सावित्री देवी मुखर्जी | |
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चित्र | |
जन्म |
माक्सिमिआनी जुलिया पोर्टास 30 सितम्बर 1905 लियोन, फ़्रांस |
मौत |
22 अक्टूबर 1982 सिबिल हेडिंगम, एसेक्स, इंग्लैंड | (उम्र 77 वर्ष)
मौत की वजह | मायोकार्डियल इन्फ़्रक्शन और कोरोनरी थ्रोम्बोसिस |
शिक्षा की जगह | लियोन विश्वविद्यालय |
पेशा | शिक्षक, लेखक, राजनीतिक कार्यकर्ता |
धर्म | हिंदू धर्म; नाज़ी रहस्यवाद |
जीवनसाथी | असित कृष्ण मुखर्जी |
सावित्री देवी मुखर्जी (30 सितंबर 1905 - 22 अक्टूबर 1982) यूनानी-फ्रांसीसी लेखक मैक्सिमियानी पोर्टास का उपनाम था (मैक्सिमिन पोर्टा भी लिखा गया)[1] वह पशु अधिकारों और नाज़ीवाद की प्रमुख समर्थक थीं। दूसरा विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने अक्ष देशों हेतु ब्रिटिश भारत में मित्र देशों की सेनाओं पर जासूसी करती थीं।[2] उन्होंने पशु अधिकारों के आंदोलनों के बारे में लिखा और 1960 के दशक के दौरान नाज़ी भूमिगत संस्था की एक प्रमुख सदस्य थी[3]
वे हिन्दू धर्म और नाज़ीवाद की बड़ी समर्थक थीं और उन्होंने इन दोनों विचारधाराओं के सम्मिश्रण करने के लिए उनका मानना था कि ऐडॉल्फ़ हिटलर भगवान विष्णु के अवतार थे और ये अवतार यहूदियों के वजह से उतपन्न हुआ कलि युग को समाप्त करने हेतु मनुष्यता के बलिदान थे।[4]
उनका जन्म को 1905, लियोन, फ़्रांस में हुआ था, उनके पिता माक्सिम पोर्टास, फ्रांस के एक इटालवी-यूनानी नागरिक थे और उनकी माता जुलिया पोर्टास, एक अंग्रेज़ औरत थीं।
उन्होंने 1932 में, एक "आर्य" जीवनशैली जीने के लिए, भारत के सफ़र पर निकली।[5] उन्होंने उनकी रचना 'ए वार्निंग टु हिन्दूज़' में भारत में ईसाईयत और इस्लाम के प्रसार के ख़तरों बारे में चेतावनी दी थी और 1930 के दशक के दौरान उन्होंने नाज़ीवाद के प्रोपागांडा बाँटी। उन्होंने सुभाष चंद्र बोस को फ़ाशीवादी जापानी साम्राज्य से संपर्क करने में मदद की थी।[6]
1940 में सावित्री देवी ने बंगाली नाज़ी-समर्थक असित कृष्ण मुखर्जी से शादी की थी।