अष्टविनायक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "आठ गणेश"। अष्टविनायक शब्द भारत के महाराष्ट्र में आठ विशेष गणेश मंदिरों के मध्य की जाने वाली एक तीर्थयात्रा को संदर्भित करता है। इन आठ मन्दिरों में से 6 भारत के पुणे शहर में और 2 रायगढ़ के आस-पास स्थित है। माना जाता है कि इन आठ अलग-अलग मंदिरों में एकता, समृद्धि, शिक्षा और बाधाओं को दूर करने वाले हिंदू देवता गणेश की आठ अलग-अलग मूर्तियाँ हैं। इन मंदिरों में से प्रत्येक की अपनी एक विशेष कथा और इतिहास है, जो एक दूसरे से भिन्न है और इसीलिए प्रत्येक मंदिर की मूर्तियों में भी भिन्नता दिखाई पड़ती है। मूर्तियों की यह भिन्नता उनके रूप और गणेश जी की सूंड में स्पष्ट देखी जा सकती है हालांकि महाराष्ट्र के विभिन्न हिस्सों में गणेश जी के आठ अन्य मंदिर भी प्रसिद्ध हैं परन्तु लोगों की आस्था विशेष रूप से पुणे के आस-पास स्थित मन्दिरों से ही है। यात्रा की प्रथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अष्टविनायक यात्रा को पूरा करने के लिए, सभी आठ मंदिरों के दर्शन के बाद पहले मंदिर का दर्शन दोबारा करना पड़ता है।[1][2]
मन्दिर | स्थान |
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श्री मयूरेश्वर मंदिर | मोरागांव, पुणे |
सिद्धिविनायक मंदिर | सिद्धटेक, अहमदनगर जिला |
बल्लालेश्वर पाली मंदिर | पाली, रायगढ़ |
वरदविनायक मंदिर | महद, रायगढ़ |
चिन्तामणि मंदिर | थेऊर, पुणे |
गिरिजात्मज मंदिर | लेण्याद्री, पुणे |
विघ्नेश्वर मंदिर | ओझर, नाशिक ज़िला |
महागणपति मंदिर | रंजन गाँव, पुणे |
श्री मयूरेश्वर मंदिर या श्री मोरेश्वर मंदिर ज्ञान के देवता गणपति को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। यह भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर से लगभग 65 कि॰मी॰ दूर मोरागांव में स्थित है। यह मंदिर अष्टविनायक कहे जाने वाले आठ प्रतिष्ठित गणेश मंदिरों की तीर्थयात्रा का आरंभ और समापन बिंदु माना जाता है।[3]
एक किंवदंती के अनुसार गणेश जी द्वारा राक्षस सिंधुरा के वध के बाद इस मन्दिर को स्थापित किया गया था। गणपति संत मोरया गोसावी और पेशवा शासकों के साथ भी इस मन्दिर को जोड़ कर देखा जाता है।
सिद्धटेक में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर सम्पूर्ण सिद्ध कलाओं से निपुण देवता गणेश को समर्पित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर भारत के महाराष्ट्र राज्य में गणेश जी के आठ प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक और अहमदनगर जिले में एकमात्र अष्टविनायक मंदिर है। माना जाता है कि इस मन्दिर को सर्वप्रथम भगवान विष्णु द्वारा बनाया गया था परन्तु समय के साथ यह नष्ट हो गया, बाद में एक चरवाहे ने मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था।[4][5]
बल्लालेश्वर पाली मंदिर भगवान गणेश के अष्टविनायक मंदिरों में से एक है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि गणेश जी को समर्पित यह एकमात्र मंदिर है जो उनके भक्त बल्लाले के नाम से जाना जाता है। यह महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले से 28 कि॰मी॰ दूर पाली गांव में स्थित है। मन्दिर के एक तरफ़ सरसगढ़ दुर्ग और दूसरी तरफ अंबा नदी स्थित है।[6]
वरदविनायक मंदिर अष्टविनायक मन्दिरों में चौथा मंदिर है। यह रायगढ़ के महाद गांव में स्थित है। माना जाता है कि इसकी स्थापना 1725 में पेशवा रामजी महादेव बिवालकर ने की थी।[7][8]
थेऊर का चिंतामणि मंदिर पुणे से 25 कि॰मी॰ दूर स्थित है। इस मन्दिर के गणेश जी के विषय में कहा जाता है कि भगवान गणेश ने लालची राजा गण से अपने भक्त ऋषि कपिला के लिए इच्छा पूरी करने वाली चिंतामणि को पुनः प्राप्त करने के लिए थेउर में लीला रची थी और साथ ही अपने बेचैन मन को शांत करने आए ब्रह्मा जी के मन को शांत भी किया था। माना जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण गणपति संत मोरया गोसावी ने किया था और माधवराव पेशवा द्वारा इसका जीर्णोद्धार किया गया था।[9]
गिरिजात्मज मंदिर पुणे के लेण्याद्री में स्थित है। यहाँ गिरिजा का अर्थ पार्वती और आत्मज का अर्थ है पुत्र। माना जाता है कि अपने पुत्र गणेश को जन्म देने के लिए पार्वती जी ने यहीं तपस्या की थी। मन्दिर के आस-पास बौद्ध धर्म से सम्बन्धित कुछ अन्य गुफा भी है। मन्दिर को एक पहाड़ के अन्दर तराश कर बनाया गया है।[10]
ओझर का विघ्नेश्वर मंदिर अष्टविनायक मन्दिरों में से एक है। यहाँ पूजे जाने वाले गणेश जी के रूप को विघ्नेश्वर कहा जाता है, जिसका अर्थ है "बाधाओं को दूर करने वाला"। यह गणेश जी द्वारा विघ्नसुर के वध करने की कथा से भी जुड़ा हुआ है।[11]
महागणपति मंदिर अष्टविनायक यात्रा का अंतिम प्रमुख मंदिर है। इस मंदिर की गणपति मूर्ति का उद्घाटन और दान रंजनगाँव में स्थित एक सुनार परिवार "खोल्लम" द्वारा किया गया था। मंदिर का निर्माण 9वीं से 10वीं सदी के बीच हुआ था हालांकि मुख्य मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे इसे पेशवा काल में बनाया गया था।[12]