निर्जरा जैन दर्शन के अनुसार एक तत्त्व हैं।लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:Footnotes/anchor_id_list' not found। इसका अर्थ होता है आत्मा के साथ जुड़े कर्मों का क्षय करना। यह जन्म मरण के चक्र से मुक्त होने के लिए आवश्यक हैं। आचार्य उमास्वामी द्वारा विरचित जैन ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र का ९ अध्याय इस विषय पर हैं। निर्जरा संवर के पश्चात् होती हैं। जैन ग्रन्थ द्रव्यसंग्रह के अनुसार कर्म आत्मा को धूमिल करते देते हैं, निर्जरा से आत्मा फिर निर्मलता को प्राप्त होती हैं।[1]
निर्जरा के दो भेद हैं:लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:Footnotes/anchor_id_list' not found।
जैन ग्रंथों के अनुसार तप से निर्जरा होती हैं।लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:Footnotes/anchor_id_list' not found। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार निर्जरा के लिए बाईस परिषह सहने योग्य हैं।लुआ त्रुटि package.lua में पंक्ति 80 पर: module 'Module:Footnotes/anchor_id_list' not found।