टीकमगढ़ Tikamgarh टेहरी | |
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नगर व ज़िला मुख्यालय | |
टीकमगढ़ की तालकोठी | |
निर्देशांक: 24°50′13″N 78°52′05″E / 24.837°N 78.868°Eनिर्देशांक: 24°50′13″N 78°52′05″E / 24.837°N 78.868°E | |
देश | भारत |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | टीकमगढ़ ज़िला |
नाम स्रोत | टीकम (कृष्ण) |
शासन | |
• सभा | नगरपालिका |
• अध्यक्ष | लक्ष्मी-राकेश गिरि (भाजपा) |
क्षेत्रफल | |
• कुल | 21 किमी2 (8 वर्गमील) |
ऊँचाई | 349.17 मी (1,145.57 फीट) |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 79,106 |
• घनत्व | 3,800 किमी2 (9,800 वर्गमील) |
भाषा | |
• प्रचलित | हिन्दी, बुन्देली |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 472001 |
दूरभाष कोड | 07683 |
वाहन पंजीकरण | MP-36 |
लिंगानुपात | 911 |
साक्षरता | 85% |
नई दिल्ली से दूरी | 500 किलोमीटर (310 मील) |
वेबसाइट | www |
टीकमगढ़ (Tikamgarh) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के टीकमगढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। इसका भूतपूर्व नाम टेहरी (Tehri) था, जिसका अर्थ "त्रिकोण" है, क्योंकि इसका मूल रूप तीन पृथक बस्तियों का था। इतिहास में टीकमगढ़ ओरछा राज्य का भाग था, जिसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में राजा श्री रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला ने करी थी। सन् 1783 में ओरछा राज्य की राजधानी को टेहरी लाया गया, जहाँ टीकमगढ़ का दुर्ग स्थित था, और फिर शहर का नाम ही टेहरी से बदलकर दुर्ग का नाम हो गया।[1][2]
टीकमगढ़ का मूल नाम 'टेहरी' था, जो अब पुरानी टेहरी के नाम से जाना जाता है। 1783 ई ओरछा के शासक विक्रमजीत सिंह बुंदेला (1776 - 1817 ई.) ने ओरछा से अपनी राजधानी टेहरी जिला टीकमगढ़ में स्थानांतरित कर दी थी। टीकमगढ़ नाम, टीकम (श्री कृष्ण का एक नाम) से पड़ा। टीकमगढ़ जिला बुंदेलखंड क्षेत्र का एक हिस्सा है। यह जामनी, बेतवा और धसान की एक सहायक नदी के बीच बुंदेलखंड पठार पर है। इस जिले के अंतर्गत क्षेत्र ओरछा के सामंती राज्य के भारतीय संघ के साथ अपने विलय तक हिस्सा था। ओरछा राज्य रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला द्वारा 1501 में स्थापित किया गया था। विलय के बाद, यह 1948 में विंध्य प्रदेश के आठ जिलों में से एक बन गया। 1 नवम्बर को राज्यों के पुनर्गठन के बाद, 1956 यह नए नक्काशीदार मध्य प्रदेश राज्य के एक जिले में बन गया।
जिले के तीन उप में विभाजित-विभाजन है, जो आगे छह तहसीलें में विभाजित किया जाता है। टीकमगढ़ उप विभाजन शामिल टीकमगढ़ और बल्देवगढ़ तहसीलें. निवाडी और पृथ्वीपुर तहसीलें निवाडी उप विभाजन फार्म जबकि जतारा उप विभाजन जतारा, पलेरा और लिधौरा तहसीलें शामिल हैं। जिले के छह विकास खंडों, अर्थात् टीकमगढ़, बल्देवगढ़, जतारा, पलेरा, निवाडी, पृथ्वीपुर शामिल है। बेतवा नदी जिले की पूर्वी सीमा के साथ बहती है उसकी सहायक नदियों में से एक के उत्तर पश्चिमी सीमा के साथ बहती है। बेतवा की सहायक नदियों इस जिले से बह जामनी, बागड़ी और बरुआ हैं।
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शहर के बीचों बीच श्री श्री 1008 श्री जानकी रमण मंदिर (श्री ठाकुर गोविन्द जू विराजमान) छोटी देवी के अंदर टीकमगढ़ में स्थित हैं। यह मंदिर टीकमगढ़ में पपौरा चौराहा के समीप बुख़ारिया जी की गली में है। छोटी देवी मंदिर में प्रत्येक नवरात्रि में नौ दिनों के लिये भव्य मेला लगाया जाता है।
ग्राम उपरारा जेवर, टीकमगढ़ में यह प्राचीन मंदिर बीच बस्ती में स्थित है, जिसमें शंकरजी की केवल एक पिंडी थी। उस पिंडी के आस-पास कई पिंडियां भूमि से स्वयं प्रकट हो गयीं, जो प्रति वर्ष बढ़ती जाती हैं। संप्रति तीन पिंडियां बहुत बड़ी हैं, तीन मझोली हैं और दो निकल रही हैं। यह स्थान रानीपुर रोड स्टेशन से ४ मील दक्षिण में है। (निवाडी जिले में)
तथा इसके साथ ही महावीरन मन्दिर की मान्यता अत्यधिक है क्योंकि यहाँ सर्प से कटे हुए व्यक्तियों का सही हो जाना विख्यात हैं। जो उपरारा ग्राम पंचायत का मन्दिर है तथा रानीपुर मार्ग पर स्थित हैं।
इसके अलावा ग्राम पंचायत उपरारा के नाम के साथ ही एक कवि का नाम जुड़ता है जो युवाओ एवं समाज के लिए चेतना का काम करता है ।
टीकमगढ़ जिला मुख्यालय से बुडेरा मार्ग पर वकपुरा नामक एक गांव स्थित है। इसी गांव के पास हरी भरी पहाडि़यों के बीच विद्या की देवी सरस्वती जी का मंदिर है। जिसे बगाज माता के नाम से जाना जाता है। यह करीब 1100 वर्ष प्राचीन है। देवी मंदिर गांव से करीब 2 किमी दूर पहाडि़यों के बीच है। माना जाता है कि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व वकपुरा गांव के लोगों ने इस पवित्र स्थल की पहचान कर यहां आना जाना शुरु किया। यहां पर नवरात्रि के दिनों नबें को बहुत व्यकि जबारे चढ़ाने आते हैं एवं बहुत भीड़ इकट्ठी होती है यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं।
बल्देवगढ़ तहसील का यह गांव जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर टीकमगढ़-छतरपुर रोड पर स्थित है। यह गांव जैन तीर्थ का प्रमुख केन्द्र कहा जाता है। अनेक प्राचीन जैन मंदिर यहां बने हैं, जिनमें शांतिनाथ मंदिर प्रमुख है। इस मंदिर में शांतिनाथ की 20 फीट की प्रतिमा स्थापित है। एक बांध के साथ चंदेल काल का जलकुंड यहां देखा जा सकता है। इसके अलावा श्री वर्द्धमान मंदिर, श्री मेरू मंदिर, श्री चन्द्रप्रभ् मंदिर, श्री पार्श्वनाथ मंदिर, श्री महावीर मंदिर, श्री बाहुबली मंदिर और पंच पहाड़ी मंदिर यहां के अन्य लोकप्रिय मंदिर हैं। बाहुबली मंदिर में भगवान बाहुबली की 15 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है।
टीकमगढ़ से ५ किलोमीटर दूर सागर-टीकमगढ़ मार्ग पर पपौरा जी जैन तीर्थ है, जो कि बहुत ही प्राचीन है और यहाँ १०८ दिगम्बर जैन मंदिर हैं जो कि सभी प्रकार के आकार मैं बने हुए। जैसे- रथ आकार और कमल आकार। यहाँ कई सुन्दर भोंयरे है।
संवत् 1890 में एक बार एक कलाकार मूर्तियों को बेचने के लिए 'बम्होरी' जा रहा था। अचानक बैलगाड़ी बम्होरी के पास एक पीपल के पेड़ के पास रुक गई और उसने अपने सभी प्रयासों को बेकार पाया और गाड़ी को आगे नहीं ले जा पाया पर जब कलाकार ने फैसला किया कि वह 'बंधा जी क्षेत्र' में स्थापित करेगा और उसने गाड़ी बंधा जी की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया यह मूर्ति अब भी बंधा जी के विशाल मंदिर में स्थापित है।
टीकमगढ़-निवाड़ी रोड पर स्थित तहसील पृथ्वीपुर के पास मडिया ग्राम से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित अछरू माता का मंदिर है। इस पहाड़ी पर स्थित अछरू माता का मंदिर बहुत चर्चित है। मंदिर एक कुंड के लिए भी प्रसिद्ध है जो सदैव जल से भरा रहता है। हर साल नवरात्रि के अवसर पर ग्राम पंचायत की देखरेख में मेला लगता है। जहां हजारों की संख्या में भीड़ आती है। जिसमें दूर-दूर से लोग आकर शिरकत करते हैं। माना जाता है कि इस कुंड से माता अपने भक्तों को कुछ न कुछ देती है जैसे गरी,दही,फल आदि। जिस भक्त को माता रानी के द्वारा (कुंड के माध्यम से) कुछ ना कुछ फल दिया जाता है उस का कार्य पूरा होता है। ग्राम मडिया,तहसील पृथ्वीपुर,जिला टीकमगढ़ में है। यहां मूर्ति नहीं है, एक कुंड के आकार का गड्ढा है। यहां चैत्र-नवरात्र में प्राचीनकाल से मेला लगता आ रहा है।
यह नगर टीकमगढ़-छतरपुर सड़क पर टीकमगढ़ से 26 किलोमीटर दूर स्थित है। खूबसूरत ग्वाल सागर कुंड के ऊपर बना पत्थर का विशाल किला यहां का मुख्य आकर्षण है। इस किले का विशाल मुख्य द्वार आकर्षक है एवं सात द्वार किले में प्रवेश हेतु बनाये गये थे.प्रथम प्रवेश द्वार के पहले एक पहरेदारकक्ष एवं संकरा पुल जो किले के तीन तरफ बनी खाई को पाटकर अंदर किले में ले जाता था.खाई में काँटेदार केक्टस,केवड़ा आदि जलीय पेड़ लगाये गये थे ताकि दुश्मन प्रवेश करे तो पुल पर से नीचे गिरा दिया जाये .वहाँ इन पेड़ों में जहरीले अजगर,विभिन्न सर्प मौजूद रहा करते थे.तालाब का पानी इस खाई में भरा रहने से किला अभेद्य होता था . अगला दूसरा द्वार पहरेदारों के खड़े होने के लिये काफी चौड़ा था फिर तीन द्वार और पीछे तक जाने के लिये बने हैं वहाँ एक काला खड़ा पहाड़ है जो तालाब को गहराई देता है।एक पुरानी और विशाल बंदूक आज भी किले में देखी जा सकती है। यहाँ पर एक बड़ी तोप जिसका नाम गर्भगिरावनी तोप था, क्योंकि कहा जाता है कि जब यह तोप युद्ध के समय चलती थी,तब इसके वेग से गर्भवती माताओं के गर्भ गिर जाते थे.एवं कुछ अन्य छोटीं तोपें,इनके ऐतिहासिक महत्व एवं सुरक्षा को देखते हुये भोपाल के म्यूजियम में पहुँचा दीं गईं हैं।इसी तोप के नाम पर यहाँ कहावत बनी "बल्देवगढ़ की तोप अर्थात बहुत बड़ी हस्ती, किले के दक्षिणी छोर पर तालाब के तट पर खंडहर होते हुये हिस्से में अत्यंत प्राचीन बलदेव जी का मंदिर है जिनके नाम से बलदेवगढ़ पड़ा.किले ऊपरी हिस्से में सात मढ़ियाँ बनी हुयीं हैं जिनसे झाँकने पर चारोंओर का नजारा लिया जा सकता है।यहाँ से 4 कि.मीं. दूर टीकमगढ़ रोड पर ek chhoti si pahadi par maa विंध्यवासिनी देवी मंदिर, बलदेवगढ़ का लोकप्रिय मंदिर है। चैत के महीने में सात दिन तक चलने वाले विन्ध्यवासिनी मेला यहां लगता है। यहां पान के पत्तों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।यदि इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से सुरक्षित किया जाये यहाँ बहुत सुँदर पुरातत्व से भरपूर किला,बावड़ी एवं सामग्री मिल सकती है
टीकमगढ़ से 40 किलोमीटर दूर टीकमगढ़-मऊरानीपुर रोड पर यह नगर स्थित है। नगर की मदन सागर झील काफी खूबसूरत है। इस लंबी-चौड़ी झील पर दो बांध बने हैं। इन बांधों को चन्देल राजपूत सरदार मदन वर्मन ने 1129-67 ई. के आसपास बनवाया था।
यह निवाड़ी तहसील का लोकप्रिय गांव है। यह प्रथम स्थल है जिसे बुंदेला राजपूतों ने खंगार राजपूतों से हासिल किया था। 1539 तक यह स्थान राज्य की राजधानी था। इस गांव में एक छोटी पहाड़ी के ऊपर महाराज बीरसिंह जुदेव बुंदेला द्वारा बनवाया गया किला देखा जा सकता है। देवी महामाया ग्रिद्ध वासिनी मंदिर भी यहीं स्थित है। मंदिर में सिंह सागर नाम का विशाल कुंड है। हर सोमवार को यहां बाजार लगता है।
टीकमगढ़ से 5 किलोमीटर दक्षिण में जमड़ार नदी के किनारे यह गांव बसा है। गांव कुंडदेव महादेव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि मंदिर के शिवलिंग की उत्पत्ति एक कुंड से हुई थी। गांव के दक्षिण में बरीघाट नामक एक खूबसूरत पिकनिक स्थल और आकर्षक ऊँचा वाटर फॉल है। विनोबा संस्थान और पुरातत्व संग्रहालय भी यहां देखा जा सकता है
सूर्य मंदिर के लिए विख्यात मडखेरा टीकमगढ़ से 20 किलोमीटर उत्तर पश्चिमी हिस्से में स्थित है। मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर है तथा इसमें भगवान सूर्य की प्रतिमा स्थापित है। इसके निकट ही एक पहाड़ी पर बना विन्ध्य वासिनी देवी का मंदिर भी देखा जा सकता है।
बेतवा नदी तट पर बसा पृथ्वीपुर तहसील के यह बगल में यह तहसील उत्तर प्रदेश के झाँसी से 15 किलोमीटर की दूरी पर है। काफी लंबे समय तक राज्य की राजधानी रहे ओरछा की स्थापना महाराजा रूद्र प्रताप सिंह बुंदेला ने 1531 ई. में की थी। ओरछा को हिन्दुओं का प्रमुख धार्मिक केन्द्र माना जाता है। राजा राम मंदिर, जहाँगीर महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, फूलबाग, शीशमहल, कंचन घाट, चन्द्रशेखर आजाद मैमोरियल, हरदौल की समाधि, बड़ी छतरी, राय प्रवीन महल और केशव भवन ओरछा के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
यह टीकमगढ़ जिले एवं छतरपुर जिले की सीमा पर बना हुआ एक बांध है जिससे लगभग हजारों हेक्टेयर की भूमि की सिंचाई होगी यह टीकमगढ़ जिले के पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है इस बांध को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पर आते हैं इस बांध में 12 गेट बनाए गए हैं यह बांध सुजारा गांव के पास स्थित है इस बांध में कई गांव डूब चुके हैं और लोगों को मुआवजा दिया जा चुका है यह मध्य प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित बांध है जो फसलों की सिंचाई हेतु बनाया गया है। यह जिला मुख्यालय लगभग से 35 से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
2024 में टीकमगढ़ नगर पालिका की वर्तमान अनुमानित जनसंख्या लगभग 111,000 है। भारत की जनगणना 2011 द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, टीकमगढ़ नगर पालिका की जनसंख्या 79,106 है, जिसमें 41,399 पुरुष हैं, जबकि 37,707 महिलाएं हैं। [3]
टीकमगढ़ में घूमने लायक कई जगहें हैं। कुछ स्थान ऐतिहासिक महत्व के हैं।