एक शृंखला का हिस्सा, जिसका विषय है |
देवबंदी आंदोलन |
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विचारधारा एवं प्रभाव |
संस्थापक एवं प्रमुख लोग |
उल्लेखनीय संस्थान |
तबलीग़ के केंद्र |
संबद्ध |
हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की (अंग्रेज़ी:Imdadullah Muhajir Makki) (1814-1896) चिश्ती सूफीवाद के भारतीय मुस्लिम सूफी विद्वान थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ (1857 के भारतीय विद्रोह में) लड़ने के लिए थाना भवन में मुसलमानों का नेतृत्व किया था।[1][2][3]
भारत,उत्तर प्रदेश, जिले सहारनपुर के ननौता शहर में पैदा हुए थे।
अठारह साल की उम्र में उनकी बैत अर्थात् शागिर्दी नसीरुद्दीन द्वारा स्वीकार कर ली गयी। बाद में वह मियांजी (नूर मुहम्मद झिंझानवी) के अधीन चिश्ती-साबरी सूफी दीक्षा के रूप में अध्ययन किया।[4]
थाना भवन में, स्थानीय मुसलमानों ने इमदादुल्लाह को अपना नेता घोषित किया। मई 1857 में शामली की लड़ाई हाजी इमदुल्लाह के साथियों और अंग्रेजों के बीच हुई थी। [5]
कुल्लियात-ए-इमदादिया
हशिया मसनवी मौलाना रूमी: यह रूमी द्वारा मसनावी-ए- मैनावी पर फारसी में एक टिप्पणी है। इमदादुल्लाह के जीवनकाल के दौरान, केवल दो हिस्सों को मुद्रित किया जा सकता था। शेष उसकी मृत्यु के बाद मुद्रित किया गया था।
ग़िज़ा-ए-रुह (आत्मा का पोषण): इमदादुल्लाह ने 1264 हिजरी में यह पुस्तक लिखी थी। मियांजी नूर मोहम्मद झांझनवी की भी चर्चा है। इसमें कविता में 1600 छंद शामिल हैं।
अक़्लीलुल कुरआन (अरबी में तफ़सीर कुरआन )
जिहाद-ए-अकबर : उन्होंने 1268 हिजरी में इस पुस्तक की रचना की। यह फ़ारसी में एक काव्य कृति है जिसका उन्होंने उर्दू में अनुवाद किया। इसमें 679 छंदों के साथ 17 पृष्ठ हैं।
1896 में ब्याससी साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। वसीयत के मुताबिक उन्हे गाढे (खद्दर) का कफन के साथ दफनवा दिया गया था।[6]