शिवकर बापूजी तलपदे | |
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शिवकर बापूजी तलपदे | |
जन्म |
1864 मुम्बई |
मौत |
1916 |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | सर जे जे कला विद्यालय, मुम्बई |
शिवकर बापूजी तलपदे (१८६४ - १७ सितम्बर १९१७) एक भारतीय महान विद्वान थे। उन्होंने १८९५ में उन्होने मानवरहित विमान का निर्माण किया था वे मुम्बई के निवासी थे तथा संस्कृत साहित्य एवं चित्रकला के अध्येता थे।
जीवन परिचय
उनका जन्म ई. १८६४ में मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था। [1] ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट, मुंबई’ से अध्ययन समाप्त कर वे वहीं शिक्षक नियुक्त हुये। [2] उनके विद्यार्थी काल में गुरू श्री चिरंजीलाल वर्मा से वेद में वर्णित विद्याओं की जानकारी उन्हें मिली। उन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती कृत ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ एवं ‘ऋग्वेद एवं यजुर्वेद भाष्य’ एवं महर्षि भारद्वाज की 'विमान संहिता' का अध्ययन कर प्राचीन भारतीय विमानविद्या पर कार्य करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने संस्कृत सीखकर वैदिक विमानविद्या पर अनुसंधान आरम्भ किया। [3]
शिवकर ने ई. 1922 में एक प्रयोगशाला स्थापित किया और वेदमन्त्रों के आधार पर आधुनिक काल में पहला वैदिक विमान का मॉडल निर्माण किया। [4] इसका परीक्षण सन् 1895 ई. में मुंबई के चौपाटी समुद्र तट पर किया गया था। ऐसा पढनेको मिलता है। [5] परन्तु उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार विमान उड़ाने के पहला प्रयास सन् १९१५ से सन् १९१७ ई. के मध्य में हुआ था। [6] यह कार्य बेंगलुरु के पंडित सुब्राय
र. १७ सितम्बर १९१७ को उनका स्वर्गवास हुआ एवं ‘मरुत्सखा’ विमान निर्माण का कार्य अधूरा रह गया। [7]मराठी भाषा मे विकिपीडिया मे अलग बात रखी है,वह भी अध्ययन करें।शिवकर बापूजी तलपदे(919-1949) एक शोधकर्ता और संस्कृत ग्रंथों के शौकीन पाठक थे। उन्होंने पहले विमान को उड़ाने का प्रयास किया। विमान का नाम मरुतसखा था।
तलपड़े, जो मुंबई में रहते हैं, को संस्कृत और वेदों के एक विशेषज्ञ पंडित सुबराय शास्त्री का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। एयरोनॉटिक्स ने, विद्वानों द्वारा लिखित, विमान को उड़ान भरने के लिए प्रेरित किया।
इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह थे महादेव गोविंद रानडे और तीसरे सयाजीराव गायकवाड़। केसरी अखबार भी इस बात का उल्लेख करता है।
प्रयोग के बाद, विमान को तलपड़े के घर पर रखा गया था? इसके विपरीत, अमेरिकी सेना ने राइट भाइयों को $ 5 देकर उनके प्रयोग में मदद की।
तालापद के काम के आधार पर, फिल्म प्रसारित की गई। फिल्म में तलपदे के चरित्र को बहुत ही गलत तरीके से दर्शाया गया है। इसपर बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी। शिवकर बापूजी तलपड़े द्वारा लिखित प्राचीन विमानन की पुस्तक भी वर्तमान में दुर्लभ है।
पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे का विवाह श्रीमती लक्ष्मीबाई से हुआ था। उनके दो पुत्र एवं एक पुत्री थे। जेष्ठ पुत्र मोरेश्वर मुंबई पौरपालिका के स्वास्थ विभाग में कार्यरत थे एवं कनिष्ठ पुत्र बैंक ऑफ़ बॉम्बे में लिपिक थे। पुत्री का नाम नवुबाई था। [8] [9]
पण्डित शिवकर बापूजी तलपदे ने निम्न पाँच पुस्तकें लिखी है। [10]
१- वैदिक धर्मस्वरुप(‘ऋग्वेदादिकभाष्यभूमिका’ का मराठी अनुवाद), १९०५
२- राष्ट्रीय उन्नतीचीं तत्वें
३- ब्रह्मचर्य, १९०५
४- राष्ट्रीसूक्त व त्याचा अर्थ
५- वैदिक विवाह व त्याचा उद्देश
६- सत्यार्थप्रकाश पूर्वार्ध, १९०७
७- गृहस्थाश्रम, १९०८
८- योगतत्त्वादर्श
१- संपादक, ‘आर्यधर्म’
२- मंत्री, वेद विद्या प्रचारिणी पाठशाला
३- प्रकाशक, शामराव कृष्णअणि मंडली
४- सदस्य, वेदधर्म प्रचारिणी सभा
५- सदस्य, आर्य समाज, काकड़वाडी,मुंबई
६- कोल्हापूर शंकराचार्य से ‘विद्याप्रकाशप्रदीप’ उपाधि से समान्नित