बन्द दरवाजा | |
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चित्र:Bandh Darwaza FilmPoster.jpeg Theatrical release poster | |
निर्देशक | श्याम रामसे एवं तुलसी रामसे |
लेखक | देव किशन एवं श्याम रामसे |
निर्माता | श्याम रामसे |
अभिनेता |
मनजीत कुमार कुनिका अरुणा ईरानी हशमत ख़ान चेतना दास |
छायाकार | गंगु रामसे |
संपादक | केशव हिरानी |
संगीतकार | आनंद-मिलिंद |
प्रदर्शन तिथि |
7 मई 1990 |
लम्बाई |
१४५ मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
बंद दरवाज़ा (अंग्रेजी उच्चारण; Bandh Darwaza) वर्ष १९९० की भारतीय हाॅर्रर फ़िल्म है[1], जिसका निर्देशन एवं निर्माण रामसे बंधुओं ने किया है जो ८० के दशक के हाॅर्रर फ़िल्मों के प्रख्यात निर्देशक-निर्माता थे। इस फ़िल्म में कुनिका, मनजीत कुल्लर, अरुणा ईरानी, अनिरुद्ध अग्रवाल तथा अफग़ानी अदाकर हशमत ख़ान ने अभिनय किया था। फ़िल्म का संगीत निर्देशन आनंद-मिलिंद बंधुओं ने संजोया था।
फ़िल्म की शुरुआत काली पहाड़ी में स्थित प्राचीन खंडहरों (जहाँ खंदकों और गुफाओं की कई भूलभूलैया है), और पिशाच मानव नेवला[2] से होती है। नेवला, कुख्यात ड्रैकुला -की तरह ही पिशाच है, जो दिन में अपनी नींद बंद ताबुत में पूरा करता है, और रात में खूनी चमगादड़ में बदल पड़ोस गाँव में इंसानों का आखेट करता। वह अपनी रोजाना की प्यास इंसानी लहु से पूरी करता, और उसे हमेशा जवान औरतों के गोश्त की तलब रहती (जिन्हें वह अपने मोहपाश में बांधता और अपनी शैतानी हवस को अंजाम देता)। नेवला के पास कई शैतानी सेवकों की एक मंडली है जो उसके लिए मासूम लोगों (अधिकतर महिलाएँ) का बंदोबस्त कर काली पहाड़ी ले चलता जहाँ पिशाच नेवला आसानी से उनका शिकार करता। उसके सेवक मंडली में महुआ (एक डायन), महागुरु (एक शैतान पुजारी), एक तांत्रिक (शैतान वज़ीर) और ऐसे ही कई मुसटंडे किस्म के गुर्गों की खेप मौजूद है।
महुआ नौकरानी के रूप में बड़े ही न्याय परायण समझे जानेवाले ठाकुर प्रताप के यहां घर पर काम करती। एक शाम ठाकुर उसे बाकु के साथ बातें करते देख लेता है। ये जानते हुए कि बाकु उसी काली पहाड़ी के शैतानों का बाशिंदा है, ठाकुर फौरन महुआ को धमकी देता है कि यदि वह दुबारा उस गिरोह से मिली तो उसे बर्खास्त कर देगा। बावजूद, महुआ, पहले की भांति ही नेवला के खुफिया आदेशों का पालन करती है। वहीं ठाकुर प्रताप बेहद धन-संपदा और सुखमय जीवन के बावजूद, अपनी पत्नी लाजो की कोई संतान नहीं होने पर उदास रहते। स्थानीय मंदिर के पुजारी उसे आश्वस्त तो करते, मगर वह भीतरी तौर बहुत क्षुब्ध महसूस करती जब ठाकुर की मौसी उनके घर आती और हिदायत देती, तथा वंश की जरूरत का हवाला देकर, दुबारा ब्याह रचाने को कहती।वहीं महुआ वचन दिलाती है कि लाजो को संतान प्राप्ति होगी यदि वह उसके संग काली पहाड़ी चले तो, जहाँ नेवला उसकी मुराद पूरी कर सकता है, पर कभी ऐसी परिस्थिति बनी कि यदि उसे बेटा हुआ तो वह उसे ले जा सकती है और अगर उसने बेटी को जन्मा तो वह नेवला की अमानत होगी और उसे वह सौंपना ही पड़ेगा। लाजो पहले दफे में इंकार करती है, लेकिन महुआ के पुरजोर बहकावे में आकर लाजो यह सौदा स्वीकार कर लेती है। परिणामस्वरूप, लाजो काली पहाड़ी को रवाना होती है, जहाँ उसे दुध से नहलाया जाता है और नेवला प्रकट होकर उसे सम्मोहित करता है। आधी रात को ही नेवला, लाजो से शारीरिक संबंध बनाता है। लाजो पूरी तरह नेवला के वशीकरण में फँसकर उससे संभोग करने को सहयोग देती है। सवेरे लाजो की नींद खुलने पर खुद को नेवला साथ निर्वस्त्र पाती है। लाजो हवेली लौटती है इस बात से अनभिज्ञ कि नेवला उसकी गर्भवती कर चुका है और समय गुजरते साथ लाजो एक बच्ची को जन्म देती है, काम्या। मगर महुआ जब उसे बच्ची की बात याद दिलाती है, लाजो लगभग शून्य की स्थिति में पड़ जाती है और तब उसके बच्ची लेकर चल निकलती है। महुआ अपने मालिक नेवला के निर्देश पर वह विष लाजो को देती है। लाजो तब ठाकुर से मिलती है तथा सारी सच्चाई बयान करती है और बताती है कि वह काम्या को बचा ले जिसे महुआ अगुवा कर काली पहाड़ी ले गई है। वहीं लाजो लोक-लाज के भय से विष खाकर मर जाती है। गुस्से से बिफरा हुआ, ठाकुर काली पहाड़ी में प्रवेश करता है और, एक लंबा द्वंद चलता है, जिसमें वह नेवला की जादुई शक्तियों के आगे निरस्त होता है। बुरी तरह जख्मी, नेवला लड़खड़ाता हुआ अपने ताबुत लौटता है और गुफा का दरवाज़ा बंद करता है और दुबारा ठीक होने तक चिरनिद्रा में चला जाता है।
कुछ बीस सालों बाद, काम्या एक खूबसूरत युवती के रूप में बड़ी होती है। वह कुमार को दिल दे बैठती है, जो उसका बचपन का प्यार है मगर बचपन की दिल्लगी के बावजूद वह उसकी ज्यादा परवाह नहीं करती। कुमार सिर्फ सपना को चाहता था (उसके दोस्त आनंद की बहन)। सपना मुंबई स्थित होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी और ऐसे ही रोज उसकी एक औरत से भेंट होती है जो ऊस मुर्दानी रात को काली पहाड़ी के लिए लिफ्ट माँगती है। सपना उसे काली पहाड़ी तक छोड़ आती है मगर इससे अंजान कि उससे एक किताब कार में छुट गई थी। वह एक काले जादू-टोने की किताब रहती है। सपना वह किताब उस औरत को लौटाने पीछे पड़ती ही है पर उसे वहां एक वेदी पर वह औरत दिखाई पड़ती है जो खुद दूसरे पुजारी किस्म के लोग बलि चढ़ाने की तैयारी कर रहे होते हैं। यह दृश्य देख सपना चीख पड़ती है। बलि में व्यवधान होते देख पुजारी अपने आदमियों से उसे पकड़ लाने को कहते है लेकिन वह भाग खड़ी हचती है और वह किताब भी काली पहाड़ी में छूट जाती है। इस वाकिये से घबराई सपना फौरन कुमार के घर रूख्सत होती है और आनंद व उसे सबकुछ बता डालती है। अगले दिन यह तीनों काली पहाड़ी को रवाना होते है, मगर उनको वैसा कुछ हासिल नहीं होता जैसा सपना ने कहा था। सपना कहती है कि वह नींद में नहीं थी और फिर वह किताब भी मिल जाती है जो पिछली रात उससे छुट गई थी। फिर वह लोग काम्या से मिलने चल पड़ते हैं जिन्होंने इन तीनों को अपने जन्मदिन पर आने का न्यौता दिया था। मामला तब दिलचस्प मोड़ लेता है जब कुमार अपने प्रेम की तस्वीर सपना के सामने ही काम्या के जन्मदिन पर उसे उपहार देता है। इस बात से हैरान, काम्या सपना का मजाक बना देती है जिससे सपना वह जगह छोड़ देती है। इस बीच काम्या सीधे अपने मुद्दे पर आती है, लेकिन कुमार उसे दो टूक सुनाकर चला जाताहै। वहीं घर लौट रही सपना को वही औरत मिलती है जिसकी पिछली रात बलि चढ़ाई जा रही थी। वह उससे वही किताब माँगती है और सपना की कार में बैठ जाती है। सपना घर पहुँचती है और किताब ढुंढ़ निकालती है। इसी मध्याह्न, आनंद बीच में ही पार्टी को छोड़कर गई सपना को खोजते हुए उसके घर पहुँचता है। सपना उस अंजान औरत के बारे में बताती है। आनंद वह किताब घर से बाहर फेंक देता है और यह सब सोच को बंद करने कहता है। काम्या फिर उस किताब को लेने निकलती है जहाँ कुमार पीछे चला आता है। घर पहुँच कर वह किताब पढ़ना शुरू करती है जिसमें बताया जाता है कि जादू-टोने से कैसे कुमार को हासिल किया गया। जब काम्या उस अंजान औरत (काली पहाड़ी के गिरोह से) को लिफ्ट दे रही थी, उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त होती है, जहाँ नेवला के गिरोह के लोग उसे उठा लाते है। काम्या को उसके जख्मों का ईलाज उस पुजारी के काले जादू द्वारा ठीक होता है और बताता है कि वह सबकुछ पा सकती है यदि वह उनके गिरोह में शामिल हो जाए तो, वह मान जाती है।
काम्या कब्रिस्तान में कुमार पर जादू-टोने का अभ्यास करती है। वह वहां पहुँचता है और उससे प्रणय संबंध बनाता है। आनंद व सपना वहां पहुँचते है और कुमार को बचा लेते हैं। आनंद को उस कब्रिस्तान में कुमार की तस्वीरें मिलती है और उसे यकीन पड़ जाता है यह सारी कार-गुजारी काम्या की है जब उसने काम्या को पहले भी काली पहाड़ी के अंजान बाशिंदों से मिलते देखा था। एक रोज काम्या को काली पहाड़ी पर रात में होनेवाले अनुष्ठान पर बुलाया जाता है।पर दरअसल यह काम्या को फाँसकर नेवला तक ले जाने का जाल था जो बरसों की नींद से जागा था। वह काम्या को अधीन करने के लिए अपने दंश गड़ाता है और उसके साथ हमबिस्तरी करता है। अब वह इस बंद दरवाज़े के पीछे हमेशा के लिए कैद होती है और नेवला की गुलाम बनती है। कुमार, आनंद और सपना सभी लोग काम्या को बचाने काली पहाड़ी की ओर कूच करते है। आखिरकार वे उसे खोज लेते हैं, वह बमुश्किल से होश में रहती है, वह कब्रों के तहखाने में रखे शीशे के ताबुत में रहती है। वो उसे बचाने की कोशिश ही करते कि वह जगह धुएँ से भर जाती है और नेवला उसे अपहृत कर लेता है।
काम्या को वह तांत्रिक अपने मालिक नेवला के लिए वशीभूत करता है। अब काम्या को अपने मालिक नेवला के लिए और लड़कियों का इंतजाम करना होता है। वह भानु (आनंद की पत्नी) को अपने झांसे में फाँसकर काली पहाड़ी ले चलती है, लेकिन कुमार, आनंद और उसके साथी तब तक भानु को नेवला के हवस का शिकार बनने से रोक लेते हैं। काम्या का अगला निशाना सपना बनती है। सपना, भी अंततः, ऐन वक्त पर बच जाती है, लेकिन कुमार और आनंद को पता चलता है कि काम्या किसी अन्य के वश में आकर ऐसा कर रही है। वे यह सारी खबर ठाकुर को बताते हैं, और तय करते हैं कि वे एक साथ मिलकर शैतान नेवला का खात्मा करेंगे। वहीं काली पहाड़ी मपर कदम रखते ही, ठाकुर को महुआ से मिलता है, जो उन्हें सूचित करती है कि शैतानों ने काम्या के जन्म पर जैसे जश्न मनाया था, और वही काम्या अब पूरी तरह नेवला की शक्तियों के आगे नतमस्तक है। क्रोध में आकर, ठाकुर उस महुआ का सिर कलम करता है। मगर नेवला अब अजेय हो चुका है। वह भानु को फिर से बुलाता है, और इस बार, वह दंश गड़ाने में सफल होता है।नेवला दुबारा सपना पर हमला करने के लिए, ठाकुर के घर आ धमकता है। एक लंबी भाग-दौड़ में, नेवला अब भानु और आनंद को मारने बाद सपना के सामने खड़ा होता है, मगर ऐन वक्त पर ठाकुर यह सब नाकाम कराता है। और तब ठाकुर, काम्या के जन्म रहस्य के बारे में कुमार और सपना को बताता है।
फिर यह तीनों काम्या को ढूँढने काली पहाड़ी में प्रवेश करते हैं। आखिरकार वे उसे खोज लेते हैं, वह बमुश्किल से होश में आती है, वह कब्रों के तहखाने में रखे शीशे के ताबुत में रहती है। पर जल्द ही उनको रोकने वहां तैनात गिरोह के बाशिंदों व दूसरे गुर्गों के साथ खुद नेवला भी कूद पड़ता है। इन सबकी आपस में लड़ाई छिड़ जाती है और नेवला एक बार फिर घायल होता है, मगर उसे किसी भी तरह मारना संभव नहीं होता। तभी उसकी दुष्ट सेविका और तांत्रिक तांगे पर नेवला को लादकर फरार होते है। कुमार उनका पीछा करता है, और तांत्रिक को दबोच लेता है, तथा उसे नेवला की कमजोरी उगलवाने के लिए जान लेने की चेतावनी देता है। तांत्रिक तब बताता है कि नेवला की आत्मा काली पहाड़ी के मूर्ति में बंद है और सूरज की धूप उसकी कमजोरी है। कुमार और ठाकुर अब दोनों रास्तों से नेवला को खत्म करने की चाल चलते है। कुमार और सपना तांगे को काली पहाड़ी की ओर ले चलते है, और बस्ती वालों की मदद से नेवला के बीच अवरोध डालते हैं। नेवला गुस्से से पगलाया हुआ उन सबपर हमला करता है। अभी वह सपना तक पहुँच पाता, अनायास ही वह पीड़ा से जकड़ जाता है और शोलों में धधक उठता है (जहाँ पर ठाकुर उस शैतान की मूर्त को आग के हवाले करता है)।
इस तरह कुमार, सपना और ठाकुर द्वारा नेवले का हमेशा के लिए नष्ट होते देखने बाद फ़िल्म समाप्त होती है।
# | शीर्षक | गायक/गायिका |
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1 | "भीगा भीगा मौसम तड़पाए" | सुरेश वाडकर, साधना सरगम |
2 | "जलता है क्यूँ तु" | अलिशा चिनाॅय |
3 | "मैं एक चिंगारी हूँ" | अनुराधा पौडवाल |
4 | "तु एक चिंगारी है" | सुरेश वाडकर |
जाने-माने हाॅर्रर तथा विज्ञान फंतासी फ़िल्म की चौथी किस्त के लेखक, डॉनल्ड सी विलिस अपनी टिप्पणी में यह कहते हैं "फ़िल्म में मौजूद उत्साह, लाईटिंग इफैक्टस और जेम्स बेर्नार्ड - की तरह रचा गया संगीत स्कोर पटकथा को दुहराव की स्थिति में लाता है।" "[3]