पोखरण-2 ऑपरेशन शक्ति | |
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बेलनाकार आकार परमाणु बम, शक्ति 1, अपने विस्फोट से पहले। | |
सूचना | |
देश | भारत |
परीक्षण स्थल | पोखरण परीक्षण रेंज, राजस्थान |
अवधि | 11–13 मई 1998 |
कुल परीक्षण | 5 |
परीक्षण प्रकार | भूमिगत परीक्षण |
उपकरण का प्रकार | विखंडन/संलयन (फिशन/फ्यूज़न) |
अधि. प्रतिफल | 43–45 kilotons of TNT (180–190 Tजूल) परीक्षण किया[1] |
भ्रमण | |
पिछला परीक्षण | पोखरण-1 (ऑपरेशन मुस्कुराते बुद्ध) |
पोखरण-2 मई 1998 में पोखरण परीक्षण रेंज पर किये गए पांच परमाणु बम परीक्षणों की श्रृंखला का एक हिस्सा है।[2] यह दूसरा भारतीय परमाणु परीक्षण था; पहला परीक्षण, कोड नाम स्माइलिंग बुद्धा (मुस्कुराते बुद्ध), मई 1974 में आयोजित किया गया था।[3]
11 और 13 मई, 1998 को राजस्थान के पोरखरण परमाणु स्थल पर पांच परमाणु परीक्षण किये थे। इनमें 45 किलोटन का एक फ्यूज़न परमाणु उपकरण शामिल था। इसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम के नाम से जाना जाता है। 11 मई को हुए परमाणु परीक्षण में 15 किलोटन का विखंडन (फिशन) उपकरण और 0.2 किलोटन का सहायक उपकरण शामिल था। इन परमाणु परीक्षण के बाद जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित प्रमुख देशों द्वारा भारत के खिलाफ विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों लगाये गए।[4]
परमाणु बम, बुनियादी सुविधाओं और संबंधित तकनीकों पर शोध के निर्माण की दिशा में प्रयास द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही भारत की ओर से शुरू किया गया। भारत का परमाणु कार्यक्रम 1944 में आरंभ हुआ माना जाता है जब परमाणु भौतिकविद् होमी भाभा ने परमाणु ऊर्जा के दोहन के प्रति भारतीय कांग्रेस को राजी करना शुरू किया-एक साल बाद इन्होंने टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान(टीआईएफआर) की स्थापना की।
1950 के दशक में प्रारंभिक अध्ययन बीएआरसी में किये गए और प्लूटोनियम और अन्य बम घटकों के उत्पादन व विकसित की योजना थी। 1962 में, भारत और चीन विवादित उत्तरी मोर्चे पर संघर्ष में लग गए और 1964 के चीनी परमाणु परीक्षण से भारत ने अपने आप को कमतर महसूस किया। जब विक्रम साराभाई इसके प्रमुख बन गए और 1965 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसमें कम रुचि दिखाई तो परमाणु योजना का सैन्यकरण धीमा हो गया।
बाद में जब इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानमंत्री बनीं व भौतिक विज्ञानी राजा रमन्ना के प्रयासों में शामिल होने पर परमाणु कार्यक्रम समेकित (कंसोलिडेट) किया गया। चीन के द्वारा एक और परमाणु परीक्षण करने के कारण अंत में 1967 में परमाणु हथियारों के निर्माण की ओर भारत को निर्णय लेना पड़ा और 1974 में अपना पहला परमाणु परीक्षण, मुस्कुराते बुद्ध आयोजित किया।[5]
मुस्कुराते बुद्ध के जवाब, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह ने गंभीर रूप से भारत के परमाणु कार्यक्रम को प्रभावित किया। दुनिया की प्रमुख परमाणु शक्तियों ने भारत और पाकिस्तान, जो भारत की चुनौती को पूरा करने के लिए होड़ लगा रहा था, पर अनेक तकनीकी प्रतिबन्ध लगाये। परमाणु कार्यक्रम ने वर्षों तक साख और स्वदेशी संसाधनों की कमी तथा आयातित प्रौद्योगिकी और तकनीकी सहायता पर निर्भर रहने के कारण संघर्ष किया। आईएईए में, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि भारत के परमाणु कार्यक्रम सैन्यकरण के लिए नहीं है हालाँकि हाइड्रोजन बम के डिजाइन पर प्रारंभिक काम के लिए उनके द्वारा अनुमति दे दी गई थी।[6]
1975 में देश में आपातकाल लागू होने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के पतन के परिणामस्वरूप, परमाणु कार्यक्रम राजनीतिक नेतृत्व और बुनियादी प्रबंधन के आभाव के साथ छोड़ दिया गया था। हाइड्रोजन बम के डिजाईन का काम एम श्रीनिवासन, एक यांत्रिक इंजीनियर के तहत जारी रखा गया पर प्रगति धीमी थी। परमाणु कार्यक्रम को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जो शांति की वकालत करने के लिए प्रसिद्ध थे की ओर से कम ध्यान दिया गया।[6] 1978 में प्रधानमंत्री देसाई ने भौतिक विज्ञानी रमन्ना का तबादला भारतीय रक्षा मंत्रालय में किया और उनकी सरकार में परमाणु कार्यक्रम ने वांछनीय दर से बढ़ना जारी रखा।[6][7]
परेशान करने वाली खबर पाकिस्तान से आई, जब दुनिया को पाकिस्तान के गुप्त परमाणु बम कार्यक्रम के बारे में पता चला। भारत के परमाणु कार्यक्रम के विपरीत, पाकिस्तान का परमाणु बम कार्यक्रम अमेरिका के मैनहट्टन परियोजना के लिए समान था, यह कार्यक्रम नागरिक वैज्ञानिकों के साथ सैन्य निरीक्षण के तहत था। पाकिस्तानी परमाणु बम कार्यक्रम अच्छी तरह से वित्त पोषित था; भारत को एहसास हुआ कि पाकिस्तान संभवतः दो साल में अपनी परियोजना में सफल हो जायेगा।[6]
1980 में आम चुनाव में , इंदिरा गांधी की वापसी तो चिह्नित किया और परमाणु कार्यक्रम की गतिशीलता में तेजी आ गई। सरकार की ओर अन्य कोई परमाणु परीक्षण करने से इनकार किया जाता रहा पर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देखा कि पाकिस्तान ने अपने परमाणु कार्य को जारी रखा है तो परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाना जारी रखा गया। हाइड्रोजन बम की दिशा में शुरूआत कार्य के साथ ही मिसाइल कार्यक्रम का भी शुभारंभ दिवंगत राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के अंतर्गत शुरू हुआ, जो तब एक एयरोस्पेस इंजीनियर थे।[6]
पाकिस्तान की हथियार परीक्षण प्रयोगशालाओं के विपरीत, भारत पोखरण में अपनी गतिविधि को छिपा सकने में असमर्थ था, पाकिस्तान में उच्च ऊंचाई ग्रेनाइट पहाड़ों के विपरीत यहाँ केवल झाड़ियाँ ही थीं और राजस्थान के रेगिस्तान में रेत के टीले जांच कर रहे उपग्रहों से ज्यादा कवर प्रदान नहीं कर सकते थे। भारतीय खुफिया एजेन्सी अमेरिकी जासूसी उपग्रहों के प्रति जागरूक थी और अमेरिकी सीआईए 1985 के बाद से ही भारतीय टेस्ट की तैयारियों का पता लगाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए, परीक्षण को भारत में पूर्ण गोपनीय रखा गया ताकि अन्य देशों द्वारा पता लगाने की संभावना से बचा जा सके। भारतीय सेना के कोर इंजीनियर्स की 58वें इंजीनियर रेजिमेंट को बिना अमरीकी जासूसी उपग्रहों द्वारा नजर में आए परीक्षण साइटों को तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया। 58वें इंजीनियर के कमांडर कर्नल गोपाल कौशिक ने परीक्षण की तैयारी की देखरेख की और अपने स्टाफ अधिकारियों को गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए सभी उपाय करने का आदेश दिया।
व्यापक योजना को वैज्ञानिकों, वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं के एक बहुत छोटे समूह के द्वारा तैयार किया गया। जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि परीक्षण की तैयारी रहस्य बनी रहे और यहाँ तक की भारत सरकार के वरिष्ठ सदस्यों को भी पता नहीं था कि क्या हो रहा था। मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ के निदेशक, डॉ अब्दुल कलाम और परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक, डॉ आर चिदंबरम, इस परीक्षण की योजना के मुख्य समन्वयक (कोओरडीनेटर) थे।
मुख्य तकनीकी आपरेशन में शामिल कर्मी थे:[1]
पांच परमाणु उपकरणों को ऑपरेशन शक्ति के दौरान विस्फोट किया गया। सभी उपकरणों हथियार ग्रेड प्लूटोनियम थे और वे थे:
इस परीक्षण की सफलता पर भारतीय जनता ने भरपूर प्रसन्नता जताई लेकिन दुनिया के दूसरे मुल्कों में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। एकमात्र इजरायल ही ऐसा देश था, जिसने भारत के इस परीक्षण का समर्थन किया।[8]
संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक सख्त बयान जारी कर भारत की निंदा और वादा किया था कि प्रतिबंधों को भी लगाया जायेगा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी समुदाय शर्मिंदा था क्योंकि वह परीक्षण के लिए तैयारी का पता लगाने में असफल हुआ जो "दशक की एक गंभीर खुफिया विफलता" थी।[9]
कनाडा ने भारत के कार्य पर सख्त आलोचना की।[10] भारत पर जापान द्वारा भी प्रतिबन्ध लगाए गए और जापान ने भारत पर मानवीय सहायता के लिए छोड़कर सभी नए ऋण और अनुदानों को रोक दिया।[11] कुछ अन्य देशों ने भी भारत पर प्रतिबंध लगा दिए, मुख्य रूप से गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट क्रेडिट लाइनों और विदेशी सहायता के निलंबन के रूप में। हालांकि, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस ने भारत की निंदा से परहेज किया।
12 मई को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा: "चीनी सरकार गंभीरता से भारत द्वारा किए गए परमाणु परीक्षण के बारे में चिंतित है," और कहा कि परीक्षण "वर्तमान अंतरराष्ट्रीय प्रवृत्ति के लिए और दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल नहीं हैं।"। अगले दिन चीन के विदेश मंत्रालय के एक बयान ने स्पष्ट रूप से बताते हुए कहा कि "यह हैरानी की बात है और हम इसकी निंदा करेंगे।" और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से एकीकृत स्टैंड अपनाने और भारत के परमाणु हथियारों के विकास पर रोक की मांग की। चीन ने, चीनी खतरे का मुकाबला करने के लिए भारत के कहे तर्क को "पूरी तरह से अनुचित" कहकर खारिज कर दिया।
इस परीक्षण पर सबसे प्रबल और कड़ी प्रतिक्रिया भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान ने की थी। पाकिस्तान में परीक्षण के खिलाफ बहुत गुस्सा था। पाकिस्तान ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में परमाणु हथियारों की होड़ को भड़काने के लिए भारत को दोष दिया।[12] पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कसम खाई कि उनका देश भारत को इसका उपयुक्त जबाब देगा।[12] भारत के पहले दिन के परीक्षण के बाद, विदेश मंत्री गौहर अयूब खान ने संकेत दिया कि पाकिस्तान परमाणु परीक्षण करने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा, "पाकिस्तान भारत की बराबरी के लिए तैयार है। हम में यह क्षमता है.....हम सभी क्षेत्रों में भारत के साथ संतुलन बनाए रखेंगे।" उन्होंने साक्षात्कार में कहा,"हम उपमहाद्वीप मे जारी अनियंत्रित हथियारों की दौड़ में कभी पीछे नहीं रहेंगे।[12]
13 मई 1998 को, पाकिस्तान ने फूट-फूट कर परीक्षण की निंदा की और विदेश मंत्री गौहर अयूब द्वारा कहा गया कि भारतीय नेतृत्व अनियंत्रित रास्ते पर चल रही है।[13] पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा कि "हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं और हम अपनी सुरक्षा के संबंध में उचित कार्रवाई करेंगे।[12]" शरीफ ने परमाणु प्रसार के लिए भारत की आलोचना और पाकिस्तान को समर्थन के लिए पूरे इस्लामी देशों को जुटाने का प्रयास किया।[12]
प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और विपक्ष के नेता बेनजीर भुट्टो द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तीव्र दबाव का सामना करना पड़ा था।[14] प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने परमाणु परीक्षण कार्यक्रम को अधिकृत किया और पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग (PAEC) ने कोडनेम 'चगाई' के तहत 28 मई 1998 को 'चगाई-1' तथा 30 मई 1998 को 'चगाई-2' परमाणु परीक्षण किए। चगाई और खरं परीक्षण स्थल पर भारत के अंतिम परीक्षण के पंद्रह दिनों बाद छह भूमिगत परमाणु परीक्षण आयोजित किए। परीक्षण का कुल प्रतिफल 40 कि. टन होने की सूचना दी गई थी। (कोडनेम देखें: चगाई-1)[15]
पाकिस्तान के परीक्षण के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने समान प्रकार की निंदा की।[16] अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत के पोखरण-2 परीक्षण की प्रतिक्रिया के रूप में पाकिस्तान के परीक्षण की आलोचना में कहा कि "दो गलत कभी सही नहीं बना सकते हैं।[14]" संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान ने अपनी प्रतिक्रिया पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर व्यक्त की। पाकिस्तान के विज्ञान समुदाय के अनुसार, भारतीय परमाणु परीक्षणों ने ही कोल्ड परीक्षणों के संचालन के 14 साल के बाद पाकिस्तान को परमाणु परीक्षण करने के लिए एक अवसर दिया। (देखे: किराना-१).[17]
पाकिस्तान के प्रमुख परमाणु भौतिक विज्ञानी और शीर्ष वैज्ञानिकों में से एक डॉ परवेज ने भारत को पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण चगाई के प्रयोगों के लिए जिम्मेदार ठहराया।[18]
परीक्षण के तुरंत बाद ही विदेशो से प्रतिक्रियाए शुरु हो गयी। 6 जून को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1172 द्वारा भारत के परमाणु परीक्षण की निंदा की गयी। चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत पर परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर और परमाणु शस्त्रागार को समाप्त करने के लिए दबाव डाला। भारत परमाणु हथियार रखने वाले देशों के समूह में शामिल होने के साथ एक नए एशियाई सामरिक ताकत विशेष रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्र में उभरा।
कुल मिलाकर, भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का असर न्यूनतम रहा था। तकनीकी प्रगति सीमांत रही। अधिकांश राष्ट्रों ने भारत के खिलाफ निर्यात और आयात के सकल घरेलू उत्पाद पर प्रतिबंध नहीं लगाया। संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए महत्वपूर्ण प्रतिबंध को भी कुछ समय बाद हटा लिया गया था। अधिकांश प्रतिबंधों पांच साल के भीतर हटा लिए गये थे।
भारत सरकार ने पांच परमाणु परीक्षण जो 11 मई 1998 को किये गए थे के उपलक्ष्य में आधिकारिक तौर पर भारत में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में 11 मई को घोषित किया है। इसे आधिकारिक तौर पर 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा हस्ताक्षरित किया गया और दिन को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विभिन्न व्यक्तियों और उद्योगों को पुरस्कार देकर मनाया जाता है।[19]
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में बाहरी कड़ी (मदद)
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में बाहरी कड़ी (मदद)
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(मदद)
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(मदद)