अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन | |
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![]() अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन | |
स्थानीय नाम | रमन |
जन्म | 16 मार्च 1929 मैसूर, कर्नाटक, भारत |
मृत्यु | जुलाई 13, 1993 शिकागो, अमेरिका | (उम्र 64 वर्ष)
पेशा | लेखक, कवि, शोधकर्ता, प्राध्यापक |
भाषा | अंग्रेज़ी, तमिल, कन्नड, तेलुगु, संस्कृत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
विधा | कहानी, निबंध, कविता, लोककथाओं का अनुवाद |
विषय | लोक कथाएँ, सांस्कृतिक विषय |
उल्लेखनीय कामs | A Flowering Tree, 300 Ramayanas |
अट्टीपट कृष्णस्वामी रामानुजन (कन्नड़: ಅತ್ತಿಪೇಟೆ ಕೃಷ್ಣಸ್ವಾಮಿ ರಾಮಾನುಜನ್) (तमिल: அத்திப்பட்டு கிருஷ்ணசுவாமி ராமானுஜன்) (१६ मार्च १९२९ - १३ जुलाई १९९३) एक कवि, निबंधकार, शोधकर्ता, अनुवादक, भाषाविद्, नाटककार और लोककथाओं के विशेषज्ञ थे। उन्होंने तमिल, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में कवितायें लिखी है जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि अमेरिका में भी प्रभाव बनाया और आज भी बहुचर्चित कविताओं में से एक हैं। यद्यपि वह भारतीय थे और उनके अधिकांश काम भारत से संबंधित थे परन्तु उन्होंने अपने जीवन का दूसरा भाग, अपने मृत्यु तक अमेरिका में ही बिताया।[1]
विपुल निबंधकार और कवि, रामानुजन ने अनगिनत शैक्षिक और साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए योगदान दिया। उन्होंने अपने कार्यों के द्वारा पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों को पारस्परिक रूप से सुबोध्य बनाने की कोशिश की। उन्हें यह कहते हुए पाया गया है कि - "मैं भारत-अमेरिका में एक संबंधक (हायफेन) हूँ"।[2] शैक्षिक और साहित्यिक टिप्पणीकारों ने रामानुजन की प्रतिभा, मानवता और विनम्रता को काफी सराहा है। उन्होंने अपने कन्नड़ और तमिल कविताओ के श्रमसाध्य अनुवादों में प्राचीन साहित्य की भव्यता और बारीकियों को दर्शाया है जिनमे तमिल साहित्य तो करीब २००० वर्ष पुराने थे।[3]
ए. के. रामानुजन का जन्म १६ मार्च, १९२९ में मैसूर नगर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अट्टीपट असूरी कृष्णस्वामी था। वे मैसूर विश्वविद्यालय में गणित के प्राध्यापक एवं एक खगोलशास्त्री थे। रामानुजन की मां अपने समय के एक रूढ़िवादी ब्राह्मण महिला थी और घर संभालती थी। रामानुजन के पिता की मृत्यु १९४९ में हो गयी - जब वे (रामानुजन) बीस वर्ष के थे।
उनका पालन त्रिभाषी वातावरण में हुआ। वे अपने पिता से अंग्रेजी, अपनी माता से तमिल और बाहर शहर के लोगो से कन्नड़ में वार्तालाप करते थे। शिक्षा अपने ब्रह्म परवरिश के एक बुनियादी आवश्यकता थी। रामानुजन का बौद्धिक जीवन के प्रति जो समर्पण था वह उनके पिता के कारण ही पैदा हुआ था। उनके पिता का अध्ययन कक्ष अंग्रेजी, तमिल तथा संस्कृत की पुस्तकों से लदा रहता था। कभी कभी रात के खाने के वक्त, जब उनके पिता उनकी माता को पश्चिमी संस्कृति के शेक्सपियर जैसे कालजयी कृतियों के अनुवाद सुनाते थे तब वह भी उन्हें गौर से सुना करते थे।
अपने युवा वर्षों में उन्हें अपने पिता के ज्योतिषी तथा खगोल विज्ञानं दोनों में विश्वास देख काफी उलझन में पद जाते थे : उन्हें तर्कसंगत और तर्कहीन का इस तरह का मिश्रण काफी विचित्र लगता था। मजे की बात है, रामानुजन ने अपनी पहली कलात्मक प्रयास के रूप में जादू चुना। अपनी किशोरावस्था में, उन्होंने पड़ोस दर्जी से, इलास्टिक बैंड से युक्त छुपा जेब वाला एक कोट तैयार करवाया जिसमें उन्होंने खरगोश और फूलों के गुलदस्ते छुपा कर रख लिया। सर की टोपी, जादुई छड़ी और अन्य चीजों से लैस वे स्थानीय विद्यालयों, महिलाओं के समूहों तथा सामाजिक क्लबों में जादू का प्रदर्शन करते थे। एक जादूगर होने की इच्छा शायद उन्होंने अपने पिता की तर्कहीन में विश्वास से प्राप्त की थी।[4]
ए. के. रामानुजन ने अपनी प्रथ्मिक शिक्षा मल्लप्पा उच्च विद्यालय से प्राप्त की थी। उन्होंने बी.ए. और एम.ए. की डिग्रियाँ मैसूर के महाराजा महाविद्यालय (मैसूर विश्वविद्यालय) से प्राप्त की थी। उन्होंने अपने कॉलेज के प्रथम वर्ष में विज्ञान को अपना ऑनर्स पर उनके पिता को यह मंज़ूर न था। उनके पिता का यह मानना था की "रामानुजन का दिमाग गणित में नहीं लग सकता"। उन्होंने ज़बरदस्ती ऑनर्स विज्ञान से बदलकर अंग्रेजी साहित्य करवा दिया। अंततः रमन ने १९४९ में अपनी बी.ए. की डिग्री हासिल की और उसी वर्ष केरल में अंग्रेजी के अध्यापक बन गए। कुछ समय बाद वे धारावर, कर्नाटक में पढ़ाने लगे। उन शुरुआती दिनों में भी उनकी एक शानदार व्याख्याता के रूप में एक स्थानीय प्रतिष्ठा कायम हो गयी। लोग मीलों दूर से उनसे पढ़ने आने लगे।[2][4]
१९५७ में भाषा विज्ञान में उनकी नयी रुच जागृत हुई। उन्होंने पुणे के देच्कां कॉलेज में एक प्रोग्राम में दाखिला लिया, जिसे रॉकफेलर फाउंडेशन (Rockefeller Foundation) ने वित्तपोषित किया था और वहां से डिप्लोमा लिया। १९५८ में, वह एक फुलब्राइट अनुदान (Fulbright Program) पर अमरीका गए ताकि इंडियाना विश्वविद्यालय (Indiana University) में भाषा विज्ञान में उन्नत अध्ययन कर सके। १९६३ में उन्होंने इंडियाना विश्वविद्यालय से पि एच.डी. ली।[4]
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