बनारसीदास (जन्म - जौनपुर 1586 - 1643) कवि थे। वे मूलत: एक श्रीमाल जैन व्यापारी थे। वे अपनी काव्यात्मक आत्मकथा अर्धकथानक के लिये जाने जाते हैं। यह आत्मकथा ब्रजभाषा में है। यह किसी भारतीय भाषा में लिखी हुई प्रथम आत्मकथा है। जिस समय उन्होंने यह रचना की, उनकी आयु ५५ वर्ष थी। (जैन परम्परा में जीवन ११० वर्ष का माना जाता है, इसलिए आत्मकथा को अर्धकथानक कहा गया।)
अकबर की मृत्यु का उल्लेख इसमें इस प्रकार आया है --
ये आगरे में व्यवसायार्थ रहे थे। वहाँ की अपनी दिनचर्या भी दी है तथा आगरे में जिनके साथ मिलते और धर्मचर्चा करते थे, उनका भी नाम दिया है।[1]