देवभूमि द्वारका जिला

देवभूमि द्वारका जिला
દેવભૂમિ દ્વારકા જિલ્લો
Devbhumi Dwarka district
गुजरात का जिला
द्वारका का विहंगम दृष्य
गुजरात में स्थान
गुजरात में स्थान
देश भारत
राज्यगुजरात
क्षेत्रफल
 • कुल4051 किमी2 (1,564 वर्गमील)
जनसंख्या (२०११)
 • कुल7,42,484
 • घनत्व180 किमी2 (470 वर्गमील)
भाषाएँ
 • अधिकारिकगुजराती, हिन्दी
समय मण्डलIST (यूटीसी+5:30)
वेबसाइटअधिकारिक जालस्थल
गुजरात में सौराष्ट्र के जिले

देवभूमि द्वारका जिला (गुजराती: દેવભૂમિ દ્વારકા જિલ્લો) भारत देश में गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र विस्तार में स्थित राज्य के ३३ जिलों में से एक जिला है।[1] जिले का नाम कृष्ण की कर्मभूमि द्वारका से पड़ा है। जिले का मुख्यालय खम्भालिया है। १५ अगस्त २०१३ को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जामनगर जिला का विभाजन करके देवभूमि द्वारका को नया जिला बनाने की घोषणा की थी। [2] द्वारका जिला कच्छ की खाड़ी और अरबी समुद्र के तट पर बसा है। द्वारका हिन्दू धर्म के प्राचीन तीर्थस्थलों में से एक है। यहाँ से हिन्दू धर्म में पवित्र माने जाने वाली गोमती नदी पसार होती है। द्वारकाधीश का जगत मन्दिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है।

प्राथमिक जानकारी

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दर्शनीय स्थल

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जगत मन्दिर

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द्वारका में द्वारकाधीश का मुख्य मन्दिर जगत मन्दिर के नाम से जाना जाता है। समग्र विश्व में प्रसरे सनातन धर्म के लोगो के लिए ये मन्दिर श्रद्धा एवम आस्था का प्रतिक माना जाता है। भारत, नेपाल और विश्व में बसे हिन्दू लोग यहा पे द्वारकाधीश के दर्शन हेतु आते है।

गोमती तालाब

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द्वारका के दक्षिण में एक लम्बा तालाब है। इसे 'गोमती तालाब' कहते है। इसके नाम पर ही द्वारका को गोमती द्वारका कहते है। भारतीय संस्कृति में अति पवित्र माने जाने वाली प्राचीन नदियों में से एक गोमती है। ये नदी यहाँ से पसार होती है।

निष्पाप कुण्ड

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गोमती तालाब के ऊपर नौ घाट है। इनमें सरकारी घाट के पास एक कुण्ड है, जिसका नाम निष्पाप कुण्ड है। इसमें गोमती का पानी भरा रहता है। नीचे उतरने के लिए पक्की सीढ़िया बनी है। यात्री सबसे पहले इस निष्पाप कुण्ड में नहाकर अपने को शुद्ध करते है। बहुत-से लोग यहां अपने पुरखों के नाम पर पिंड-दान भी करतें हैं।

दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर

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दक्षिण की तरफ बराबर-बराबर दो मंदिर है। एक दुर्वासा का और दूसरा मन्दिर त्रिविक्रमजी को टीकमजी कहते है। त्रिविक्रमजी के मन्दिर के बाद प्रधुम्नजी के दर्शन करते हुए यात्री इन कुशेश्वर भगवान के मन्दिर में जाते है। मन्दिर में एक बहुत बड़ा तहखाना है। इसी में शिव का लिंग है और पार्वती की मूर्ति है।

कुशेश्वर मंदिर

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कुशेश्वर शिव के मन्दिर के बराबर-बराबर दक्षिण की ओर छ: मन्दिर और है। इनमें अम्बाजी और देवकी माता के मन्दिर खास हैं। रणछोड़जी के मन्दिर के पास ही राधा, रूक्मिणी, सत्यभामा और जाम्बवती के छोटे-छोटे मन्दिर है।

हनुमान मंदिर

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आगे वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मन्दिर है। आखिर में संगम घाट आता है। यहां गोमती समुद्र से मिलती है। इस संगम पर संगम-नारायणजी का बहुत बड़ा मन्दिर है।

शारदा मठ

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शारदा-मठ को आदि गुरु शंकराचार्य ने बनबाया था। उन्होने पूरे देश के चार कोनों में चार मठ बनायें थे। उनमें एक यह शारदा-मठ है। परंपरागत रूप से आज भी शंकराचार्य मठ के अधिपति है। भारत में सनातन धर्म के अनुयायी शंकराचार्य का सम्मान करते है। [3]

चक्र तीर्थ

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संगम-घाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर एक ओर घाट है। इसे चक्र तीर्थ कहते है। इसी के पास रत्नेश्वर महादेव का मन्दिर है।

कैलाश कुण्ड

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इनके आगे यात्री कैलासकुण्ड़ पर पहुंचते है। इस कुण्ड का पानी गुलाबी रंग का है। कैलासकुण्ड के आगे सूर्यनारायण का मन्दिर है। इसके आगे द्वारका शहर का पूरब की तरफ का दरवाजा पड़ता है। इस दरवाजे के बाहर जय और विजय की मूर्तिया है।

गोपी तालाब

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जमीन के रास्ते जाते हुए तेरह मील आगे गोपी-तालाब पड़ता है। यहां की आस-पास की जमीन पीली है। तालाब के अन्दर से भी रंग की ही मिट्टी निकलती है। इस मिट्टी को वे गोपीचन्दन कहते है।

बेट द्वारका

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बेट-द्वारका ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। बेट-द्वारका के टापू[4] का पूरब की तरफ का जो कोना है, उस पर हनुमानजी का बहुत बड़ा मन्दिर है। इसीलिए इस ऊंचे टीले को हनुमानजी का टीला कहते है। आगे बढ़ने पर गोमती-द्वारका की तरह ही एक बहुत बड़ी चहारदीवारी यहां भी है। इस घेरे के भीतर पांच बड़े-बड़े महल है। ये दुमंजिले और तिमंजले है। पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का महल है। इसके दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल है। उत्तर में रूक्मिणी और राधा के महल है। इन पांचों महलों की सजावट ऐसी है कि आंखें चकाचौंध हो जाती हैं। इन मन्दिरों के किबाड़ों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान कृष्ण और उनकी मूर्ति चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी है। मूर्तियों का सिंगार बड़ा ही कीमती है। हीरे, मोती और सोने के गहने उनको पहनाये गए हैं। सच्ची जरी के कपड़ों से उनको सजाया गया है।

भौगोलिक स्थिति

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जिले के तहसील

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बाहरी कड़ियाँ

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इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 12 अक्तूबर 2019. Retrieved 1 नवंबर 2015. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= and |archive-date= (help)
  2. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 5 मार्च 2016. Retrieved 1 नवंबर 2015. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  3. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 23 मई 2015. Retrieved 3 नवंबर 2015. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)
  4. "संग्रहीत प्रति". Archived from the original on 26 अप्रैल 2016. Retrieved 3 नवंबर 2015. {{cite web}}: Check date values in: |access-date= (help)