अजयगढ़ Ajaigarh | |
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अजयगढ़ महल | |
निर्देशांक: 24°54′11″N 80°15′32″E / 24.903°N 80.259°Eनिर्देशांक: 24°54′11″N 80°15′32″E / 24.903°N 80.259°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | पन्ना ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 16,656 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | बुंदेलखंडी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
अजयगढ़ (Ajaigarh) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के पन्ना ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है।[1][2]
यह एक बुन्देला रियासत की राजधानी थी।
पन्ना के निकट बसा ६.८१ वर्ग किलोमीटर में फैला अजयगढ़ अपने लगभग १२५० साल पुराने दुर्ग, प्राकृतिक सुषमा और वन्य-सम्पदा के लिए प्रसिद्ध है। यह नगर पंचायत है।
ब्रिटिश राज के दौरान अजयगढ़, राजसी-राज्य अजयगढ़ की राजधानी था। बुन्देलखंड राज्य के वीर महाराजा छत्रसाल बुन्देला(1649-1731) के वंशज बुंदेला क्षत्रिय जैतपुर के महाराजा कीरत सिंह बुन्देला के पौत्र (दत्तक पुत्र गुमान सिंह बुन्देला के पुत्र) बखत सिंह बुन्देला ने सन १७६५ में इस राज्य की स्थापना की थी। जो 1792 सन तक बुन्देलों ने शासन किया!1792 में नबाबों ने कब्जा कर लिया! जो कि 1804 तक रहा! 1804 में ठाकुर लक्ष्मण सिंह दऊआ ने नबाबों को हराकर यहाँ दऊआ (यादव) राजवंश की स्थापना करी! 1807 में अजयगढ़-राज पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था और तब यह 'सेंट्रल इंडिया एजेंसी' की 'बुंदेलखंड एजेंसी' का भाग बनाया गया। 1809 में यह राज्य फिर से बुन्देलों को अंग्रेज़ों ने सौंप दिया! जो कि 1855 तक चला राजा बिजय सिंह का 1855 में अकस्मात निधन हो जाने के कारण राज्य की बागडोर राज माता ने ली! तब इस राज्य के मंत्री ठाकुर रणजोर सिंह दऊआ थे,जो कि ठाकुर लक्ष्मण सिंह दऊआ की पीड़ी के वंशज थे और निम्नीपार किले के जागीरदार थे जब राजा बिजय सिंह का निधन हो गया तो इस राज्य पर पड़ोसी राज्य जोकि बांदा नबाब थे !उनकी बुरी नजर थी इस राज्य पर! नबाब इस राज्य को हड़प लेना चाहते थे! लेकिन ठाकुर रणजोर सिंह दऊआ के होते यह सब मुमकिन न हो सका!और 1855 में ठाकुर लक्ष्मण सिंह दऊआ के वंशज ठाकुर रणजोर सिंह दऊआ ने फिर से दऊआ(यादव) राजवंश की स्थापना करी! और तब से लेकर 1947 तक इसी राजवंश के शासकों ने शासन किया!
[1]
यहाँ के शासकों को सम्मान से दऊआ राजा और 'सवाई महाराजा' भी कहा जाता था। पद्माकर जैसे महाकवि इसी राज्य से सम्मानित और पुरस्कृत हुए थे।
1901 में इसकी आबादी 78,236 और क्षेत्रफल 771 मील (1997 वर्ग किमी) था। अक्सर मलेरिया का शिकार रहे इस पहाड़ी शहर में सन 1868-1869 और 1896-1897 में यहाँ बहुत भीषण अकाल पड़े। २००१ की जनगणना में यहाँ की जनसंख्या 13,979 थी- जो २०११ की जनगणना के अनुसार 16,665 हो गयी।
यहाँ का किला जो नीचे बसी आबादी समुद्र तल से 1744 फिट व धरातल से लगभग 860 फिट ऊंचाई पर स्थित है। अजयगढ़ का दुर्ग अनेक ऐतिहासिक-भग्नावशेषों का भंडार है।
"सर्वतोभद्र स्तम्भ – कालंजर" नामक लेख जो श्री जी. एल. रायकवार एवं डॉ॰ एस. एन. यादव ने लिखा है के अनुसार -" कालंजर दुर्ग को सर्वाधिक प्रसिद्धि चन्देलों के शासन काल में प्राप्त हुई। कालंजर का चन्देल इतिहास में महत्त्व इस कथन से सत्यापित होता है कि चन्देलों का सम्पूर्ण इतिहास कालंजर एवं अजयगढ़ दुर्ग के चारों ओर ही केन्द्रित रहा।
खजुराहो से 80 किलोमीटर दूर अजयगढ़ का दुर्ग है। यह दुर्ग चंदेल शासन के अर्धकाल में बहुत महत्त्वपूर्ण था। विन्ध्य की पहाड़ियों की चोटी पर यह किला स्थित है। किले में दो प्रवेश द्वार हैं। किले के उत्तर में एक दरवाजा और दक्षिण पूर्व में तरहौनी द्वार है। दरवाजों तक पहुंचने के लिए 45 मिनट की खड़ी चट्टानी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। किले के बीचोंबीच अजय पलका तलाव नामक झील है। झील के अन्त में जैन मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। झील के किनारे कुछ प्राचीन काल के स्थापित मंदिरों को भी देखा जा सकता है। किले की प्रमुख विशेषता ऐसे तीन मंदिर हैं जिन्हें अंकगणितीय विधि से सजाया गया है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने कुछ समय पहले इस किले की देखभाल का जिम्मा उठाया है। विंध्याचल पर्वत श्रंखला के समतल पर्वत पर स्थित अजयगढ़ का किला आज भी लोगों के लिए रहस्यमय व आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ है।
नरैनी से 47 किलोमीटर दूर यह धरोहर कालींजर से दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस किले का ऊपरी भाग बलुआ पत्थर का है जो अत्यधिक दुर्गम है। यह धरोहर आज भी उपेक्षित है जो नेस्तनाबूत होने की कगार पर पहुंच चुका है। अजयगढ़ का किला चंदेल ,बुन्देला शासकों के शक्ति का केंद्र रहा है। वास्तुकला, स्थापत्य कला एवं शिल्य की दृष्टि इसकी तुलना खजुराहों की कला शिल्प से की जाती है। इस कारण किले को मदर ऑफ खजुराहों भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि अजयगढ़ किला का नाम किसी भी अभिलेख में नहीं मिलता है। प्राचीन अभिलेखों में इस दुर्ग का नाम जयपुर मिलता है। किले से प्राप्त अभिलेखों के अनुसार अजयगढ़ का नाम नांदीपुर भी कहा जाता है। कालींजर किला और अजयगढ़ किला के मध्य की दूरी मात्र 25 किलोमीटर है। कालींजर का नाम शिव से अद्भुत बताया जाता है। अजयगढ़ शिव के वाहन नंदी का स्थान भी कहा जाता है। इस कारण इसका नाम नांदीपुर पड़ा।
अजयगढ़ किला प्रवेश करते ही दो द्वार मिलते हैं जो एक दरवाजा उत्तर की ओर दूसरा दरवाजा तरोनी गांव को जाता है जो पर्वत की तलहटी में स्थित है। पहाड़ी में चढ़ने पर सर्वप्रथम किले का मुख्य दरवाजा आता है। दरवाजे के दायीं ओर दो जलकुंड स्थित है जो चंदेल शासक राजवीर वर्मन देव की राज महिषी कल्याणी देवी के द्वारा करवाये गये कुंडों का निर्माण आज भी उल्लेखनीय है। इस दुर्लभ किले में अनेक शैलोत्कीर्ण मूर्तियां मिलती हैं जिनमें कार्तिकेय, गणेश, जैन तीर्थकारों की आसान, मूर्तियां, नंदी, दुग्धपान कराती मां एवं शिशु आदि मुख्य है। ऊपर चढ़ने पर दायीं ओर चट््टान पर शिवलिंग की मूर्ति है। वहीं पर किसी भाषा में शिलालेख मौजूद है। जो आज तक कोई भी बुद्घिमान पढ़ नहीं सका तथा वहीं पर एक विशाल ताला चांबी की आकृति बनी हुयी है जो मूलत: एक बीजक है जिसमें लोगों का मानना है कि किसी खजाने का रहस्य छिपा है। हजारों वर्ष बीत गये परंतु दुर्ग के खजाने का रहस्य आज भी बरकरार है। किले के दक्षिण दिशा की ओर स्थित चार प्रमुख मंदिर आकर्षण के केंद्र है जो चंदेलों महलों के नाम से जाने जाते हैं जो धराशायी होने की कगार पर हैं। ये मंदिर देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहों व अजयगढ़ का किला एक ही वास्तुकारों की कृति है। अजयपाल मंदिर से होकर एक भूतेश्वर नामक स्थान है जहां गुफा के अंदर शिवलिंग की मूर्ति विराजमान है।
चंदेलकाल के समय कालिंजर एवं अजयगढ़ के इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। उसी समय इन दुर्गो की राजनीतिक सामरिक एवं सांस्कृतिक गरिमा प्राप्त हुई। चंदेलों के आठ ऐतिहासिक किलों में अजयगढ़ भी एक है।