इन्द्रवर्मन् I | |
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राजा | |
पूर्ववर्ती | पृथ्वीन्द्रवर्मन |
उत्तरवर्ती | यशोवर्मन प्रथम I |
पिता | पृथ्वीन्द्रवर्मन |
माता | पृथ्वीन्द्रदेवी |
इन्द्रवर्मन् १ (ख्मेर: ឥន្រ្ទវរ្ម័នទី១) खमेर साम्राज्य के एक शासक थे। जिन्होंने हरिहरलया के बीच ८७७/७८ और ८८९/८९० राज्य किया
प्राह कोह् मंदिर के शिलालेख के अनुसार पवित्रा पर अंकित सोमवार,२५ जनवरी ८८० सदी (नींव दसता ७१३ ए[1] तीन जोड़े मंदिरों के मिनार तीन मृतक राजा और उनकी रानियों के लिए उनके द्वारा बनाया गया था जो की एक रूप में "स्मारक मंदिर" के रूप में देखा जा सकता है जो की शिलालेख के रूप में दरवाजे के चोखट में अंकित है। मध्य मिनार जयवर्मन द्वितीय और उनकी रानी धरनिन्द्ररादेवी को सम्रपित किया गया है। उन्हें उनके मरणोपरांत नाम परमेशवरा के नाम से जाना जाता है। (K. 320a),[2] उत्तरी छोर वाला रूूूूद्रवर्मन और उनकी पत्नी राजेन्द्रादेवी (के३१८ए) उनके नाना और नानी,और दक्षिणी मिनार पृथ्वेन्द्रवर्मन (पृथ्वेन्द्रशवरा) और पृथ्वेन्द्रदेवी के नाम समर्पित किया।(३१५ए) (७१३बी)
इन्द्रवर्मन् प्रथम कि पत्नी, इन्द्रादेवी शम्भूपुरा,व्यधापुरा, और अनन्दितापुरा राज परिवार की वंशज थी (फुनान) 110-111 ्
वास्तव में ९ वीं सदी में राजाओं के पारम्परिक उत्तराधिकार [3] विवादित था। कुछ पुरालेखवेत्ता जिनमें कमलेश्वर भट्टाचार्य और कार्ल-हाइ्न्ज गोलजियो शामिल हैं। जयवर्मन तृतीय के काल में अल्प गतिविधि और अभिलेखो की अनुपस्थिति में और प्राह को के समर्पित मिनार तथा रोलुओस में पायी गई संस्कृत लेखों के वर्णन से ज्ञात होता है कि उनके और इन्द्रवर्मन् के बीच दो और राजा रूद्रवर्मन और पृथ्वेन्द्रवर्मन हुए हैं।.[4]
लोलइ शिलालेख के अनुसार K 324 के इन्द्रवर्मन् के उत्तराधिकारी यशोवर्मन, दिनांक ८ जुलाई ८९३ सदी, रूद्रवर्मन उनकी माँ धरनेन्द्रदेवी, के छोटे भाई थे जयावर्मन द्वितीय की रानी व पत्नी और जयावर्मन तृतीय की माँ जिसेके बारे में अपने बाकांग शिलालेख इन्द्रवर्मन् उल्लेख के तहत अपने मरणोपरांत नाम विष्णुलोक में K 826 छंद XXX, दिनांक ८८१/८२ सदी.[5]
८०० सदी में जयवर्मन द्वितीय खमेर साम्रजय के संस्थापक माने जाते हैं। लेकिन इन्द्रवर्मन् प्रथम को श्रेय जाता है जिन्होने भवन निर्माण के कार्य में प्रगति की तथा आने वाले अंगकोरीयन राजा उनका अनुसरण करे की नीव रखी। राजा ने अपने प्रथम कार्य में चावल की खेती के लिए नहरों का जाल बिछाया। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक बड़ा बांध जिसमें वर्षा में बरसात का पानी भरकर सुखे के समय उसे धीरे धीरे नहरों के एक जाल में छोड़ा जाये।
इन्द्रवर्मन प्रथम 889 में मारे गये मरणोपरांत इशवरालोका, नाम प्राप्त किया और बेटे यशोवर्मन उनके उत्तराधिकारी बनें I I.:111
पहले से Pṛthivīndravarman |
सम्राट के अंगकोर 877-889/90 |
सफल रहा द्वारा Yaśovarman मैं |