सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम | |
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द्वारा अधिनियमित | भारतीय संसद |
स्थिति : प्रचलित |
सशस्त्र बल विशिष्ट शक्ति (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 11 सितम्बर 1958 को पारित किया गया था।[1] अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैण्ड के ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सैन्य बलों को प्रारम्भ में इस विधि के अन्तर्गत विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह विधि सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू-कश्मीर में भी लागू किया गया।[2] हालाँकि राज्य के लद्दाख क्षेत्र को इस विधि की सीमा से बाहर रखा गया।भारत सरकार के गृह मन्त्रालय ने 22 अप्रैल 2018 को मेघालय से इस अधिनियम को हटा लिया।
इसकी शुरुआत 1942 के समय हुई थी। भारतीय राष्ट्रीय सेना और जापानी सेना एक साथ मिल्कर पूर्वी बॉर्ड पर हमला करने वाले था। वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो को इन अटैक को रोकना था इसलिये उन्होन एक अध्यादेश पास किया, बल विशेष शक्ति अध्यादेश 1942 ।
1951 में, नागा नेशनल काउंसिल ने 1952 के प्रथम यहानिर्वाचन का बहिष्कार किया था, जो बाद में सरकारी विद्यालयों और अधिकारियों के बहिष्कार तक बढ़ा दिया गया था। इस स्थिति से निपटने के लिये, असम सरकार ने 1953 में नागा हिल्स में असम मेण्टेनेंस ऑफ़ पब्लिक ऑर्डर (ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट) एक्ट लागू किया और विद्रोहियों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई तेज कर दी। जब स्थिति गम्भीर हो गयी, तो असम ने नागा पहाड़ियों में असम राइफ़ल्स को तैनात कर दिया और असम अशान्त क्षेत्र अधिनियम, 1955 को अधिनियमित कर दिया, जिससे क्षेत्र में उग्रवाद का मुकाबला करने के लिये अर्धसैनिक बलों और सशस्त्र राज्य पुलिस को विधिक ढाँचा प्रदान किया गया। किन्तु असम राइफ़ल्स और राज्य सशस्त्र पुलिस नागा विद्रोह को रोक नहीं पाये और विद्रोही नागा राष्ट्रवादी परिषद (एनएनसी) ने 23 मार्च 1956 को एक समानान्तर सरकार " नागालैण्ड की संघीय सरकार " का गठन किया। सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष शक्तियाँ अध्यादेश 1958 को 22 मई 1958 को राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रख्यापित किया गया था। इसे 11 सितमृबर 1958 को सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1958 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1958 ने केवल राज्यों के राज्यपालों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को सम्बन्धित राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश के क्षेत्रों को 'अशान्त' घोषित करने का अधिकार दिया।
इस कानून के अंतर्गत सशस्त्र बलों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने व बल प्रयोग करने आदि में सामान्य प्रक्रिया के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता है[1] तथा नागरिक संस्थाओं के प्रति जवाबदेही भी कम है।
इस कानून का विरोध करने वालों में मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का नाम प्रमुख है। उन्होने इसको हटाने के लिये लगातार १५ वर्षों तक अनशन किया।आजकल इरोम शर्मीला अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती हैं।
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