अस्पतालों, बैंकों, किराने की दुकानों और अन्य आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर सभी गैर-आवश्यक सेवाएं और दुकानें बंद रहेगी
वाणिज्यिक और निजी संस्थानों को बंद करना (केवल घर से कार्य किया जा सकता है)
सभी शैक्षिक, प्रशिक्षण, अनुसंधान संस्थानों का निलंबन
सभी पूजा स्थलों को बंद करना
सभी गैर-जरूरी सार्वजनिक और निजी परिवहन का निलंबन
सभी सामाजिक, राजनीति, खेल, मनोरंजन, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, धार्मिक गतिविधियों पर निषेध
परिणाम
135.2 करोड़ भारतीय जनसंख्या संगरोध में
2020 भारत में कोरोनावायरस महामारी को रोकने के लिए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिनों के लिए पूरे देश को लॉकडाउन रहने का आदेश दिया।[1] इस निर्णय से पहले 22 मार्च को 14 घंटों के जनता कर्फ्यू किया गया था।[2][3]14 अप्रैल सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए लॉकडाउन की अवधि को आगे बढ़ाकर 3 मई करने का फैसला लिया और कहा कि अगले एक हफ्ते नियम और सख्त होंगे।[4] साथ ही मोदी जी ने कहा कि जहां नए मामले सामने नहीं आएंगे वहाँ कुछ छूट दी जाएगी।[5] 17 मई को गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन को 31 मई तक बढ़ाने की घोषणा की।[6] 30 मई को देशभर में लॉकडाउन के पांचवें चरण की घोषणा की गयी। [7]
भारत सरकार ने केरल में 30 जनवरी 2020 को कोरोनावायरस के पहले मामले की पुष्टि की, जब वुहान के एक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा छात्र भारत लौटा था।[8] 22 मार्च तक भारत में कोविड-19 के पॉजिटिव मामलों की संख्या 500 तक थी, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च को सभी नागरिकों को 22 मार्च रविवार को सुबह 7 से 9 बजे तक 'जनता कर्फ्यू' करने को कहा था।[9] प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था: "जनता कर्फ्यू कोविड-19 के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है"। दूसरी बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए, 24 मार्च को, उन्होंने 21 दिनों की अवधि के लिए, उस दिन की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की।[10] उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का एकमात्र समाधान सामाजिक दूरी है।[11] उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन जनता कर्फ्यू की तुलना में सख्त लागू किया जाएगा।[12]
जनता कर्फ्यू 22 मार्च (सुबह 7 बजे से 9 बजे तक) को 14 घंटे का कर्फ्यू था।[13] इस दिन "आवश्यक सेवाओं" से जुड़े लोगों या संस्थाओं जैसे पुलिस, चिकित्सा सेवाएं, मीडिया, होम डिलीवरी पेशेवरों और अग्निशामको को छोड़कर प्रत्येक व्यक्ति को कर्फ्यू का पालन करना आवश्यक था। इसी दिन शाम के 5 बजे सभी नागरिकों को अपने दरवाजे, बालकनियों या खिड़कियों पर खड़े होकर "आवश्यक सेवाओं" से जुड़े पेशेवरों के प्रोत्साहन के लिए ताली या घंटी बजाने को कहा गया था। राष्ट्रीय कैडेट कोर और राष्ट्रीय सेवा योजना से संबंधित लोगों को देश में कर्फ्यू लागू करना था।[14] प्रधानमंत्री ने युवाओं से जनता कर्फ्यू के बारे में 10 अन्य लोगों को सूचित करने और सभी को कर्फ्यू का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया था।[15]
लॉकडाउन के दौरान लोगों को अपने घरों से बाहर निकलना निषेध किया गया है।[12] सभी परिवहन सेवाओं - सड़क, वायु, और रेल को निलंबित किया गया है हालांकि आग, पुलिस, जरूरी सामान और आपातकालीन सेवाओं का उपयोग किया जा सकेगा।[16] शैक्षिक संस्थानों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों और आतिथ्य सेवाओं को भी निलंबित कर दिया गया।[16] खाद्य दुकानें, बैंक और एटीएम, पेट्रोल पंप, अन्य आवश्यक वस्तुएं और उनके विनिर्माण जैसी सेवाओं को छूट दी गई है।[17]गृह मंत्रालय ने कहा कि जो व्यक्ति लॉकडाउन का पालन नहीं करेंगे उन्हें एक साल तक की जेल भी की जा सकती है।[16]
लॉकडाउन के पहले दिन, लगभग सभी सेवाओं और कारखानों को निलंबित कर दिया गया था।[18] काफी जगह लोग आवश्यक सामान स्टॉक करते देखे गए।[19] साथ ही जिन लॉकडाउन के दौरान लोगों को मानदंडों का उल्लंघन करते पाये जाने पर गिरफ्तार किया गया, जैसे कि बिना किसी आपात स्थिति के बाहर निकलने, व्यवसाय खोलने और घरेलू संगरोध का उल्लंघन।[20] सरकार ने ई-कॉमर्स वेबसाइटों और विक्रेताओं के साथ बैठकें की, ताकि लॉकडाउन अवधि के दौरान पूरे देश में आवश्यक सामानों की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।[20] कई राज्यों ने गरीब और प्रभावित लोगों के लिए राहत राशि की घोषणा की[20], जबकि केंद्र सरकार प्रोत्साहन पैकेज को अंतिम रूप दिया।[21]
26 मार्च को, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों की मदद के लिए ₹1,70,000 करोड़ (US$24.82 अरब) प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की।[22] इस पैकेज का उद्देश्य गरीब परिवारों को तीन महीने के लिए सीधे नकद हस्तांतरण, मुफ्त अनाज और रसोई गैस के माध्यम से खाद्य सुरक्षा उपाय प्रदान करना।[23] इसमें चिकित्सा कर्मियों के लिए बीमा कवर भी प्रदान किया।[22]
27 मार्च को, भारतीय रिजर्व बैंक ने लॉकडाउन के आर्थिक प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए कई उपायों की घोषणा की।[24]
जैसे ही लॉकडाउन की घोषणा की गई, देश भर में लोगों में उनकी आवश्यक सामान की पूर्ति के लिए घबराहट देखी गयी।[25][10][26]अमेज़न इंडिया और फ्लिपकार्ट ने लॉकडाउन के बाद अपनी सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।[27] केंद्र सरकार की मंजूरी के बावजूद कई राज्य सरकारों द्वारा खाद्य वितरण सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया।[28] लॉकडाउन के बाद बेरोजगार होने के कारण हजारों लोग प्रमुख भारतीय शहरों से बाहर चले गए।[29] लॉकडाउन के बाद, भारत की बिजली की मांग 28 मार्च को घटकर पांच महीने के निचले स्तर पर आ गई।[30]
लॉकडाउन के दौरान सब्जी मंडियों में लोगों की भीड़ देखी जा रही है और लोग सामाजिक दूरी (social distancing) नहीं रख रहे है।[31][32][33] 29 मार्च को मन की बात रेडियो कार्यक्रम में मोदी ने इसके खिलाफ सलाह दी और घर से बिना वजह बाहर न निकलने को कहा।[34]
भारत के विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिनिधि हेंक बेकेडम ने इसे "समय पर, व्यापक और मजबूत" बताते हुए प्रशंसा की है।[2] डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी निदेशक, माइक रयान ने कहा कि सिर्फ लॉकडाउन कोरोनोवायरस को खत्म नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि भारत को संक्रमण की दूसरी और तीसरी लहर को रोकने के लिए आवश्यक उपाय करने चाहिए।[35]
कोरोना वायरस से सम्पूर्ण विश्व में एक आपातकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है।
जहाँ एक तरफ भारत में लोग बेरोजगारी से जूझ रहे थे, वही दूसरी तरफ कोरोना वायरस ने सबका रोजगार भी छीन लिया।
सबसे अधिक नुकसान तो नुक्कड़ पर चौराहे पर और रोड पर ढेला लगाने वालों को हुआ है।
मजदूर बेरोजगारी से तंग आकर अपना जीवन यापन करने के लिए शहर से गांव पैदल ही लौट आये, क्योकि सारे परिवहन यातयात बन्द कर दिए गए थे।
गरीब परिवार को नाम मात्र का राशन मिला जिससे वह अपने परिवार का सही से भरण पोषण नही कर सका।
कोरोना वायरस गरीबों के लिए एक विपदा बन कर आया, जिसे उन्होंने बड़े मुश्किल से काटा।