आचार्य असंग के छोटे भाई आचार्य वसुबंधु ने अपने जीवन के प्रथम भाग में सर्वास्तिवाद सिद्धांत के अनुसार कारिकाबद्ध अभिधर्मकोश ग्रंथ की रचना की। यह इतना प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुआ कि कवि बाण ने लिखा है कि तोते-मैने भी अभिधर्मकोश के श्लोकों का उच्चारण करते थे। अपने सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए आचार्य ने यथास्थान अन्य दर्शनों की समीक्षा भी की है। ग्रंथ पर आचार्य ने स्वयं एक विस्तृत भाष्य (अभिधर्मकोशभाष्य) की भी रचना की, जिसपर कई टीकाएँ लिखी गई। प्रसिद्ध यात्री विद्वान् हुएन्सांग ने चीनी भाषा में इसका अनुवाद किया था जो आज भी प्राप्त है।
अभिधर्मकोश में आठ कोशस्थान या अध्याय हैं और लगभग ६०० श्लोक हैं। आठ अध्यायों के नाम ये हैं- धातुनिर्देश, इन्द्रियनिर्देश, लोकनिर्देश, कर्मनिर्देश, अनुशयनिर्देश, मार्गपुद्गलनिर्देश, ज्ञाननिर्देश, समापत्तिनिर्देश।