मुरैना Morena | |
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निर्देशांक: 26°30′N 78°00′E / 26.50°N 78.00°Eनिर्देशांक: 26°30′N 78°00′E / 26.50°N 78.00°E | |
राजवंश | तोमर , कछवाह , गुर्जर प्रतिहार आदि राजपूत वंश एवं सिंधिया मराठा वंश |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | मुरैना ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 2,00,483 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 476001 |
दूरभाष कोड | 07532 |
वाहन पंजीकरण | MP-06 |
वेबसाइट | www |
मुरैना (Morena) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2]
उत्तरी मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना चंबल घाटी का प्रमुख जिला है। 5000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस जिले से चंबल, कुंवारी, आसन और सांक नदियां बहती हैं। पर्यटन के लिए आने वालों के देखने के लिए यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं। इन दर्शनीय स्थलों में सिहोनिया, पहाडगढ़, मीतावली, नूराबाद,टीन का पुरा का राम जानकी मंदिर, सबलगढ़ का किला और राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य प्रमुख हैं। यहां एक पुरातात्विक संग्रहालय और गैलरी भी देखी जा सकती है। यह जिला ग्वालियर नगर से लगभग 46 किलोमीटर की दूरी पर है। मुरैना का प्राचीन नाम मयूरवन है जो की महाभारत काल के समय बहुत प्रसिद्ध था। इसी जिले का एक छोटा सा साॅटा नामक गांव हैं जिसमें जिले के सभी गांवों की अपेक्षाकृत अधिक मोर पाये जाते हैं यह मुरैना नगर से १० किलो मीटर की दूरी पर स्थित है । मुरैना अब विकासशील जिला बन चुका है।इस जिले मे कई धार्मिक स्थान भी हैं जो देखने मे अद्भुत कला के धनी है। इन सब मे प्रसिद्ध हैं- गुर्जर समाज के अराध्य श्री रतनदास जी (पटिया वाले बाबा) का मंदिर,जो करह धाम के नाम से देश में विख्यात है। घिरौना धाम।,गुर्जर प्रतिहार वंशी राजपूत राजाओ द्वारा निर्मित 6वी शताब्दी से लेकर 9वी शताब्दी के मध्य बनाए गए बटेस्वर मन्दिर ठाकुर बाबा मंदिर (अटार घाट, सबलगढ़ ),बाबा देवपुरी का मंदिर,गंगापुर धाम जो जनकपुर मे है। और कई ऐसे मंदिर है जिन्हे देखे बिना मन नहीं भरता। देश के कई राज्यों के लोगों का यहाँ ताँता बँधा रहता है। यहां मध्य प्रदेश की पहली सीमेंट फैक्ट्री बानमोर नामक स्थान पर 1922 में शुरू हुई। पूरे भारत में सरसों एवं तेल का सर्वाधिक उत्पादन मुरैना जिले में ही होता है।
मिरैना कीस स्थति 26°30′N 78°00′E / 26.5°N 78.0°E पर है। यहां की औसत ऊंचाई है 177 मीटर (580 फीट)।
सिहोनिया के ककनमठ मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर है जिसकी नीव कक्षपात राजाओ और गुर्जर प्रतिहार राजाओ द्वारा रखी गई , हर शिवरात्रि को यहां मेले का आयोजन किया जाता हैं, जिसे देखने के लिए लोग उत्तरप्रदेश और राजस्थान आदि राज्यो के लोग एकत्रित होते है। यहां पर जिले का सबसे बड़ा भागवत कथा का आयोजन रामप्रताप सिंह तोमर के द्वारा 2018 में कराया गया जहां एक दिन में 5 लाख लोगों ने भंडारे की व्यवस्था की गई थी क्योंकि इसके आसपास तोमर समाज के लोग ज्यादा संख्या में रहते हैं । भजपुरा गांव के पटेल स्व श्री तामसिंह तोमर जी का निधन 1999 में हुआ था उनके पुत्र हरनाम सिंह, डॉक्टर हीरा सिंह द्वारा सबसे विशाल तेरहवीं भोज कराया गया जिसमे 2लाख 50000 लोगों को भोजन कराया गया।
मुरैना के सबलगढ़ नगर में स्थित यह किला मुरैना से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है। मध्यकाल में बना यह किला एक पहाड़ी के शिखर बना हुआ है मुरैना जिला मुख्यालय से 60 किमी दूर स्थित सबलगढ़ नगर में 18वीं शताब्दी का यह किला एक पहाड़ी के ऊपर बनवाया गया था। किले की नींव सबला गुर्जर ने डाली थी। और फिर उसका निर्माण राजा गोपाल सिंह तोमर ने पूरा कराया था।
सास-बहू अभिलेखों से ज्ञात होता है कि सिहोनिया या सिहुनिया कुशवाहों (कछवाह) राजपूतों की राजधानी थी। इस साम्राज्य की स्थापना 11वीं शताब्दी में 1015 से 1035 के मध्य हुई थी। कछवाह राजपूतो और गुर्जर प्रतिहार राजपूतों ने यहां एक शिव मंदिर बनवाया था, जिसे काकनमठ नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि मंदिर का निर्माण राजा कीर्तिराज ने रानी काकनवटी की इच्छा पूरी करने के लिए करवाया था। खजुराहो मंदिर की शैली में बना यह मंदिर 115 फीट ऊंचा है। सिहोनिया जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां 11वीं शताब्दी के अनेक जैन मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं। इस मंदिरों में शांतिनाथ, कुंथनाथ, अराहनाथ, आदिनाथ, पार्श्वनाथ आदि जैन र्तीथकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
चंबल घाटी का यह सबसे प्राचीन गांव कुंतलपुर के नाम से भी जाना जाता है। यह गांव महाभारत काल के हस्तिनापुर, राजग्रह और चढी के समकक्ष प्राचीन माना जाता है। यहां के दर्शनीय स्थलों में प्राचीन देवी अंबा या हरीसिद्धी देवी मंदिर तथा आसन नदी पर बना चन्द्राकार बांध है। यहां के राजा कोसलभोज थे। कुन्ती इन्ही की पुत्री थी।
नाग काल के बाद इसी क्षेत्र में गुप्त साम्राज्य की स्थापना हुई थी। पदावली के घरोंन गांव के आसपास अनेक मंदिरों, घरों और बस्तियों के अवशेष देखे जा सकते हैं। यहां एक प्राचीन और विशाल विष्णु मंदिर था जिसे बाद में गढ़ी में परिवर्तित कर दिया गया। इस मंदिर का चबूतरा, आंगन और असेम्बली हॉल प्राचीन संस्कृति के प्रतीक हैं। यहां का क्षतिग्रस्त दरवाजा और सिंह की मूर्ति प्राचीन वैभव की याद दिलाती हैं। पदावली से भूतेश्वर के बीच पचास से भी अधिक इमारतें देखी जा सकती हैं।
नरसर के उत्तर में एक चौसठ योगिनी मंदिर है जो 100 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है। इस गोलाकार मंदिरकी शैली में दिल्ली के संसद भवन निर्मित है। इसकी त्रिज्या 170 फीट है। मंदिर में 64 कक्ष और एक विशाल आंगन बना हुआ है। मंदिर के बीचोंबीच भगवान शिव का मंदिर है।इसका निर्माण गुर्जर प्रतिहार राजपूत शासकों ने करवाया था
पहाडगढ़ से 12 मील की दूरी पर 86 गुफाओं की श्रृंखला देखी जा सकती है। इन गुफाओं को भोपाल की भीमबेटका गुफाओं का समकालीन माना जाता है। सभ्यता के प्रारंभ में लोग इन गुफाओं में आश्रय लेते थे। गुफाओं में पुरूष, महिला, चिड़िया, पशु, शिकार और नृत्य से संबंधित अनेक चित्र देखे जा सकते हैं। यह चित्र बताते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में भी मनुष्य की कला चंबल घाटी में जीवंत थी।बारिश के समय पहाड़गढ़ का प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है ।
लिखिछज का अर्थ बॉलकनी के समान आगे मुड़ी हुई पहाड़ी होता है। आसन नदी तट की अनेक गुफाओं के समान लिखिछज यहां आने वाले लोगों के आकर्षण के केन्द्र में रहती है। नीचता, कुंदीघाट, बारादेह, रानीदेह, खजूरा, कीत्या, सिद्धावली और हवा महल भी लिखिछत के निकट लोकप्रिय दर्शनीय स्थल हैं।
8वीं से 12वीं शताब्दी का जालेश्वर आज का नोरार है। यहां अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में 21 मंदिर आज भी देखे जा सकते हैं जो पहाड़ी की तीन दिशाओं में है। प्रतिहार नागर शैली में बना जानकी मंदिर यहां का लोकप्रिय मंदिर है। पहाड़ी पर अनेक दुर्लभ कुंड देखे जा सकते हैं। इन कुंडों को पहाड़ी के पत्थरों को काटकर बनाया गया था। यहां अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां भी देखी जा सकती है।
नूराबाद की स्थापना जहांगीर के काल में हुई थी। सराय चोला के नाम पर बनी फिजी सराय और कुंवारी नदी पर बना पुल औरंगजेब से लेकर सरदार मोतीबाद खान के काल में बना था। किले की तर्ज पर बनी सराय, सांक नदी पर बना मीनरनुमा पुल और गोना बेगम का मकबरा देखने के लिए पर्यटक नियमित रूप से आते रहते हैं।
-राम जानकी मंदिर- लगभग 19 वीं शताब्दी का बना हुआ ये पौराणिक मंदिर बडा ही भब्य और शालीन मंदिर है। ये मंदिर टीन का पुरा गाँव में स्थित है। मुरैना का प्रसिद्ध राम जानकी मन्दिर इसी गाँव मे बना हुआ है । यहाँ और भी अनेक मन्दिर हैं जैसे - हनुमान मन्दिर, शिव -गौरी मन्दिर, राधा -मोहन मन्दिर, शेरावाली माता का मन्दिर आदि। इस मन्दिर मे प्रतिदिन रामायण का पाठ होता है ।
इस अभयारण्य की स्थापना जीव-जंतुओं और वनस्पतियों से संपन्न नदी पारिस्थिती तंत्र को सुरक्षित रखने के लिए की गई थी। मछलियों की विभिन्न प्रजातियों के अलावा डॉल्फिन, मगरमच्छ, घडियाल, कछुआ, ऊदबिलाव जैसी जलीय प्रजातियां यहां देखी जा सकती हैं। देवरी का मगरमच्छ केन्द्र हाल ही में पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। बर्ड वाचर्स के लिए भी यह जगह स्वर्ग से कम नहीं है। नवंबर से मार्च के दौरान हजारों की संख्या में प्रवासी पक्षी देखे जा सकते हैं। नदी में बोटिंग का आनंद भी उठाया जा सकता है।
मुरैना का निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर के महाराजपुर में है, जो मुरैना से करीब 46 किलोमीटर की दूरी पर है। देश में अनेक बड़े शहरों से यहां लिए नियमित फ्लाइटें हैं।
मुरैना दिल्ली-झांसी रेल लाइन पर पड़ता है। मध्य रेल जोन का यह प्रमुख रेलमार्ग है। देश के तमाम बड़े शहरों से यहां रेलगाड़ियां आती हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग 3 मुरैना को मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अनेक शहरों से जोड़ता है। दिल्ली, मथुरा, आगरा, ग्वालियर, झांसी आदि शहरों से यहां के लिए नियमित बसें हैं।
भारत की जनगणना की अनंतिम रिपोर्ट के अनुसार, 2011 में मुरैना की जनसंख्या 200,482 है। 2024 में मुरैना शहर की वर्तमान अनुमानित जनसंख्या 283,000 है |[3]