आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act (MISA)) सन 1971 में भारतीय संसद द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था। इसमें कानून व्यवस्था बनाये रखने वाली संस्थाओं को बहुत अधिक अधिकार दे दिये गये थे। आपातकाल के दौरान (1975-1977) इसमें कई संशोधन हुए और बहुत से राजनीतिक बन्दियों पर इसे लगाया गया। अन्ततः १९७७ में इंदिरा गांधी की पराजय के बाद आयी जनता पार्टी की सरकार द्वारा इसे समाप्त किया गया।
आपातकालीन संघर्ष गाथा
केंद्र में सत्ताधारी दल बीजेपी आपातकाल के बहाने विपक्षी दल कांग्रेस को घेरने में लगी है. जून 1975 में लगाया गया आपातकाल शायद कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल थी जिसका दंश आजतक पार्टी झेल रही है. इस दौरान लगाए गए मीसा कानून के तहत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी, जॉर्ज फर्नांडिस, रविशंकर प्रसाद तक शामिल थे. मीसा कानून साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया. मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया. मीसा बंदियों से भरी जेलें मीसा और डीआरआई के तहत एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. आपातकाल के वक्त जेलों में मीसाबंदियों की बाढ़ सी आ गई थी. नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर इस कानून के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया गया, उनकी संपत्ति छीनी गई. बदलाव करके इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं थी. कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे. लालू की बेटी का नाम पड़ा मीसा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी आपातकाल के दौरान मीसा बंदी रहे. इस बीच साल 1976 में जन्मीं उनकी बड़ी बेटी का नाम भी इसी कानून की वजह से मीसा भारती रखा गया. मीसा फिलहाल पार्टी की ओर से राज्यसभा सदस्य हैं.
जेटली ने याद किए दिन मोदी सरकार में मंत्री अरुण जेटली भी मीसा बंदी रह चुके हैं. उन दिनों को याद करते हुए जेटली ने लिखा, 'मुझे 26 जून 1975 की सुबह एकमात्र विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का गौरव मिला और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया. मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मैं 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हो रहा था जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं. इस घटना ने मेरे जीवन का भविष्य बदल दिया. शाम तक, मैं तिहाड़ जेल में मीसा बंदी के तौर पर बंद कर दिया गया था.' आपातकाल लागू होने के साथ ही ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की गई जिनकी गिरफ्तारियां होनी थीं. इस लिस्ट में सबसे पहला नाम जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई का था. इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी को ये लिस्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया. सुबह होती इससे पहले ही जेपी और मोरारजी देसाई को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया. अगले 21 महीने दमन की दास्तां जारी रही. जेल में तैयार हुआ विपक्ष मीसा बंदियों ने जेलों में यातनाएं झेलीं जरूर लेकिन इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत भी इन्हीं कैदियों ने की. जेपी से लेकर, चंद्रशेखर, वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, एलके आडवाणी, शरद यादव जैसे नेताओं ने जेल से बाहर आते ही इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया. विपक्षी नेताओं की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ और 1977 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. नई सरकार के गठन के साथ ही दमनकारी कानून मीसा को (1979) में हटा दिया गया. मीसा बंदियों को पेंशन आपातकाल के दौरान भी गैर कांग्रेसी राज्यों की सरकार मीसा में बंद किए गए लोगों को पेंशन देने का काम करती थी. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकारों ने डीआरआई और मीसा में बंद कैदियों को 15 हजार रुपये पेंशन देना शुरू किया. इसके बाद साल 2014 में राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार ने भी 800 मीसा बंदियों को 12 हजार रुपये प्रति माह की पेंशन देने का फैसला किया. बीजेपी देशभर में आज भी आपातकाल की बरसी पर मीसा बंदियों को सम्मानित करती है.
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