अम्बिकाचरण मजुमदार | |
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जन्म | 1850 Sandiya, फरीदपुर जिला, बंगाल |
मृत्यु | 1922 (72 वर्ष की आयु में) |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (1916) |
अम्बिकाचरण मजुमदार (1850–1922) भारत के स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे। उन्होने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के १९१६ के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की थी।[1] ये उच्च कोटि के वक्ता थे और उनकी गणना अपने समय के प्रमुख नेताओं में होती थी।
अम्बिकाचरण मजुमदार का जन्म १८५० ई में पूर्वी बंगाल के फरीदपुर जिले में हुआ था। उन्होने कलकत्ता के प्रेसिडेन्सी कॉलेज से एम.ए. और क़ानून की डिग्री ली तथा कुछ समय तक अपने ही जिले में वकालत की। आरम्भ से ही उनकी सार्वजनिक कार्यों में रुचि थी। अतः कोलकाता में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन (1886) में वे सम्मिलित हुए। प्रसिद्ध नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी से सम्पर्क का भी उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और 1905 के बंग-भंग का उन्होंने आगे बढ़कर विरोध किया। वे बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे और कांग्रेस के हर अधिवेशन में आगे बढ़कर भाग लेते रहे।
अम्बिकाचरण मजुमदार नरम विचारों के राजनेता थे। वे 1916 की लखनऊ कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसी अधिवेशन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता हुआ था। इसी अधिवेशन में गरम दल तथा नरम दल को फिर एक साथ लाया गया था। गोपाल कृष्ण गोखले से उनकी मैत्री थी। वे ‘लिबरल फ़ेडरेशन’ के गठन में भी सहायक बने।
स्वराज्य प्राप्ति का प्रस्ताव : 1916 ई. के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन का समय वह समय था जब बाल्कन युद्ध के बाद भारतीय मुस्लिम अंग्रेज़ सरकार से नाराज थे। मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली, मुहम्मद अली जिन्ना आदि 'मुस्लिम लीग' के नेताओं ने इस अधिवेशन में 'स्वराज्य प्राप्ति' का प्रस्ताव पारित किया। इसी अधिवेशन में मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना एवं कांग्रेस के मध्य एक समझौता हुआ। कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की 'साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व' की मांग को स्वीकार कर लिया। कालान्तर में इसका परिणाम भयानक रहा। इस समझौते को 'लखनऊ पैक्ट' के नाम से भी जाना जाता है। मदनमोहन मालवीय सहित कई वरिष्ठ नेता इस समझौते के विरुद्ध थे।