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आई एम कलाम | |
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रंगमंच के लिये जारी पोस्टर | |
निर्देशक | नील माधव पंडा |
पटकथा | संजय चौहान |
कहानी | संजय चौहान |
निर्माता |
शांतनु मिश्रा जितेन्द्र मिश्रा (सहायक) |
अभिनेता |
हर्ष मायर गुलशन ग्रोवर पीतोबाश त्रिपाठी बीट्रिस ऑर्डेइक्स |
छायाकार | मोहन क्रिश्ना |
संपादक | प्रशांत नायक |
संगीतकार |
अभिषेक रे मधुपर्णा पैपोन सुस्मित बोस शिवजी ढोली |
प्रदर्शन तिथियाँ |
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लम्बाई |
87 मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
लागत | ₹3 करोड़ (US$4,38,000) |
कुल कारोबार | ₹6 करोड़ (US$0.88 मिलियन) |
आई एम कलाम नील माधव पंडा द्वारा निर्देशित व स्माइल फाउंडेशन द्वारा निर्मित 2011 की हिन्दी फिल्म है। इसकी कहानी एक गरीब राजस्थानी लड़के छोटू जो भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित है, के चारों और घूमती है साजिश भारत के पूर्व राष्ट्रपति,[1] छोटू के चरित्र हर्ष मायर,[2] जो दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाला लड़का है, ने निभाया है। इसे विभिन्न फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया और इसे कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, 12 मई 2010 को ये 63 वें कान फिल्म समारोह के बाजार खंड में दिखाई गई।[3][4][5][6][7]
छोटू राजस्थान का रहने वाला एक 12 साल का बुद्धिमान लड़का है। गरीबी में पैदा हुआ, वह सड़क के किनारे स्थित भोजन स्टाल पर काम करने के लिए उसकी मां द्वारा स्टाल के स्वामी भाटी को दे दिया जाता है। उसकी माँ बार-बार कहती है "स्कूल हमारे भाग्य में नहीं है"। फिल्म ये बताती है कि भाग्य कुछ नहीं होता है और किस तरह नियति को अपनी कड़ी मेहनत के द्वारा बदला जा सकता है।
एक दिन छोटू राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम को टेलीविजन पर देखता है उनसे काफी प्रेरित हो जाता है। छोटू अपना नाम बदलकर कलाम रख लेता है और वह ये निश्चय करता है कि वह एक ऐसा व्यक्ति बनेगा जो टाई पहनता है और जिसका दूसरों के द्वारा सम्मान किया जाता है।
छोटू / कलाम चाय तैयार करना और भोजन के स्टाल के लिए आवश्यक अन्य बातों को जल्दी ही सीख लेता है और वह अपनी योग्यता और विचारों से भाटी को काफी खुश कर देता है। कलाम (छोटू) की भाटी के वहां काम करते हुए राजा के बेटे राजकुमार रणविजय सिंह (हसन साद) से दोस्ती हो जाती है। जल्द ही कलाम और राजकुमार सच्चे मित्र बन, उपहार, किताबें और व्यक्तिगत वस्तुओं को आपस में बाँटने लगते हैं। एक अन्य कर्मचारी, लपटन (पितोबश त्रिपाठी )कलाम से चिढ़ता है और उसकी पुस्तकों को नष्ट कर देता है व उस पर दैनिक कामकाज थोप कर उसे परेशान करता है। कलाम हिंदी में एक निबंध लेखन में प्रिंस की मदद करता है जिसके लिए राजकुमार को पुरस्कार मिलता है। लेकिन उसकी खुशी कम समय के लिए ही रहती है क्योंकि महल के गार्ड कलाम के कमरे में कपड़े और किताबें पाते हैं और कलाम पर एक चोर होने का आरोप लगाया जाता है, वह राजकुमार को उसके पिता के क्रोध से बचने के लिए वह उन वस्तुओं के स्रोत का खुलासा नहीं करता है। निराश कलाम वह राष्ट्रपति से मिलने के लिए दिल्ली जाता है पर बहुत कोशिशों के बाद भी वह असफल रहता है। अंत में वह राष्ट्रपति को एक पत्र लिखता है और बताता है कि कड़ी मेहनत के द्वारा न की भाग्य द्वारा कोई भी आम बच्चा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या एक सफल, सम्मानित व्यक्ति बन सकता है।
इस बीच, राजकुमार अपने पिता को बताता है कि कलाम को कपड़े उसने दिए थे और प्रथम पुरस्कार दिलाने वाला भाषण कलाम ने लिखा था। राजा को अपनी गलती का एहसास होता है और वह नई दिल्ली में कलाम को खोजने के राजकुमार को भेजता है। कलाम इंडिया गेट के पास पाया जाता है और राजकुमार उसे वापस घर ले आता है। राजा उसे बताता है कि वह भी राजकुमार के साथ एक ही स्कूल में अध्ययन कर सकता हैं और कलाम की मां को भी वह काम पर रख लेता है। भाटी कलाम की स्कूल की फीस का भुगतान करने के लिए तैयार हो जाताप् है, लेकिन कलाम कहता है कि वह खुद ही अपनी फीस का भुगतान करेगा। अंत में कलाम का सपना सच होता है और वह राजकुमार के साथ स्कूल जाता है। फिल्म इस सन्देश के साथ समाप्त होती है कि "बच्चे न केवल जानकारी के लिए ....बल्कि परिवर्तन के लिए भी स्कूल जाते हैं।"
5 अगस्त 2011 को आई एम कलाम भारत के सिनेमाघरों में प्रदशित की गयी। 29 जुलाई को एक विशेष स्क्रीनिंग दिल्ली स्थित डॉ एपीजे कलाम के आवास पर आयोजित की गयी ताकि उनका आशीर्वाद लिया जा सके।[8]
It is a critically acclaimed movie. The film was rated 4.40 on 5 by audiences at the Transilvania International Film Festival recently.[9] Critic Vianayak said "This film is an example of how a children's film can regale with solid storytelling, at the same time creating space for undercurrent comment." TOI wrote " It's inspirational, intelligent, topical and entertaining too. More importantly, it brims over with heart and soul, leaving no one untouched with its simple message of providing an equal opportunity".[10] DNA appreciate movie – "At a little over 90 minutes, I Am Kalam is a gripping watch that leaves you feeling uplifted and positive. Try not to miss it.".[11] रीडिफ.कॉम stated that I Am Kalam is a winner.[12] Taran Adarsh inspired movie by saying "On the whole, I am kalam is an inspiring and motivating film that deserves to be encouraged. Recommended!".
इंग्लिश