इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (जुलाई 2021) स्रोत खोजें: "आस्तिक" ऋषि – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
आस्तिक एक ऋषि थे। वे जरत्कारु और मनसा के पुत्र थे। उनके मामा गणेशजी , कार्तिकेय जी और भगवान अय्यपा थे। उनकी मौसी देवी अशोकसुन्दरी और देवी ज्योति हैं और इनके मौसाजी राजा नहुष और अश्विनी कुमार नासत्य हैं | भगवान शिव और माता पार्वती इनके नाना - नानी हैं |
गर्भावस्था में ही माँ कैलाश चली गई थीं और इनके नाना भगवान शंकर ने उन्हें ज्ञानोपदेश किया। गर्भ में ही धर्म और ज्ञान का उपदेश पाने के कारण इनका नाम आस्तीक पड़ा। महर्षि भार्गव से सामवेद का अध्ययन समाप्त कर इन्होंने अपने नाना भगवान शंकर से मृत्युञ्जय मन्त्र का अनुग्रह लिया और माता के साथ आश्रम लौट आए। पिता की मृत्यु सर्पदंश से होने के कारण राजा जनमेजय ने सर्पसत्र करके सब सर्पों को मार डालने के लिए यज्ञ किया। अन्त में तक्षक नाग की बारी आई। जब पिता जरतकारु को यज्ञ की बात मालूम हुई तो उन्होंने आस्तीक को तक्षक की रक्षा की आज्ञा दी। आस्तीक ने यज्ञ मण्डप में पहुँचकर जनमेजय को अपनी मधुर वाणी से मोह लिया। उधर तक्षक घबराकर इंद्र की शरण गया। ब्राह्मणों के आह्वान पर भी जब तक्षक नहीं आया तब ब्राह्मणों ने राजा से कहा कि इन्द्र से अभय पाने के कारण ही वह नहीं आ रहा है। राजा ने आदेश दिया कि इन्द्र सहित उसका आह्वान किया जाए। जैसे ही ब्राह्मणों ने 'इंद्राय तक्षकाय स्वाहा' कहना आरम्भ किया, वैसे ही इंद्र ने उसे छोड़ दिया और वह अकेले यज्ञकुण्ड के ऊपर आकर खड़ा हो गया। उसी समय राजा ने आस्तीक से कहा तुम्हें जो चाहिए मांगो। आस्तीक ने तक्षक को कुंड में गिरने से रोककर राजा से अनुरोध किया कि सर्पसत्र रोक दीजिए। वचनबद्ध होने के कारण जनमेजय ने खिन्न मन से आस्तीक की बात मानकर तक्षक को मंत्रप्रभाव से मुक्ति दी और नागयज्ञ बन्द करा दिया। सर्पों ने प्रसन्न होकर आस्तीक को वचन दिया कि जो तुम्हारा आख्यान श्रद्धासहित पढ़ेंगे उन्हें हम कष्ट नहीं देंगे। जिस दिन सर्पयज्ञ बन्द हुआ था उस दिन पंचमी थी। अतः आज भी भारतीय उक्त तिथि को नागपंचमी के रूप में मनाते हैं।