अण्णा सालुंके | |
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१९१७ कि मूक फ़िल्म लंका दहन में सीता कि भूमिका में सालुंके। | |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पेशा | अभिनेता / अभिनेत्री, छायाकार |
कार्यकाल | १९१३ - १९३१ |
अण्णा हरी सालुंके, जो ए सालुंके और अण्णासाहेब सालुंके के नाम से भी जाने जाते, एक भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने शुरूआती कई फ़िल्मों में महीलाओं की भूमिका निभाई थी। सालुंके छायाकार भी थे। १९१३ कि दादासाहब फालके की पहली पूर्ण फ़ीचर फ़िल्म राजा हरिश्चन्द्र में रानी तारामती की भूमिका निभाकर सालुंके भारतीय सिनेमा में नायिका की भूमिका में पेश होने वाले पहले व्यक्ति बने। १९१७ कि मूक फ़िल्म लंका दहन में उन्होंने दोनों नायक और नायिका की भूमिका निभाकर भारतीय सिनेमा में पहली बार दोहरी भूमिका निभाने का श्रेय प्राप्त किया।
सालुंके ग्रँट रोड, मुंबई के एक भोजनालय में रसोइया[1] या परोसने वाले[2] का काम किया करते जहा धुंडिराज गोविंद फालके (दादासाहब फालके) नियमित रूप से आते जाते।[3] निर्देशक और निर्माता फालके अपनी फ़िल्म के लिये कोई महिला कलाकार नहीं ढूंढ सके थे। यहाँ तक कि वेश्याओं और नाचने वाली लड़कियों ने भी इनकार कर दिया। फालके ने सालुंके को देखा; उनका ज़नाना रूप था और पतले सुडौल हाथ थे। इन बातों को देखते हुए फालके ने उन्हें एक महिला भूमिका निभाने के लिए राजी किया। सालुंके का मासिक वेतन जो १० रुपए था, उसे फालके ने १५ रुपए किया जिससे सालुंके सहमत हुए। तब १९१३ में भारत की पहली पूर्ण फीचर फ़िल्म राजा हरिश्चन्द्र में सालुंके ने रानी तारामती की भूमिका निभाई।[1][4]
१९१७ में प्रदर्शित लंका दहन में सालुंके ने राम के पुरुष चरित्र और साथ ही उनकी पत्नी सीता का महिला चरित्र भी निभाया।[5] इस प्रकार उन्हें भारतीय सिनेमा में पहली बार दोहरी भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है।[6][7][8] हालांकि, तब तक सालुंके का पतला सुडौल शरीर नहीं रहा और मांसल काया बन गई थी जिस कारण देवी सीता कि भूमिका में दर्शक उनकी द्विशिर पेशी भी देख सकते थे।[1][9]
सालुंके ने वी एस निरंतर द्वारा निर्देशित सत्यनारायण (१९२२) और फालके द्वारा निर्देशित बुद्ध देव (१९२३) में छायांकन और अभिनय किया। उसके बाद में सालुंके ने अभिनय को छोड़ दिया और पूरी तरह से छायांकन पर ध्यान केंद्रित किया। निरंतर और फालके के अलावा उन्होंने निर्देशक जी वी साने (जो राजा हरिश्चन्द्र में सालुंके के साथ थे) और गणपत शिंदे (जो लंका दहन में सालुंके के साथ थे) के साथ काम किया। छायाकार के रूप में उनकी आखरी फिल्म १९३१ में थी।[10]
१९१३ से १९३१ तक के अठारह साल के कार्यकाल में कई फिल्मों में अभिनय किया और पाँच फिल्मों में महिला भूमिका निभाई। ये फ़िल्में ज्यादातर हिंदू पौराणिक विषयों पर आधारित थी। वह कुछ फिल्मों में एक छायाकार भी थे।[10][11]