर हैं।
झज्जर के बेरी गांव में पर्यटक भीमेश्वरी देवी मन्दिर के दर्शन के लिए जा सकते हैं। यह मन्दिर महाभारत काल का है। नवरात्रि में यहां पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। भीमेश्वरी देवी 'भीमा देवी' के नाम से भी प्रसिद्ध है जोकि सहारनपुर स्थित शाकुंभरी देवी का ही एक रूप है। स्थानीय लोगों में इस मन्दिर के प्रति बड़ी श्रद्धा है। इनके अलावा देश-विदेश से भी पर्यटक इस मन्दिर में पूजा करने के लिए आते हैं।
झज्जर में स्थित बुआ का गुम्बद बहुत खूबसूरत है। इसका निर्माण मुस्तफा कलोल की बेटी बुआ ने कराया था। उन्होंने इसका निर्माण अपने प्रेमी की याद में कराया था। गुम्बद के पास ही एक तालाब का निर्माण भी किया गया है। वह दोनों इसी तालाब के पास मिलते थे।