बन्दा सिंह बहादुर

लक्ष्मण देव
जन्म 27 अक्टूबर 1670
राजौरी, जम्मू
मौत जून 9, 1716(1716-06-09) (उम्र 45 वर्ष)
दिल्ली, मुग़ल साम्राज्य
समाधि लाल किला, दिल्ली
राष्ट्रीयता खालसा राज
उपनाम महंत माधोदास बैरागी (पूर्व नाम)
कार्यकाल 1708 -1716
प्रसिद्धि का कारण मुग़लों से युद्ध
ज़मींदारी प्रथा समाप्त करने
सरहिन्द के नवाब वज़ीर ख़ान को मारा
पंजाब और भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य इलाक़ों में खालसा राज की स्थापना की।[1]
पूर्वाधिकारी गुरू गोबिन्द सिंह
धर्म सिख धर्म
जीवनसाथी सुशील कौर
बच्चे अजय छिब्बर
संबंधी महंत रूप दास बैरागी (शिष्य)
लाल किला, दिल्ली

बंदा सिंह बहादुर का पुराना नाम माधव दास बैरागी था ।[2] उन्होंने 15 साल की उम्र में तपस्वी बनने के लिए घर छोड़ दिया, और उन्हें माधो दास बैरागी नाम दिया गया। उन्होंने गोदावरी नदी के तट पर नांदेड़ में एक मठ की स्थापना की। 1707 में, गुरु गोबिंद सिंह ने दक्षिणी भारत में बहादुर शाह प्रथम बार मिलने का निमंत्रण स्वीकार किया। उन्होंने 1708 में बंदा सिंह बहादुर से मुलाकात की।[3][4][5] भी कहते हैं। उनका मूल नाम लक्ष्मण देव मन्हास था। बाद में इसका नाम माधवदास हुआ । बैराग धारण करने के कारण माधवदास बैरागी भी कहा गया । उनकी मुलाकात गुरु गोविंद सिंह से आंध्र प्रदेश में नांदेड़ नामक स्थान पर हुई । गुरु से प्रभावित होकर इन्होंने स्वयं को गुरु का बंदा कहा, तभी गुरू गोबिंद सिंह से इनको बंदा बहादुर का नाम मिला । इनका नाम अम्रित छकने के बाद सरदार गुरबक्श सिंह रखा गया। इन्होने गुरु गोबिंद सिंह के प्रभाव में मुगलों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा और साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया। उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्ता 'खालसा राज' की राजधानी लोहगढ़ में सिख राज्य की नींव रखी। यही नहीं, उन्होंने गुरु नानक देव और गुरु गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरें जारी की, निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और जाटों को ज़मीन का मालिक बनाया। उनका जन्म कार्तिक महीने में हुआ था और इसी महीने में गुरु नानक देव जी और गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ था

आरम्भिक जीवन

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मोहाली में बैरागी का स्मारक

बाबा बन्दा सिंह बैरागी का जन्म कश्मीर स्थित पुंछ जिले के तहसील राजौरी क्षेत्र में विक्रम संवत् 1727, कार्तिक शुक्ल 13 (1670 ई.) को क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव मिन्हास था[6] वह 15 वर्ष की उम्र के थे तब उनके हाथों से एक गर्भवती हिरणी के शिकार ने उने अत्यंत शोक में डाल दिया। इस घटना का उनके मन में गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपना घर का त्याग कर दिया| वह जानकी दास नाम के एक साधु के शिष्य हो गए तदन्तर उन्होंने एक अन्य बाबा रामदास का शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहे। वहाँ एक औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर वह पूर्व की ओर दक्षिण के नान्देड क्षेत्र को चले गए जहाँ गोदावरी के तट पर उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की।

गुरु गोबिन्द सिंह से प्रेरणा

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3 सितम्बर 1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम में पहुंचकर माधोदास को उपदेश दिया और तभी से इनका नाम माधोदास से बंदा सिंह हो गया। पंजाब और शेष अन्य राज्यों के वासियों के प्रति दारुण यातना झेल रहे तथा गुरु गोबिन्द सिंह के पांच और नौ वर्ष के उन महान बच्चों की सरहिंद के नवाब वज़ीर ख़ान के द्ववारा निर्मम हत्या करवा दी थी। गुरु गोबिन्द सिंह जी के बताए उपदेश और मुगलों द्वारा यातना झेल रहे लोगों को अन्याय से छुटकारा दिलाने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश से ही वे पंजाब आये और सिक्खों के सहयोग से मुग़ल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुए। मई, 1710 में उन्होंने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उन्होंने ख़ालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये।

राज्य-स्थापना हेतु आत्मबलिदान

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शौर्य का परिचय देते हुए बन्दा बहादुर ने अपने राज्य के एक बड़े भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। 1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फ़र्रुख़सियर की शाही फ़ौज ने अब्दुल समद ख़ाँ के नेतृत्व में उन्हें गुरुदासपुर ज़िले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई माह तक घेरे रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन्होंने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फ़रवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ वह दिल्ली लाये गए जहाँ 5 मार्च से 12 मार्च तक सात दिनों में 100 की संख्या में सिक्खों की बलि दी जाती रही । 16 जून को बादशाह फ़ार्रुख़शियार के आदेश से बन्दा सिंह तथा उनके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये।

अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य -
  • ये सिक्खों के प्रथम राजनितिक नेता थे।
  • प्रथम सिक्ख राज्य की स्थापना इन्हों ने की।
  • इन्हों ने सिक्ख राज्य का मुहर बनवाया और गुरु नानक देव तथा गुरु गोविंद सिंह के नाम के सिक्के चलवाए।
  • इनकी मृत्यु के बाद सिक्ख राज्य 12 अलग अलग समूह में बंट गया, जिसे "मिसल" कहा जाता था।
  • इनमे सबसे मजबूत मिसल भंगी मिसल था।
  • 1748 ईस्वी मे कपूर सिंह के नेतृत्व में सारे मिसल एक हो गए। जिन्हें दल खालसा कहा गया।
मेहदियाना साहिब में मुगलों द्वारा बन्दा सिंह बैरागी की क्रूरतापूर्वक हत्या की मूर्ति

युद्ध स्मारक

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बाबा बन्दा बहादुर के 300वें शहीदी दिवस के अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल

सिख सैनिकों की वीरता और नायकत्व को याद रखने के उद्देश्य से एक युद्ध स्मारक बनाया गया है। यह उसी स्थान पर बना है जहाँ छप्पर चीरी का युद्ध हुआ था। इस परियोजना का आरम्भ 30 नवम्बर 2011 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने किया था।

सन्दर्भ

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  1. Sagoo, Harbans (2001). Banda Singh Bahadur and Sikh Sovereignty. Deep & Deep Publications. Archived from the original on 4 अप्रैल 2016. Retrieved 24 अप्रैल 2016.
  2. हरबंस कौर सागू (2001). बंदा सिंह बहादुर और सिख राज्य. दीप और दीप. p. 112. ISBN 9788176293006.
  3. Rajmohan Gandhi, Revenge and Reconciliation, pp. 117–118, archived from the original on 4 मार्च 2016, retrieved 24 अप्रैल 2016
  4. Ganda Singh. "Banda Singh Bahadur". Encyclopaedia of Sikhism. Punjabi University Patiala. Archived from the original on 17 फ़रवरी 2015. Retrieved 27 January 2014.
  5. "Banda Singh Bahadur". Encyclopedia Britannica. Archived from the original on 14 जून 2013. Retrieved 15 May 2013.
  6. Kartar Singh Duggal (2001). Maharaja Ranjit Singh, the Last to Lay Arms. Abhinav Publications. p. 40. ISBN 8170174104.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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