मुक्तिना | |
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ग्राम विकास समिति | |
मुक्तिनाथ (बीच में) तथा धौलागिरि (8.167 m) | |
Country | नेपाल |
जिला | मस्तांग जिला |
जनसंख्या (1991) | |
• कुल | 899 |
समय मण्डल | Nepal Time (यूटीसी+5:45) |
मुक्तिनाथ वैष्णव संप्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह तीर्थस्थान शालिग्राम भगवान के लिए प्रसिद्ध है। शालिग्राम दरअसल एक पवित्र पत्थर होता है जिसको हिंदू धर्म में पूजनीय माना जाता है।[1] यह मुख्य रूप से नेपाल की ओर प्रवाहित होने वाली काली गण्डकी नदी में पाया जाता है। जिस क्षेत्र में मुक्तिनाथ स्थित हैं उसको मुक्तिक्षेत्र' के नाम से जाना जाता हैं। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह वह क्षेत्र है, जहां लोगों को मुक्ति या मोक्ष प्राप्त होता है। मुक्तिनाथ की यात्रा काफी मुश्किल है। फिर भी हिंदू धर्मावलंबी बड़ी संख्या में यहां तीर्थाटन के लिए आते हैं। यात्रा के दौरान हिमालय पर्वत के एक बड़े हिस्से को लांघना होता है। यह हिंदू धर्म के दूरस्थ तीर्थस्थानों में से एक है।
मुक्तिनाथ 108 दिव्य देशों में से एक है। यह 'दिव्य देश' वैष्णवों का पवित्र मंदिर होता है। पारंपरिक रूप से विष्णु शालिग्राम शिला या शालिग्राम पत्थर के रूप में पूजे जाते हैं। इस पत्थर का निर्माण प्रागैतिहासिक काल में पाए जाने वाले कीटों के जीवाश्म से हुआ था, जो मुख्यत: टेथिस सागर में पाए जाते थे। जहां अब हिमालय पर्वत है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शालिग्राम शिला में विष्णु का निवास होता है। इस संबंध में अनेक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित हैं। इन्हीं कथाओं में से एक के अनुसार जब भगवान शिव जालंधर नामक असुर से युद्ध नहीं जीत पा रहे थे तो भगवान विष्णु ने उनकी मदद की थी।[2] कथाओं में कहा गया है कि जब तक असुर जालंधर की पत्नी वृंदा अपने सतीत्व को बचाए रखती तब तक जालंधर को कोई पराजीत नहीं कर सकता था। ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण करके वृंदा के सतीत्व को नष्ट करने में सफल हो गए। जब वृंदा को इस बात का अहसास हुआ तबतक काफी देर हो चुकी थी। इससे दुखी वृंदा ने भगवान विष्णु को कीड़े-मकोड़े बनकर जीवन व्यतीत करने का शाप दे डाला। फलस्वरूप कालांतर में शालिग्राम पत्थर का निर्माण हुआ, जो हिंदू धर्म में आराध्य हैं। पुरानी दंतकथाओं के अनुसार मुक्तिक्षेत्र वह स्थान है जहां पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहीं पर भगवान विष्णु शालिग्राम पत्थर में निवास करते हैं। मुक्तिनाथ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसी स्थान से होकर उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र के महान बौद्ध भिक्षु पद्मसंभव बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए तिब्बत गए थे।
मुक्तिनाथ हेलिकॉप्टर के द्वारा पोखरा-मुक्तिनाथ मार्ग या जोमसोम मार्ग से भी एक दिन में जाया जा सकता है। इस मार्ग ने परंपरागत चढ़ाई के रास्ते को कुछ हद तक कम किया है। लेकिन आज भी आम लोग मुक्तिनाथ जाने के लिए चढ़ाई को ही प्राथमिकता देते हैं। चढ़ाई के समय दो अलग-अलग रास्ते मिलते हैं, जो काली गंडक नदी के पास तातोपानी नामक जगह पर जाकर आपस में मिल जाती है। रास्ते में आमतौर पर सभी जगहों पर रुकने के लिए निजी लॉज मिल जाते हैं। ये लॉज सभी तरह की मुलभूत सुविधाएं मुहैया कराते हैं। कई बार तो यात्रियों के लिए काफी बेहतर सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। इन सबके बावजूद तीर्थयात्रियों को अपने साथ स्लिपींग बैग भी जरूर ले जाना चाहिए ताकि किसी भी तरह के अतिरिक्त परेशानियों से बचा जा सके। यात्रा के दौरान मार्ग में पिट्ठू आसानी से उपलब्ध हो जाते हें। इन पिट्ठुओं को यात्रियों के द्वारा ही भोजन दिया जाता है। चूंकि इस मार्ग का उपयोग विदेशियों के द्वारा भी किया जाता है, अत: यहां खाने की अच्छी व्यवस्था होती है। भोजन में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन उपलब्ध रहते हैं। इसके अलावा सीलबंद पानी भी आसानी से मिल जाता है। लेकिन सामान्यत: नेपाली शैली का भोजन दाल-भात आसानी से मिलता है। अगर आप गाइड रखना चाहते हैं तो वह भी मिल सकता है।
मुक्तिनाथ की यात्रा 5-6 दिनों में पूरी होती है।
काठमांडु से 200 कि॰मी॰ पश्चिम में स्थित पोखरा से बस के द्वारा यात्रा प्रारंभ होती है। इस दौरान आप पोखरा शहर को देखने का लुत्फ उठा सकते हैं।
यहां से 20 मिनट की हवाई यात्रा करके जोमसोम जाना होता है। इसके बाद 2 घंटे की चढ़ाई के उपरांत कागबेणी में रात्रि विश्राम कर सकते हैं। मध्यकालीन शैली में बसे छोटे-छोटे तिब्बती गांवों के अलावा वहां के खूबसूरत वातावरण का भी मजा लिया जा सकता है।
मुक्तिनाथ के लिए 6 घंटे लंबी चढ़ाई की शुरूआत होती है। मध्यमार्ग में आप लंच ले सकते हैं। इसके बाद पवित्र स्नान के उपरांत पूजा-अर्चना प्रारंभ हो जाती है।
सुबह के नास्ते के बाद उतरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जोमसोम में पहली रात गुजारना होता है।
अगले सुबह पोखरा के लिए हवाई मार्ग से जाना होता है। इसके बाद काठमांडु के लिए उपलब्ध माध्यमों के द्वारा प्रस्थान किया जाता है।
जोमसोम से मुक्तिनाथ एक दिन की चढ़ाई पर स्थित है। पोखरा काठमांडु से लगभग 200 कि॰मी॰ की दूरी पर है। जोमसोम पोखरा से 48 कि॰मी॰ उत्तर में स्थित है।
काठमांडु से मुक्तिनाथ: मुख्य राजमार्ग पोखरा से बेनीघाट और खैरानी के रास्ते से होकर जाती है। बेनी से होते हुए सुईखेत, नयापुल, कुश्मा और बगलुंग के लिए भी रोड जाती है। चढ़ाई के लिए तुकुचे से होकर तातोपानी, घासा और लारजुंग के रास्ते मार्ग जाती है। जोमसोम से होकर मार्फा और स्यांग के लिए सड़क मार्ग। मुक्तिनाथ से झारकोट के लिए चढ़ाई का रास्ता जाता है।
पहचान पत्र और मुद्रा-: भारतीयों के लिए वीजा की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन वैसे यात्री जो हवाई मार्ग से यात्रा करते हैं, उनके लिए मतदाता पहचानपत्र या पैन कार्ड संबंधी दस्तावेज देना आवश्यक है। भारतीय मुद्रा अबाध रूप से लाया जा सकता है। विनिमय की सुविधा भी उपलब्ध है। लेकिन 100 रू. से ज्यादा का नोट ले जाना प्रतिबंधित है। भारत के 100 रू. के नोट के बदले 160 नेपाली रूपए दिया जाता है।
भारत से मुक्तिनाथ-: राजधानी दिल्ली से काठमांडु के लिए नियमित रूप से फ्लाइटें हैं। इसके अलावा कोलकाता, वाराणसी, बेंगलोर और पटना से भी नियमित फ्लाइटें हैं। दिल्ली और कोलकाता से सड़क मार्ग के द्वारा भी यात्रा किया जा सकता है। इसमें कुल 8-10 घंटे लगते हैं। नेपाल स्थित बीरगंज रक्सौल से काफी नजदीक है। यहां से काठमांडु के लिए हवाई यात्रा का मार्ग मात्र 30 मिनट की है। गोरखपुर से भी काठमांडु जाया जा सकता है।
काठमांडु से मुक्तिनाथ-: पोखरा को मुक्तिनाथ का 'गेटवे' भी कहा जाता है जो केंद्रीय नेपाल में स्थित है। दर्शानार्थियों को यह सलाह दी जाती है कि वे पहले काठमांडु आएं तथा वहां से पोखरा के लिए सड़क या हवाई मार्ग से जा सकते हैं। वहां से पुन: जोमसोम जाना होता है। यहां से मुक्तिनाथ जाने के लिए आप हेलिकॉप्टर या फ्लाइट ले सकते हैं। यात्री बस के माध्यम से भी यात्रा कर सकते हैं। सड़क मार्ग से जाने पर पोखरा पहुंचने के लिए कुल 200 कि॰मी॰ की दूरी तय करनी होती है। पोखरा से मुक्तिनाथ के लिए 8-9 घंटे की चढ़ाई करनी होती है। इसके साथ ही टट्टू से भी जाया जा सकता है।