आई ए रिचर्ड्स (I. A. Richards) | |
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![]() आई ए रिचर्ड्स आल्प्स में (1930) | |
जन्म | इवोर आर्मस्ट्रॉग रिचर्ड्स 26 फ़रवरी 1893 Sandbach, Cheshire, England |
मृत्यु | 7 सितम्बर 1979 कैम्ब्रिज, इंग्लैंड | (उम्र 86 वर्ष)
पेशा | शिक्षाविद |
राष्ट्रीयता | अंगरेज |
उच्च शिक्षा | Magdalene College, Cambridge |
काल | 20वीं शताब्दी |
जीवनसाथी | Dorothy Pilley Richards |
इवोर आर्मस्ट्रांग रिचर्ड्स (Ivor Armstrong Richards ; 26 फरवरी 1893 – 7 सितम्बर 1979) अंग्रेजी के प्रभावशाली समालोचक तथा वक्ता थे। यह बीसवीं सदी के मूल्यवादी समीक्षक हैं। पाश्चात्य समीक्षकों में आई. ए. रिचर्ड्स का नाम बड़े आदर से लिया जाता है।
आई.ए. रिचर्ड्स का जन्म सन् 1893 ईस्वी में इंग्लैंड के चेशायर शहर में हुआ था । वे अर्थशास्त्र एवं मनोविज्ञान के विद्यार्थी थे। हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अनेक वर्षों तक अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे। वहीं से इन्होंने डी. लिट् की उपाधि प्राप्त की। उनका रचनाकाल सन् 1924 से 1936 के मध्य माना जाता है। उन्होने लगभग एक दर्जन ग्रंथ लिखे जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण “प्रिंसिपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिजम” है। इनका प्रभाव हिंदी साहित्य पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। रामचंद्र शुक्ल रिचर्ड्स के सिद्धान्तों के समर्थक और प्रशंसक रहे हैं। यह दोनों ही मूल्यवादी समीक्षक हैं ।
आई. ए. रिचर्ड्स मनोविज्ञान के क्षेत्र से साहित्य के क्षेत्र में आए थे। इसलिए उनके काव्य सिद्धांत मनोवैज्ञानिक आधार पर स्थित है। 'कला को जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध करना' रिचर्ड्स की आलोचना का केंद्र बिंदु है। वे “बेंथम” और “मिल” के उपयोगितावाद से पर्याप्त प्रभावित रहे हैं।
आई. ए. रिचर्ड्स की प्रमुख रचनाएं ये हैं-
आई. ए. रिचर्ड्स के दो सिद्धान्त विशेष उल्लेखनीय हैं -
रिचर्ड्स का विश्वास है कि आलोचना का सिद्धान्त दो स्तम्भो पर टिका हुआ है, 'मूल्य का सिद्धान्त' तथा 'संप्रेषण का सिद्धान्त'।
संप्रेषण सिद्धान्त को 'सम्प्रेषणीयता का सिद्धांत' भी कहा जाता है। रिचर्ड्स का मानना है कि किसी अन्य व्यक्ति की अनुभूति को अनुभूत करना ही प्रेषणीयता है। विषय की रोचकता व रमणीयता से संप्रेषण में पूर्णता का समावेश होता है। कवि जब स्वयं अपनी अनुभूतियों के साथ एक रस नहीं हो जाता तब तक वे अनुभूतियां प्रेषणीयता का गुण ग्रहण नहीं कर सकती।
संप्रेषण एक स्वाभाविक व्यापार है जिसमें निश्चय ही कवि प्रतिभा स्वत: अज्ञात रूप से कार्य करती है। अनुभूतियों का सहज प्रस्तुतीकरण उस प्रभाव दशा का निर्माण कर देता है जो कवि ने अनुभूत की थी। संप्रेषण की प्रक्रिया में भाषा का विशेष योगदान है। शब्दों के अर्थ बोध एवं बिम्ब ग्रहण से काव्यार्थ का बोध होता है। इस बोध से ही भावों एवं भावात्मक दृष्टि की अनुभूति होती है।
रिचर्ड्स का विचार है कि संप्रेषण कला का तात्विक धर्म है। एक कलाकार का अनुभव विशिष्ट और नया होने के कारण उसकी सम्प्रेषणयीता समाज के लिए मूल्यवान है। रचना में जितनी प्रबल और प्रभावशाली सम्प्रेषणयीता होती है उतना ही बड़ा कवि या कलाकार होता है।
रिचर्ड्स का विचार है कि प्रेषणीयता को प्रभावी बनाने के लिए इन बातों की आवश्यकता होती है।
रिचर्ड्स भाषा की दो श्रेणियां स्वीकार करते हैं, वैज्ञानिक भाषा तथा रागात्मक भाषा। वैज्ञानिक भाषा में सूचनात्मक, तथ्यात्मक अथवा अभिधात्मक भाषा का प्रयोग होता है जबकि काव्य की भाषा रागात्मक होती है। काव्य की भाषा में भावात्मक अर्थ की प्रधानता होती है।
रिचर्ड्स ने “प्रैक्टिकल क्रिटिसिजम” में ‘अर्थ’ के चार प्रकार गिनाए हैं :
मूल्य सिद्धान्त को कला का मूल्यवादी सिद्धांत या उपयोगितावादी सिद्धान्त भी कहा जाता है। रिचर्ड्स ने ब्रेडले के “कला कला के लिए है” सिद्धान्त का खण्डन करते हुए “कला व नीति का परस्पर संबंध” स्वीकार किया है।
रिचर्ड्स कहते हैं,
रिचर्ड्स का विचार है कि सृजन के क्षणों में कलाकार सर्वोत्तम स्थिति में होता है, काव्य की उपयोगिता भी यही है कि पाठक भी उस मानसिक स्थिति के निकट पहुंचे। रिचर्ड्स ने इसे ही काव्य का मूल्यवान रूप माना है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे ही "हृदय की रसदशा" कहा है।