उगादि या युगादि हिंदू पंचांग के अनुसार नए साल का दिन है। इसे भारत के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक राज्यों में मनाया जाता है। यह इन क्षेत्रों में हिंदू पंचांग के चैत्र महीने के पहले दिन उत्सवपूर्वक मनाया जाता है।[1] यह आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के मार्च के अंत या अप्रैल की शुरुआत में पड़ता है। 2024 में ये 9 अप्रैल को मनाया गया था।[2] इस दिन फर्श पर रंगोली बनाई जाती है। तोरण नामक दरवाजों पर आम के पत्तों की सजावट की जाती है।[3] नए कपड़े ख़रीदे जाते है और उपहार में दिए जाते हैं। गरीबों को दान देना, तेल मालिश के बाद विशेष स्नान करना, पचड़ी नामक एक विशेष भोजन तैयार करना और मंदिरों में जाना। यह सब भी इसी पर्व को मनाने के तरीके हैं।
त्यौहार की तैयारियाँ एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती हैं। घरों की अच्छी तरह से सफाई की जाती है।लोग धोती समेत नए कपड़े खरीदते हैं और त्यौहार के लिए नई चीजें खरीदते हैं। अपने घरों के प्रवेश द्वार को ताजे आम के पत्तों से सजाते हैं। हिंदू परंपरा में आम के पत्तों और नारियल को शुभ माना जाता है और उगादि पर इनका इस्तेमाल किया जाता है। लोग मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। उगादि का उत्सव धार्मिक उत्साह और सामाजिक उल्लास से मनाया जाता है। इसी दिन को भारत के कई अन्य हिस्सों में हिंदुओं द्वारा नए साल के रूप में मनाया जाता है। जिसमें महाराष्ट्र का गुड़ी पड़वा शामिल है।[4]