स्टेम कोशिका उपचार एक प्रकार की हस्तक्षेप इलाज पद्धति है, जिसके तहत चोट अथवा विकार के उपचार हेतु क्षतिग्रस्त ऊतकों में नयी कोशिकायें प्रवेशित की जाती हैं। कई चिकित्सीय शोधकर्ताओं का मानना है कि स्टेम कोशिका द्वारा उपचार में मानव विकारों का कायाकल्प कर पीड़ा हरने की क्षमता है।[उद्धरण चाहिए] स्टेम कोशिकाओं में, स्वंय पुनर्निर्मित होकर अलग-अलग स्तरों में आगामी नस्लों की योग्यताओं में आंशिक बदलाव के साथ निर्माण करने की क्षमता के चलते, ऊतकों को बनाने की महत्वपूर्ण खूबी तथा शरीर के विकार युक्त[1] एवं क्षतिग्रस्त हिस्सों को अस्वीकरण होने के जोखिम एवं दुष्प्रभावों के बगैर बदलने की क्षमता है।
विभिन्न किस्मों की स्टेम कोशिका चिकित्सा पद्धतियाँ मौजूद है, किंतु अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के उल्लेखनीय अपवाद को छोड़ अधिकांश प्रायोगात्मक चरणों में ही हैं और महँगी भी हैं।[उद्धरण चाहिए] चिकित्सीय शोधकर्ताओं को आशा है कि वयस्क और भ्रूण स्टेम कोशिका शीघ्र ही कैंसर, डायबिटीज प्रकार 1, पर्किन्सन रोग, हंटिंग्टन रोग, सेलियाक रोग, हृदय रोग, मांसपेशियों के विकार, स्नायविक विकार और अन्य कई रोगों का उपचार करने में सफल होगी।[2] इसके बावजूद भी, स्टेम कोशिका द्वारा उपचार को चिकित्सा क्षेत्रों में लागू किये जाने से पहले, प्रत्यारोपण प्रक्रिया में स्टेम कोशिकाओं का व्यवहार और साथ ही स्टेम कोशिकाओं के विकारग्रस्त/चोटिल सूक्ष्म परिसर के साथ अंतर्क्रिया आदि पर अधिकाधिक अनुसंधान अनिवार्य हो जाता है।[2]
30 सालों से भी अधिक समय से अस्थि मज्जा का और हाल में ही गर्भनाल रूधिर स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कैंसर रोग से पीड़ित रोगियों की ल्यूकेमिया एवं लिम्फोमा जैसी स्थितियों में चिकित्सा हेतु किया जाता रहा है।[3] कीमोथेरेपी के दौरान अधिकांश बढ़ती कोशिकाओं को सायटोटॉक्सिक अभिकारकों के प्रयोग से नष्ट किया जाता है। हालाँकि यह अभिकारक ल्यूकेमिया अथवा नियोप्लास्टिक कोशिका एवं अस्थि मज्जा में स्थित हिमेटोपोटिक स्टेम कोशिकाओं में भेद करने में असमर्थ होते हैं। पारंपरिक कीमोथेरेपी चिकित्सा की पद्धति से उत्पन्न इन दुष्प्रभावों को दूर करने का प्रयास स्टेम कोशिका प्रत्यारोपण द्वारा किया जाता है।
आघात अथवा मस्तिष्क में चोट के चलते कोशिका नष्ट हो जाती है, जिससे मस्तिष्क में स्थित न्यूरॉन्स (तंत्रिका) एवं ऑलिगोडेन्ड्रोसाइट्स का नुकसान हो जाता है। स्वस्थ वयस्क मस्तिष्क में न्यूरल स्टेम कोशिकाएं शामिल होती हैं जो स्टेम कोशिकाओं की सामान्य संख्या को बनाए रखने या प्रजनक कोशिका बनने के लिए विभाजित होती हैं। स्वस्थ वयस्क प्राणी में जन्मदाता कोशिकाएं मस्तिष्क में ही स्थानांतरण करती हैं तथा न्यूरॉन्स की संख्या को सामान्य बनाये रखने का प्राथमिक कार्य (गंध बोध हेतु) संपादित करती है। यह दिलचस्प है कि गर्भावस्था और चोट लगने के बाद इस प्रणाली का नियंत्रण, विकास में प्रयुक्त कारक करते हैं एवं वे मस्तिष्क के नए पदार्थ के निर्माण की गति को बढ़ा भी सकते हैं।[उद्धरण चाहिए] हालाँकि ऐसा प्रतीत होता है कि मस्तिष्क को चोट या आघात लगते ही विरोहक प्रक्रिया का आरंभ होता है, किंतु वयस्कों में पर्याप्त सुधार शायद ही दिखायी देता हो, जो कि मजबूती में कमी दर्शाता है।
मस्तिष्क के अध: पतन रोग में भी स्टेम कोशिका का उपयोग किया जा सकता है जैसे कि पर्किन्सन और अल्जाइमर विकारों में।[4][5]
कुत्तों के मस्तिष्क में इंजेक्शन द्वारा न्यूरल (व्यस्क) स्टेम कोशिका को प्रवेशित कर किये गये शोध द्वारा दिखाया गया है कि कैंसर की गिल्टी का उपचार बहुत सफल रहा है।[उद्धरण चाहिए] परम्परागत तकनीकों के प्रयोग से मस्तिष्क के कैंसर का इलाज करना कठिन होता है क्योंकि यह तेजी से फैलता है। हारवर्ड मेडिकल स्कूल के शोधकर्ताओं ने मानव की न्यूरल स्टेम कोशिका को उन चूहों के मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किया जिनकी खोपड़ियों में पहले ही से कैंसर की गिल्टियाँ प्रवेशित की गई थीं। कुछ ही दिनो के भीतर कोशिकायें कैंसर प्रभावित क्षेत्र में स्थानांतरित हुईं तथा सायटोसिन डायमिनेज का निर्माण किया, एक ऐसा एंजाइम जो गैर-विषाक्त समर्थक दवा को कीमोथेराप्यूटिक कारक में परिवर्तित करता है। एक परिणाम के रूप में, इंजेक्शन द्वारा दिया गया पदार्थ 81 प्रतिशत कैंसर की गिल्टियों को कम करने में सक्षम रहा। स्टेम कोशिका ना तो विभेदित हुई और ना ही वे गिल्टी में तब्दील हो पायी।[6] कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि कैंसर के इलाज की कुंजी का पता कैंसर की स्टेम कोशिका के प्रसार को कुंठित करने में है। तदनुसार, वर्तमान कैंसर चिकित्सा की रूपरेखा कैंसर कोशिका को नष्ट करने की दृष्टि से बनी है। हालाँकि, पारंपरिक कीमोथेरेपी उपचार कैंसर की कोशिका तथा अन्य कोशिका में भेद नहीं कर पाते। स्टेम कोशिका द्वारा उपचार से कैंसर की चिकित्सा की संभावना प्रबल हो सकती है।[7] वयस्क स्टेम कोशिका के प्रयोग से लिम्फोमा रोग के उपचार हेतु अनुसंधान जारी है और इसके लिए मानव परीक्षण भी किया जा चुका है। मूलतः, रोगी के प्रतिरोधक तंत्र को स्वस्थ दाता के प्रतिरोधक तंत्र द्वारा विस्थापन कर अनिवार्य रूप से रसायन चिकित्सा का प्रयोग रोगियों की लिम्फोसायट्स कोशिकाओं को संपूर्ण नष्ट कर के स्टेम कोशिका प्रदान करने में किया जा रहा है।
25 नवम्बर 2003 में कोरियाई शोधकर्ताओं के एक दल ने सूचना दी कि एक रोगी जो कि रीढ़ की हड्डी में चोट से पीड़ित था उस रोगी में गर्भनाल रूधिर से बहुप्रभावी वयस्क स्टेम कोशिकाओं को प्रत्यारोपित किया गया जिसके चलते निर्धारित विधि का पालन कर उक्त महिला रोगी बिना किसी कठिनाई और बिना किसी सहायता के चलने लगी। उक्त रोगी लगभग 19 सालों तक खड़े होने में असमर्थ थी। इस अभूतपूर्व निदान/परीक्षण हेतु शोधकर्ताओं ने गर्भनाल रूधिर से वयस्क स्टेम कोशिकाओं को पृथक कर उन्हें रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त हिस्से में प्रवेशित किया था।[8][9]
दी वीक के 7 अक्टूबर 2005 के संस्करण के अनुसार, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन के शोधकर्ताओं ने मानव भ्रूण से निकाले बहुप्रभावी न्यूरल स्टेम कोशिकाओं को लकवे के विकार से पीड़ित चूहों में प्रत्यारोपित किया जिसके परिणामस्वरूप चार माह उपरान्त उन चूहों में गति/हरकत होने लगी। इस सुधार के साथ यह भी निदान किया गया कि प्रत्यारोपित कोशिका नवीनतम न्यूरॉन्स एवं ऑलिगोडेन्ड्रोसाइट्स में तब्दील हो गयी जिनमे से ऑलिगोडेन्ड्रोसाइट्स केन्द्रिय मस्तिष्क तंत्र में स्थित एक्सॉन्स के मायलिन शीथ नामक आवरण बनाने में प्रयुक्त होते हैं तथा न्यूरल आवेग - संवेग के मस्तिष्क तक संचरण में सहायक है।[10]
जनवरी 2005 में विस्कॉन्सीन मॅडीसन के विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने मानव के ब्लास्टोसिस्ट स्टेम कोशिकाओं को न्यूरल स्टेम कोशिकाओं में तब्दीली कर आगे उन्हें अपरिपक्व गतिमान न्यूरॉन्स में और अंत में रीढ़ की हड्डी के गतिमान न्यूरॉन्स में बदल दिया, अर्थात मानव शरीर में उन कोशिकाओं के स्वरूप में जो मस्तिष्क से रीढ़ की हड्डी तक संचार कार्य संपादित करती है, एवं जो इसके बाद परिधि में गतिशीलता के कार्य में मध्यस्थता भी करती है। इन नव-निर्मित न्यूरॉन्स ने विद्युत क्रियाशीलता दर्शायी, जो कि न्यूरॉन्स की जानी-मानी क्रिया है। एक प्रमुख शोधकर्ता सू-चुन झांग ने इस प्रक्रिया का इस तरह वर्णन किया- "ब्लास्टोसिस्ट स्टेम कोशिकाओं को परिवर्तित होने में कदम-दर-कदम इस तरह शिक्षित करना कि जहाँ हर कदम की भिन्न शर्तें तथा कठोर समय की चौखट हो।"
ब्लास्टोसिस्ट स्टेम कोशिकाओं को गतिमान न्यूरॉन्स में बदले जाने की प्रक्रिया दशकों तक शोधकर्ताओं को छकाती रही। हालाँकि झांग द्वारा दिये गये निष्कर्ष इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान हैं, इसके बावजूद भी यह बात अब तक अस्पष्ट बनी हुई है कि किस तरह प्रत्यारोपित कोशिकाओं में वह क्षमता आती है कि जिसके चलते वे पड़ोसी कोशिकाओं से संचरण प्रतिस्थापित कर लेती है। तदनुसार, एक मॉडल के रूप में जीव चूजों के भ्रूणों के अध्ययनों को अवधारणा के सबूत स्वरूप प्रयोगों के रूप में प्रभावी समझा जा सकता है। यदि कारगर साबित हुई तो इस तरह नव-निर्मित कोशिकाओं का उपयोग लऊ गेरिक विकार में, मांसपेशी विस्थापित होने की व्याधि में एवं रीढ़ की हड्डी कि क्षति/चोट, आदि में हो सकता है।[उद्धरण चाहिए]
हृदय रोगों पर किये कई चिकित्सीय परीक्षणों से पता चला है कि पुराने तथा नये रोगों पर समान रूप से वयस्क स्टेम कोशिका द्वारा चिकित्सा सुरक्षित, प्रभावी एवं सक्षम है।[11] 2007 की विगत गणना में यह पाया गया कि हृदय रोग विकारों पर उपचार हेतु वयस्क स्टेम कोशिका द्वारा चिकित्सा व्यवसायिक रूप से कम से कम पाँच महाद्वीपों में उपलब्ध है।
हृदय विकारों से उबारने में कारगर संभावित तंत्रों में सम्मिलित हैं:[4]
हृदय की मांसपेशी कोशिका में वयस्क अस्थि मज्जा कोशिकाओं को द्विगुणित भी किया जा सकता है।[4]
मानव प्रतिरक्षा सेल प्रदर्शनों की सूची की विशिष्टता है जो मानव शरीर में ही तेजी से अनुकूल प्रतिजनों से रक्षा करने के लिए अनुमति देता है। हालाँकि प्रतिरक्षा तंत्र रोग के रोगजनन पर क्षीण हो जाता है, चूंकि संपूर्ण रक्षा संपादन में इस तंत्र की अहम भूमिका है, इसका क्षीण हो जाना एक प्रकार से जीव के लिये घातक हो जाता है। रक्त निर्माण करने वाली कोशिका के विकारों को हिमॅटोपॅथोलॉजी कहते हैं। प्रतिरक्षा कोशिका की वह विशिष्टता कि किस तरह बाहरी प्रतिजनों की पहचान करती है, चुनौतियों के रूप में प्रतिरक्षा से संबंधित विकारों के उपचार में खड़ी है। सफल प्रत्यारोपण उपचार हेतु यह अनिवार्य होता है कि दाता और प्राप्तकर्ता के बीच एकरूपता/समानता रहे, परंतु यह साधारण कार्य नहीं है, चाहे वे प्रथम श्रेणी के संबंन्धी ही क्यों न हो। हिमॅटोपोटीक वयस्क स्टेम कोशिका और भ्रूणजनित स्टेम कोशिका दोनों का उपयोग कर किये गये शोध द्वारा इनमे से कई विकारों पर उपचार के लिये अनिवार्य तंत्रों तथा विधियों की जानकारी उपलब्ध करायी हैं।[उद्धरण चाहिए]
पूर्ण रूप से परिपक्व मानव की लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण हिमॅटोपोटीक वयस्क स्टेम कोशिका द्वारा कृत्रिम तरीके से किया जा सकता है क्योंकि वे उन कोशिकाओं की पूर्वरचना ही हैं। इस प्रक्रिया में हिमॅटोपोटीक वयस्क स्टेम कोशिका को स्ट्रोमल कोशिकाओं के साथ निर्मित किया जाता है ताकि ऐसे वातावरण का निर्माण हो सके जो अस्थि मज्जा के वातावरण की नकल हो, जो कि लाल रक्त कोशिकाओं का स्वाभाविक निर्माण स्थल है। वृद्धि का कारक इरीथ्रोपोटीन भी मिलाया जाता है जिससे स्टेम कोशिका के पूर्ण द्विगुणन में आसानी हो।[12] इस तकनीक में और अधिक शोध करने पर जीन चिकित्सा, रक्त आधान एवं सामयिक दवाओं के क्षेत्र लाभान्वित होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
बालों की जड़ो में भी स्टेम कोशिकाएं होती है और कुछ शोधकर्ता अंदाज़ लगाते है की बालों की जड़ों की स्टेम कोशिकाओं पर अनुसंधान कर, स्टेम कोशिकाओं की जन्मदात्री कोशिकाओं को क्रियाशील कर, गंजेपन के उपचार में सफलता अर्जित की जा सकती है। इस उपचार को खोपड़ी पर पहले से ही विद्यमान स्टेम कोशिकाओं को सक्रिय कर के किया जा सकता है। इसके उपरान्त की चिकित्सा में मात्र जड़ो की स्टेम कोशिकाओं को संकेत देकर निकट की जड़ो की कोशिका जो बढ़ती आयु के चलते सिकुड़ चुकी हो, को रासायनिक संकेतों से सक्रिय किया जा सकता है, जो कि एवज में संकेतों के फलस्वरूप, पुनः निर्मित हो कर बालों को दुबारा स्वस्थ बनाने में सहायक होगी।
2004 में किंग्स कॉलेज लन्दन ने चूहों में पूर्ण दाँत उगाये जाने के तरीके की खोज की[13] और वो प्रयोगशाला के भीतर ऐसा करने में सफल रहे। शोधकर्ताओं को विश्वास है कि इस तकनीक से मानव रोगियों में भी जीवंत दाँत उगाये जा सकेंगे।
सिद्धांत रूप में, रोगियों से ली गयी स्टेम कोशिका को प्रयोगशाला में सक्रिय कर दाँत कली के रूप में बदला जायेगा जिसे मसूड़ों में लगाने करने पर उस स्थान से नए दाँत का उगम होगा।[14] यह जबड़े की हड्डी से मिलकर रसायन का स्राव करेगा जिसके चलते स्नायु और रक्त वाहिकाओं को उससे जुड़ने हेतु प्रोत्साहन प्राप्त होगा। यह प्रक्रिया उसी तरह की होगी जिस तरह से मनुष्य के मूल वयस्क दाँत उगते हैं।
इसके पूर्व कि स्टेम कोशिका का चुनाव गिरे दाँतों को प्रतिस्थापित करने में किया जाये, अभी भी कई चुनौतियाँ बाकी हैं।[15]
हेलर ने भ्रूण की स्टेम कोशिकाओं की सहायता से कोशिकाओं के कोक्लीअ नामक बालों को दुबारा उगाये जाने की सफलता की सूचना दी है।[16]
2003 के बाद से, शोधकर्ताओं ने सफलतापूर्वक क्षतिग्रस्त आंखों में कॉर्निया की स्टेम कोशिकाओं का प्रत्यारोपण किया है। भ्रूण स्टेम कोशिकाओं का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में समर्थशाली स्टेम कोशिका की एक पतली परत उगाने में कामयाबी अर्जित की। जब इन परतों को क्षतिग्रस्त कॉर्निया पर प्रतिरोपित किया जाता है तो स्टेम कोशिकाएं उत्तेजित हो स्वयं दुरुस्त होकर अंततः दृष्टि बहाल करने में सहायक साबित होती हैं।[17] इस तरह की नवीनतम तकनीक से विकास, जून 2005 में उस वक्त देखा गया, जब क्वीन विक्टोरिया अस्पताल ससेक्स इंग्लैंड में शोधकर्ताओं ने चालीस रोगियों की इसी तकनीक से दृष्टि बहाल की। डॉक्टर शेराज दाया के नेतृत्व में एक दल ने रोगी, रिश्तेदार और यहाँ तक कि एक शव से भी प्राप्त वयस्क स्टेम कोशिका का सफलता पूर्वक उपयोग करने में कामयाबी अर्जित की। परीक्षण के अगले दौर जारी हैं।[18]
अप्रैल 2005 में ब्रिटेन के चिकित्सकों ने, देबोराह कात्ल्यीं नामक एक महिला जो कि किसी नाइट क्लब में अम्ल फेंके जाने से एक आंख से अंधी हो गयी थी, के कॉर्निया में अंग दाता द्वारा प्राप्त स्टेम कोशिकाओं को प्रत्यारोपित किया। कॉर्निया, जो आंख की पारदर्शी खिड़की है प्रत्यारोपण के लिए एक विशेष रूप से उपयुक्त है। वास्तव में, पहला मानव अंग प्रत्यारोपण कॉर्निया प्रत्यारोपण ही है। कॉर्निया के भीतर रक्त वाहिकाओं के अभाव के चलते यह क्षेत्र प्रत्यारोपण के लिए एक अपेक्षाकृत आसान लक्ष्य है। केराटोकोनस नामक एक अपक्षयी विकार के कारण कॉर्निया प्रत्यारोपण के अधिकांश प्रकरण घटित होते हैं।
विश्वविद्यालय अस्पताल, न्यू जर्सी की रिपोर्ट के अनुसार प्रत्यारोपित कोशिका से नई कोशिकाओं के विकास की सफलता का प्रतिशत 25 से 70 है।[19]
2009 में, केन्द्र चिकित्सा की पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं प्रयोगों से दर्शाया की मानव कॉर्निया से एकत्र की गयी स्टेम कोशिका उन चूहों में पारदर्शकता कायम रख पाई जिनका कॉर्निया क्षतिग्रस्त हो चुका था।[20]
उन चूहों में स्टेम कोशिकाएं महत्वपूर्ण रूप से परिणामस्वरूप हरकत में सुधार दर्शाती हैं जो पार्श्व काठिन्य रोग से पीड़ित थे। एक चूहा प्रजाति मॉडल जो मानव रूप के निकट है, उसकी रीढ़ की हड्डी में उन स्नायुओं को नष्ट करने के लिए विषाणु प्रवेशित किये गए, जो गति को नियंत्रित करती है। उन प्राणियों को उसके बाद रीढ़ की हड्डी में स्टेम कोशिका की प्राप्ति होती रही। प्रतिरोपित कोशिका चोट की जगहों तक स्थानांतरित हो गयी, तंत्रिका कोशिकाओं के पुनः निर्माण में सहयोगी रही, तथा हरकत/ गति के कार्य को सुचारू किया।[21]
तीसरे चरण के नैदानिक परीक्षण 2008 की दूसरी तिमाही में ओसीरसि थेराप्यूटिक्स द्वारा किये गए जिनमे वयस्क अस्थि मज्जा से लिए गए विकास युक्त प्रोकाईमल उत्पाद का उपयोग किया गया। इस चिकित्सा के लक्ष्य ग्राफ्ट-बनाम-होस्ट तथा क्रोंस रोग हैं।[22]
इस section में सत्यापन हेतु अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर इस section में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री को चुनौती दी जा सकती है और हटाया भी जा सकता है। (अगस्त 2010) स्रोत खोजें: "स्टेम कोशिका उपचार" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
प्रो जोसफ यानाई के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक दल ने गर्भवती चूहों की हेरोइन तथा कीटनाशक ऑरगेनोफॉस्फेट के संपर्क में आने वाली संतानों में शिक्षण के अभाव संबंधी विकार को ठीक करने में सफलता प्राप्त की।[उद्धरण चाहिए] इस कार्य को, तंत्रिका स्टेम कोशिका प्रत्यारोपण को सीधे आगामी पीढ़ी के दिमाग में करके पूर्ण किया गया। लगभग 100 प्रतिशत सुधार पाया गया, जैसा कि व्यवहार परीक्षण से दर्शाया गया जिसके तहत जीव जिनमे प्रत्यारोपण किया गया था उनमे सामान्य व्यवहार और ज्ञान अर्जन में सुधार की क्षमता नजर आई।[तथ्य वांछित] आणविक स्तर पर, इलाज में सम्मलित पशुओं के मस्तिष्क रसायन को सामान्य रूप से बहाल पाया गया. इस काम के जरिये जिसमे, अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान, अमेरिका इसराइल द्विराष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन और इजरायल नशा बंदी अधिकारियों द्वारा सहायता प्राप्त थी, इसमे शोधकर्ताओं ने पाया कि स्टेम कोशिका उस वक्त भी क्रियाशील थी जब कि अधिकांश मेजबान मस्तिस्क की कोशिका मृतप्राय हो चुकी थी।
वैज्ञानिकों ने पाया कि तंत्रिका स्टेम कोशिका इससे पहले कि मृत होती, मेजबान मस्तिष्क को उत्प्रेरण देकर भारी संख्या में स्टेम कोशिका निर्माण के लिए प्रवृत्त कर चुकी थी जिसके चलते क्षति में सुधार पाया गया। इन निष्कर्षों ने कोशिका अनुसंधान स्टेम समुदाय के प्रमुख प्रश्नों के उत्तर दिए जिन्हें इस वर्ष की शुरुआत में प्रकाशित अग्रणी पत्रिका मॉलिक्यूलर साइकियाट्री में छापा गया। अब वैज्ञानिक ऐसी प्रक्रियाओं को विकसित कर रहे हैं जिनके तहत तंत्रिका स्टेम कोशिका का प्रयोग कम से कम आक्रामक तरीके से यथासंभव रक्त वाहिकाओं के माध्यम से हो सके जिससे शायद यह चिकित्सा व्यावहारिक और नैदानिक बनायी जा सके। शोधकर्ता इसके लिए भी तरीके विकसित कर रहे हैं जिनमे रोगी के ही शरीर से कोशिकाओं को ले कर, उन्हें स्टेम कोशिकाओं में बदला जाता है और फिर उन्हें रक्त प्रवाह के माध्यम से रोगी के रक्त में वापस प्रत्यारोपित किया जाता है। रोग प्रतिरोधक अस्वीकृति को एक तरफ कम करते हुए यह तरीके भ्रूण की स्टेम कोशिका के उपयोग से उठे विवादास्पद नैतिक मुद्दों को भी समाप्त करेंगे।[23]
मधुमेह से पीड़ित रोगियों में अग्नाशय के भीतर की इन्सुलिन उत्पादक बीटा कोशिका कार्य करना बंद कर देती है। मानव भ्रूण स्टेम कोशिका सेल माध्यम में विकसित की जा सकती है और उन्हें उत्तेजित कर इंसुलिन के उत्पादन योग्य कोशिकाओं में बदला जा सकता है जिन्हें रोगी में प्रत्यारोपित किया जा सकता है।
हालाँकि, नैदानिक सफलता निम्नलिखित प्रक्रियाओं के विकास पर अत्यधिक निर्भर करती है:[4]
आर्थोपेडिक उपचार अवस्थाओं पर चिकित्सीय केस रिपोर्टें सामने आई हैं। ऐसा प्रतीत होता है की अब तक मांसपेशी और अस्थि सेवाओं पर जो साहित्य उपलब्ध है, वह मीजेनकाइमल स्टेम कोशिकाओं पर ही केन्द्रित है। सेंतेनो ने व्यक्तिगत मानव मात्र में उपास्थि और मेनिस्कुस की मात्रा में वृद्धि के विषय में एमआरआई सबूत प्रकाशित किये हैं।[24][25] परीक्षण, जिनमे एक बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित हैं, के परिणामों को अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है। हालाँकि, एक प्रकाशित सुरक्षित अध्ययन जो 227 रोगियों के समूह पर 3-4 वर्षों की अवधि में किया गया है, उसमे मीजेनकाइमल कोशिका प्रत्यारोपण से संबंधित पर्याप्त सुरक्षा और न्यूनतम जटिलता दर्शायी गयी है।[26]
वाकितानी ने भी प्रकरणों की श्रृंखला में पाँच घुटनों में नौ में दोषों को लेकर एक लघु अध्ययन प्रकाशित किया है जिसमे मीजेनकाइमल स्टेम कोशिका के शल्यक्रिया से प्रत्यारोपण और उपचार किये गए कौन्ड्रल दोष को शामिल किया गया है।[27]
स्टेम कोशिका का उपयोग मानव ऊतकों के विकास में वृद्धि करने में भी किया जा सकता है। एक वयस्क व्यक्ति में, अक्सर घायल को त्वचा में निशान उत्पन्न करने वाले ऊतक द्वारा बदला जाता है जो कि विशेष तौर पर त्वचा पर बेतरतीब कोलाजेन संरचना, बाल की जड़ों की लुप्तता और अनियमित नाड़ी संरचना के रूप में दिखाई देते है। तथापि, घायल भ्रूण ऊतक के मामले में, घायल ऊतक को स्टेम कोशिका की क्रिया के चलते साधारण कोशिका से बदला जाता है।[28] वयस्कों में ऊतक को पुनर्जीवित करने के लिए वयस्क स्टेम कोशिका "बीज" को घाव रूपी जमीन की "मिट्टी" के अंदर दबाकर और स्टेम कोशिका द्वारा घाव के ऊतक की कोशिका को द्विगुणित करने देना, एक संभावित तरीका है। यह पद्धति एक पुनर्योजी प्रतिक्रिया दर्शाती है जो कि भ्रूण में घाव के सुधारने वाली क्रिया की तरह है, न कि वयस्क ऊतक में निशान बनाने वाली क्रिया की तरह।[28] शोधकर्ता वर्तमान में भी "मिट्टी" रूपी ऊतक के पुनर्जीवन हेतु अनुकूल पहलुओं की जांच कर रहे हैं।[28]
मानव भ्रूण की स्टेम कोशिका द्विगुणित विभाजन में निष्क्रिय सूअर की डिम्बग्रंथि के फाईब्रोब्लास्ट माध्यम में अंकुर कोशिका को विभाजित करती है जिसका प्रमाण जीन अभिव्यक्ति विश्लेषण से दिया जाता है।[29]
मानव भ्रूण स्टेम कोशिकाओं को उत्तेजित कर शुक्राणुओं जैसी कोशिका में बदला जाता है हालाँकि वह विकृत अथवा कुछ क्षतिग्रस्त ही रहती है।[30] यह संभावित अशुक्राणुता विकार के उपचार योग्य हो सकती है।
23 जनवरी 2009 को अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने गेरोन निगम को मनुष्यों के भ्रूण स्टेम कोशिका पर आधारित पहले चिकित्सीय परीक्षण के लिए स्वीकृति प्रदान की. यह परीक्षण जीआरएनओपीसी 1 औषधि का मूल्यांकन करेगा, जो कि भ्रूण स्टेम कोशिका ओलिगोडैंड्रसाईट प्रजनन कोशिका का व्युत्पन्न है तथा उसे रीढ़ की हड्डी की चोट से पीड़ित रोगियों पर आजमाया जायेगा.
2010 के मध्य में सैकड़ों तृतीय चरण से जुड़े नैदानिक परीक्षण जिनमे स्टेम कोशिका सम्मिलित है, का पंजीकरण किया गया है।[31]
मानव भ्रूण स्टेम कोशिका के उपयोग को लेकर व्यापक विवाद जारी है। यह विवाद मुख्य रूप से उन तकनीकों पर केन्द्रित है जिनके उपयोग से स्टेम कोशिका अस्तर निकलते वक्त अक्सर ब्लास्टोसिस्ट की क्षति हो जाती है।
शोध में मानव भ्रूण स्टेम कोशिकाओं के उपयोग के प्रति विरोध अक्सर दार्शनिक, नैतिक या धार्मिक आपत्तियों पर आधारित होता है। हालांकि ये आपत्तियाँ शोध का विरोध करने वाले शब्दाडम्बर का स्रोत हैं, किन्तु जो इन शोधों के विरोध में हैं वे लोग अनुसंधानकर्ताओं को भ्रूण स्टेम कोशिका को लेकर किसी सार्थक विफलता की तरफ इंगित भी कर सकते हैं।
पिछले दशक में अकेले चीन में ही हजारों सफल वयस्क स्टेम कोशिका द्वारा उपचार किये गए हैं, किन्तु अनुसंधान समुदाय अभी तक भ्रूण स्टेम कोशिका का उपयोग कर एक भी सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा पाया है। विकल्प के लिए आवश्यक नहीं है कि भ्रूण का विनाश किया जाए जैसे कि गर्भनाल रक्त, दूध दांत की स्टेम कोशिका, अस्थि मज्जा स्टेम कोशिका अथवा प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिका का प्रेरण आदि का विनाश. इन वैकल्पिक स्रोतों से प्राप्त कोशिकाओं में गंभीर दुष्प्रभाव की कमी है, जो वैश्विक रूप से भ्रूणीय स्टेम कोशिका उपचार में होता है जिसमे अक्सर अधिकांश परीक्षार्थी द्वारा घातक अस्वीकृति के रूप में परिणाम प्राप्त होते हैं।
इस अनुभाग में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जुलाई 2009) स्रोत खोजें: "स्टेम कोशिका उपचार" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
चीन गणराज्य में वर्तमान में नैदानिक स्तर पर स्टेम कोशिका अनुसंधान और उपचार चल रहे हैं। चीन गणराज्य के स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्टेम कोशिका से इलाज को अनुमति उन शर्तों पर भी प्रदान की है जिन्हें पश्चिमी देश जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया देने में हिचकिचा रहे हैं। चीन द्वारा प्रक्रियाओं और परीक्षण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए प्रलेखन के लिए अपने असफल प्रयास को लेकर, पश्चिमी जगत ने भारी सकारात्मक वास्तविक परिणाम प्राप्ति के बावजूद इसकी छानबीन की.[55]
चीन में प्रयुक्त स्टेम सेल चिकित्सा में कई किस्म की कोशिकाओं का उपयोग किया गया जिनमे गर्भनाल स्टेम कोशिका और घ्राण एन्शीथिंग कोशिका सम्मिलित है। स्टेम कोशिका चिकित्सा में प्रयोग पूर्व इन कोशिकाओं को केंद्रीकृत रक्त बैंकों में विस्तारित किया जाता है। राज्य वित्त पोषित औद्योगिक तकनीक क्षेत्र कंपनी जो शेन्ज़ेन प्रांत में स्थित है, वयस्क स्टेम सेल चिकित्सा के आधार पर कई विकारों और लक्षणों का उपचार करती है। सम्पूर्ण पूर्वी चीन के अस्पताल स्टेम कोशिका प्रदाताओं के साथ समन्वय कर मरीजों को कई उपचार प्रदान करते हैं। वर्तमान में इन कंपनियों ने नाड़ी संस्थान विकारों और हृदय धमनी विकारों के उपचार पर ध्यान केंद्रित किया है। चीनी वयस्क स्टेम कोशिका चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वाधिक सफलता मस्तिष्क विकारों के इलाज के रूप में है। इन उपचारों से सीधे मस्तिष्क को स्टेम कोशिका दी जाती है जिससे अधिक मात्रा में गतिशीलता और मस्तिस्क द्वारा कार्य संपादन को सेरेब्रल पाल्सी, अल्जाइमर और मस्तिष्क की चोटों से पीड़ित रोगियों में प्रेषित किया जा सके. हालांकि, पूर्वव्यापी अध्ययन से पता चला है कि चीन ने भ्रूण से व्युत्पन्न मस्तिष्क के ऊतकों का उपयोग रीढ़ की हड्डी की चोट से पीड़ित मानव में किया किन्तु आशाजनक रूप में सफलता न मिल सकी और फीनोटाइप और प्रतिरोपित कोशिकाओं जिन्हें घ्राण एन्शीथिंग कोशिकाओं के रूप में वर्णित किया गया है, इन सभी कोशिकाओं के भाग्य की जानकारी न मिल सकी. साथ ही, उपचार उपरान्त मृत होने का प्रमाण और कार्यात्मक लाभ में कमी गंभीर नैदानिक त्रुटि के रूप में उभर कर सामने आई.[55] इसके अलावा, चीन में स्टेम कोशिका चिकित्सा के उपयोग को लेकर नीति नियमन की हद कहां तक है, यह भी स्पष्ट नहीं है।[56] अधिकृत नैदानिक परीक्षणों के प्रोटोकॉल के अभाव में तथा अधिक और विनियामक तथा निरीक्षण के चलते पश्चिमी नियामक संस्थायें रोगियों और चिकित्सकों को चीनी केन्द्रों का चयन करने में सतर्क रहने की सलाह देती हैं।[55]
वर्तमान में मैक्सिको में नैदानिक स्तर पर स्टेम कोशिका द्वारा उपचार से चिकित्सा की जाती है। इसके लिए एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विभाग परमिट (सीओएफईपीआरआईएस (COFEPRIS)) की आवश्यकता होती है। यह अनुमति संयुक्त राज्य अमेरिका या यूरोप जैसे पश्चिमी देशों में दी गयी मंजूरी से भी परे स्टेम कोशिका द्वारा उपचार के उपयोग की अनुमति देती है। रोगी वसा, अस्थि मज्जा, या अपरा स्रोतों का मैक्सिको में प्रदान की जा रही स्टेम कोशिका द्वारा चिकित्सा में वसा, अस्थि मज्जा अथवा दाता के नाल स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
2005 में, दक्षिण कोरियाई वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होने ऐसी स्टेम कोशिका उत्पन्न की है जो प्राप्तकर्ता द्वारा आसानी से ग्रहण की जा सकेगी. दैहिक कोशिका परमाणु हस्तांतरण तकनीक (एससीएनटी (SCNT)) से दैहिक कोशिका का उपयोग कर 11 नए स्टेम कोशिका अस्तरों को विकसित किया गया था। माना गया था कि नतीजतन प्राप्त कोशिका प्राप्तकर्ता के आनुवंशिक द्रव्य से मेल खाएगी और इस तरह कोशिका अस्वीकृति का चरण पूर्ण कर लिया जायेगा.[57]
हालांकि, इस अध्ययन को अंततः अविश्वास के चलते नहीं माना गया क्योंकि प्रमुख शोधकर्ता डॉ॰ वू सुक ह्वांग ने कबूल किया कि उन्होंने उन कोशिकाओं का प्रयोग किया था जिन्हें उन्होंने अपने शोधकर्ता दल से प्राप्त किया था।[उद्धरण चाहिए] दिसम्बर 2005 में, दावा किया गया कि सकारात्मक परिणाम दर्शाने के लिए उनके शोध कार्य के साथ छेड़छाड़ की गयी थी। बाद में उसी महीने में एक अध्ययन दल द्वारा इन दावों की पुष्टि भी कर दी गयी।[58]
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद) के रूप में उद्धृत
|author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)
(subtitle) Procymal is being developed in many indications, GvHD being the most advanced
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद); Explicit use of et al. in: |author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)[मृत कड़ियाँ]
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link) [मृत कड़ियाँ]
|author=
(मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
|month=
की उपेक्षा की गयी (मदद)सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)