सुन्दर सिंह भण्डारी (12 अप्रैल 1921 – 22 जून 2005) एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता थे और जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।[1]
सुन्दर सिंह भंडारी का जन्म १२ अप्रैल, १९२१ को उदयपुर (राजस्थान) में प्रसिद्ध चिकित्सक डा. सुजानसिंह के घर में हुआ था। १९३७-३८ में कानपुर में बी.ए. करते समय वे अपने सहपाठी दीनदयाल उपाध्याय के साथ नवाबगंज शाखा पर जाने लगे। भाऊराव देवरस से भी इनकी घनिष्ठता थी। १९३७ में इन्दौर के बालू महाशब्दे उन्हें कानपुर के पास नवाबगंज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में ले गये एवं विचारधारा के प्रति समर्पण के चलते आजीवन विवाह नहीं करने एवं घर छोडने का निर्णय कर संघ के प्रचारक बनें और अपनी अंतिम श्वांस तक वे प्रचारक बने रहे।
१९४० में नागपुर से प्रथम वर्ष का संघ शिक्षा वर्ग करते समय इन्हें डा० हेडगेवार के दर्शन हुए। १९४२ में अपनी शिक्षा समाप्त कर मेवाड़ कोर्ट में वकालात की। इसमें भी जब मन नहीं लगा तो इसे छोड़ कर विद्याभवन में अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया। इसी कारण लोग उन्हें 'मास्टर सा' के नाम से पुकारने लगे। १९४६ में तृतीय वर्ष कर सुन्दरसिंह भंडारी प्रचारक बन गये। सर्वप्रथम इन्हें जोधपुर विभाग का काम दिया गया। १९४८ के प्रतिबंध काल में भूमिगत रहकर इन्होंने जोधपुर व बीकानेर के साथ-साथ शेखावटी क्षेत्र में भूमिगत रह सत्याग्रह का संचालन किया।
१९५१ में डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ’भारतीय जनसंघ‘ की स्थापना कर गुरुजी से कुछ कार्यकर्ताओं की मांग की। उनके आग्रह पर दीनदयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख के साथ भंडारी को भी इसमें भेज दिया गया। १९५१ में संघ द्वारा इन्हें राजनीतिक पार्टी भारतीय जनसंघ की स्थापना के लिये महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। स्थापन से लेकर १९६५ तक वे भारतीय जनसंघ के महामंत्री एवं १९६३ में जनसंघ के अखिल भारतीय मंत्री बनें। दीनदयाल उपाध्याय के निधन के पश्चात ये १९६८ में जनसंघ के अखिल भारतीय संगठन महामंत्री बने।
प्रारम्भ में वे राजस्थान में ही जनसंघ के संगठन मन्त्री रहे। उनके प्रयास से १९५२ के चुनाव में राजस्थान से जनसंघ के आठ विधायक जीते। बहुत शीघ्र ही जनसंघ का काम गांव-गांव में फैल गया। वे अति साहसी एवं स्थिरमति के व्यक्ति थे। कश्मीर सत्याग्रह के दौरान २३ जून, १९५३ को डॅा. मुखर्जी की जेल में ही षड्यन्त्रपूर्वक हत्या कर दी गयी लेकिन भंडारी ने उसी दिन स्वयं को एक सत्याग्रही जत्थे के साथ गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत कर दिया।
१९५४ में जनसंघ के केन्द्रीय मंत्री के नाते उन्होंने राजस्थान, गुजरात, हिमाचल तथा उ.प्र. में सघन कार्य किया। १९६७ में दीनदयाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर वे महामंत्री बनाये गये। १९६८ में दीनदयाल जी की हत्या के बाद उन्हें जनसंघ का राष्ट्रीय संगठन मन्त्री बनाया गया। १९६६ से १९७२ तक वे राजस्थान से एवं १९७६ में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के सदस्य रहें। आपातकाल के दौरान वे १९७६ में मीसा बंदी के रूप में जेल में भी रहे। आपातकाल के विरुद्ध हुए संघर्ष में वे भूमिगत रहकर काम करते रहे पर कुछ समय बाद वे पकड़े गये। जेल में उन्होंने अपनी सादगी और वैचारिक स्पष्टता से विरोधियों का मन भी जीत लिया। जेल से ही वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए।
१९७७ में जनता पार्टी में जनसंघ का विलय हुआ लेकिन यह मित्रता स्थायी नहीं रही। भंडारी को इसका अनुमान था। अतः उन्होंने पहले ही ’युवा मोर्चा‘ तथा ’जनता विद्यार्थी मोर्चा‘ का गठन कर लिया था। १९८० में भारतीय जनता पार्टी का गठन होने पर नये दल का संविधान उन्हीं की देखरेख में बना।
दो बार उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेजा गया। तीसरी बार उन्होंने यह कहकर मनाकर दिया कि अब किसी अन्य कार्यकर्ता को अवसर मिलना चाहिये लेकिन रज्जू भैया एवं शेषाद्रि के आग्रह पर वे उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में जाने को तैयार हुए। केन्द्र में अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी सरकार में वे १९९८ में बिहार और १९९९ में गुजरात के राज्यपाल तथा मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष रहे।
भण्डारी ने आजीवन प्रचारक की मर्यादा को निभाया। वैचारिक संभ्रम की स्थिति में उनका परामर्श सदा काम आता था। वे बहुत कम बोलते थे परन्तु उनकी बात गोली की तरह अचूक होती थी। संघ, जनसंघ और भा.ज.पा. को अपने संगठन कौशल से सींचने वाले सुंदर सिंह भंडारी का ८४ वर्ष की सुदीर्घ आयु में २२ जून, २००५ को प्रातः नींद में हुए तीव्र हृदयाघात से देहान्त हो गया।
पूर्वाधिकारी के जी बालकृष्णन |
गुजरात के राज्यपाल मार्च 1999 – मई 2003 |
उत्तराधिकारी कैलाशपति मिश्र |
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