पाकिस्तान बनने के बाद से ही वहाँ धार्मिक भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न एक गम्भीर समस्या है। वहाँ के हिन्दू, सिख, ईसाई और अहमदिया मुसलमानों को असहनीय उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। उनके धार्मिक स्तहलों पर आक्रमण किए जाते हैं, उनकी लड़कियों का अपहरण करके जबरन उनको मुसलमान बनाकर उनसे शादी कर ली जाती है और उनके मानवाधिकारों पर बारम्बार प्रहार किए जाते हैं। पाकिस्तान के द्वितीय प्रधानमन्त्री ख्वाजा निजामुद्दीन ने एक बार कहा था, मैं इस बात को नहीं मानता कि मजहब, व्यक्ति का निजी मामला है I मैं यह भी नहीं मान सकता कि किसी इस्लामी राज्य में सभी नागरिकों को एकसमान अधिकार होते हैं।[1]